वर्षा ऋतु पर कविता, Rainy Poem in Hindi, Varsha Poem in Hindi

Rainy Poem in Hindi – इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन वर्षा ऋतु पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. इस Varsha Poem in Hindi को हमारे लोकप्रिय कवियों दुवारा लिखा गया हैं. यह कविता छात्रों के लिए भी सहायक होगी. क्योकि स्कूलों में भी वर्षा ऋतु पर कविता लिखने को कहा जाता हैं.

बारिश का मौसम सभी को भाता हैं. इस मौसम में चारो तरफ हरियाली छा जाती हैं. और हल्की – हल्की ठंढी हवा चलती हैं. जो मौसम को काफी खुशनुमा बनाती हैं.

भारत के चार प्रमुख मौसम में वर्षा ऋतु भी एक हैं. यह मौसम जुलाई महीने से लेकर सितम्बर महीने तक होता हैं. यह ऋतु गरमी के बाद आता हैं. इस वजह से इस मौसम का सभी को इंतजार रहता हैं. अच्छी बारिश का किसानों को भी इन्तजार होता हैं. अच्छी बारिश होने से किसानों का फसल भी अच्छा होता हैं.

अब आइए कुछ नीचे Rainy Poem in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह Varsha Poem in Hindi में आपको पसंद आएगी. इस वर्षा ऋतु पर कविता को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

वर्षा ऋतु पर कविता, Rainy Poem in Hindi, Varsha Poem in Hindi

Rainy Poem in Hindi

1. Rainy Poem in Hindi – झम झम झम झम

झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।

ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर।
आँधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर् चर्
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।

पंखों से रे, फैले फैले ताड़ों के दल,
लंबी लंबी अंगुलियाँ हैं चौड़े करतल।
तड़ तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल
टप टप झरतीं कर मुख से जल बूँदें झलमल।

नाच रहे पागल हो ताली दे दे चल दल,
झूम झूम सिर नीम हिलातीं सुख से विह्वल।
हरसिंगार झरते, बेला कलि बढ़ती पल पल
हँसमुख हरियाली में खग कुल गाते मंगल?

दादुर टर टर करते, झिल्ली बजती झन झन
म्याँउ म्याँउ रे मोर, पीउ पिउ चातक के गण!
उड़ते सोन बलाक आर्द्र सुख से कर क्रंदन,
घुमड़ घुमड़ घिर मेघ गगन में करते गर्जन।

वर्षा के प्रिय स्वर उर में बुनते सम्मोहन
प्रणयातुर शत कीट विहग करते सुख गायन।
मेघों का कोमल तम श्यामल तरुओं से छन।
मन में भू की अलस लालसा भरता गोपन।

रिमझिम रिमझिम क्या कुछ कहते बूँदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर!
धाराओं पर धाराएँ झरतीं धरती पर,
रज के कण कण में तृण तृण की पुलकावलि भर।

पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन!
इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर फिर आए जीवन में सावन मन भावन!
सुमित्रानंदन पंत

2. Varsha Poem in Hindi – फिर नभ घन घहराये

फिर नभ घन घहराये ।
छाये, बादल छाये ।

कौंधी चपला अलक-बंध की
परी प्रिया के मुख की छवि-सी,
बून्दें सुख के आंसू ढल कर,
पृथ्वी के उर आये ।

दिवस निशा का सुखद स्वप्न है,
ज्योतिश्छाया देश लग्न है,
आतप के कुम्हलाये खुलकर
मुख-प्रसून भाये ।

उगी दूब की अति हरियाली,
गली-गली सुख-सेज बिछा ली,
प्रकृति-सुन्दरी ने शोभा के
रंग, कर दिखलाये ।
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

3. वर्षा ऋतु पर कविता – हैं इस हवा में क्या-क्या बरसात की बहारें

हैं इस हवा में क्या-क्या बरसात की बहारें।
सब्जों की लहलहाहट ,बाग़ात की बहारें।
बूँदों की झमझमाहट, क़तरात की बहारें।
हर बात के तमाशे, हर घात की बहारे।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

बादल लगा टकोरें , नौबत की गत लगावें।
झींगर झंगार अपनी , सुरनाइयाँ बजावें।
कर शोर मोर बगले , झड़ियों का मुँह बुलावें।
पी -पी करें पपीहे , मेंढक मल्हारें गावें।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

क्या – क्या रखे हए है या रब सामान तेरी कुदरत।
बदले है रंग क्या- क्या हर आन तेरी कुदरत।
सब मस्त हो रहे हैं , पहचान तेरी कुदरत।
तीतर पुकारते है , ‘सुबहान तेरी कुदरत’।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

जो मस्त हों उधर के , कर शोर नाचते हैं।
प्यारे का नाम लेकर ,क्या जोर नाचते हैं।
बादल हवा से गिर – गिर, घनघोर नाचते हैं।
मेंढक उछल रहे हैं ,और मोर नाचते हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

कितनों तो कीचड़ों की, दलदल में फँस रहे हैं।
कपड़े तमाम गंदे , दलदल में बस रहे हैं।
इतने उठे हैं मर – मर, कितने उकस रहे हैं।
वह दुख में फँस रहे हैं, और लोग हँस रहे हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

यह रुत वह है जिसमें , खुर्दो कबीर खुश हैं।
अदना गरीब मुफ्लिस, शाहो वजीर खुश हैं।
माशूक शादो खुर्रम , आशिक असीर खुश हैं।
जितने हैं अब जहाँ में, सब ऐ ‘नज़ीर’ खुश हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।
नज़ीर अकबराबादी

4. Varsha Ritu Poem – आयी रे आयी वर्षा ऋतु आयी

आयी रे आयी वर्षा ऋतु आयी ।
अपने साथ काले काले मेघा लायी ।।

जोर जोर से गरज उठे काले मेघा ।
फिर कही बारिश की बौछारे आयी ।।

जोर जोर से उमड़ घुमड़ कर बरसे बदरा ।
सूखे खेतो में फसले लहराई ।।

धरती पुत्र किसानो की आँखे चमक उठी ।
घर घर में खुशियाँ आयी ।।

हाहाकार मचा रही गर्मी को धुल चटाई ।
आयी रे आयी वर्षा ऋतु आयी ।।

नवजीवन की नई जोत जलाई ।
पर्वत भी झूम उठा झरने भी झूम उठे ।।

खुले मैदानो फिर नदियाँ कल-कल कर बहने लगी ।
धरती माँ ने भी हरियाली की चुनरी ओढ ली ।।

आयी रे आयी वर्षा ऋतु आयी ।।

नरेंद्र वर्मा

5. Poem on Varsha Ritu in Hindi – सावन भादौं साधु हो गए, बादल सब संन्यासी

सावन भादौं साधु हो गए, बादल सब संन्यासी
पछुआ चूस गई पुरवा को, धरती रह गई प्यासी
फसलों ने वैराग ले लिया, जोगी हो गई धानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
ताल तलैया माटी चाटै, नदियाँ रेत चबाएँ
कुएँ में मकड़ी जाला ताने, नहरें चील उड़ाएँ
उबटन से गगरी रूठी है, पनघट से बहुरानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
छप्पर पर दुपहरिया बैठी, धूप टँगी अँगनाई
द्वार का बरगद ठूँठ हो गया, उजड़ गई अमराई
चौपालों से खलिहानों, तक सूरज की मनमानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
पिघल गया चेहरों का सोना, उतर गई महताबी
गोरी बाँहें हुईं साँवरी, बुझ गए नयन गुलाबी
सपने झुलस गए राधा के, श्याम हुए सैलानी
राम जाने कब बरसेगा पानी
बाज़ारों में मँहगाई की बिखर गई तस्वीरें
हमदर्दों के पाँव पड़ गई वादों की जंजीरें
सँसद की कुरसी में धँस गई खेती और किसानी
राम जाने कब बरसेगा पानी

Varsha Poem in Hindi

6. Poem on Rainy Season in Hindi – बूँद टपकी एक नभ से

बूँद टपकी एक नभ से,
किसी ने झुक कर झरोके से
कि जैसे हंस दिया हो,
हंस रही – सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो;
ठगा – सा कोई किसी की आँख
देखे रह गया हो,
उस बहुत से रूप को रोमांच रोके
सह गया हो।
बूँद टपकी एक नभ से,
और जैसे पथिक
छू मुस्कान, चौंको और घूमे
आँख उस की, जिस तरह
हंसती हुई – सी आँख चूमे,
उस तरह मै ने उठाई आँख
बादल फट गया था,
चन्द्र पर अत हुआ – सा अभ्र
थाड़ा हट गया था।
बूँद टपकी एक नभ से
ये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोका बंद हो ले,
और नूपुर ध्वनि झमक कर,
जिस तरह दुत छंद हो ले,
उस तरह बादल सिमट कर,
चन्द्र पर छाय अचानक,
और पानी के हज़ारों बूँद
तब आये अचानक।

7. Rainy Poem in Hindi – रात बारह बारह बजे

रात बारह बारह बजे
आँधी के साथ उड़ने लगी
घर की खपरैल
पानी के साथ गिरते ओलों से
घबरा गई माँ
और बढ़ गई पिता की चिंता

माँ टपकती छत के नीचे से
सामान हटाती हुई
कोसने लगी इंद्र को

पिता खटिया पर बिछी
कथरी उठा जा बैठे पौर में
और उखड़ती हुई साँस से
चिल्ला रहे थे
“गेहूँ भीतर धरो
कपड़ा लत्ता उठा लो
चखिया पे फट्टा डार दो”

असमय बरसात से
बैठ गया माँ बाप का कलेजा
और मैंने डबडबाई आँखों से
पूरे घर को हिलते हुए देखा

हरगोविन्द पुरी

8. Varsha Poem in Hindi – मैं सैलानी- तुम सैलानी

मैं सैलानी- तुम सैलानी
गति दोनों की ही मनमानी।
पलती है भीतर दोनों के –
एक कुँआरी पीर अजानी।

दोनों में हैं घुटन भरी –
दोनों में पानी है
बादल! मेरी और तुम्हारी
एक कहानी है।

अनगिन रूप-धरे जीने को
लिए-लिए छलनी सीने को
कहाँ-कहाँ भटके हैं हम-तुम
लेकर अपना यौवन गुमसुम।

फिर गाँव, बस्ती में बन में
कुछ न कहीं पाया जीवन में
फिर भी हँसते रहे सदा-
कैसी नादानी है।

हमने जितने स्वप्न सँवारे
मौसम पर बंधक हैं सारे
कितने ही दिन हम ऋतुओं के
आगे रोए – हाथ पसारे।

कहकर सबसे दुआ बंदगी
धुआँ-धुआँ हो गई ज़िंदगी
हम पर बची नहीं
कोई भी नेह निशानी है।

कन्हैयालाल बाजपेयी

9. वर्षा ऋतु पर कविता – क्षितिज से उठ कर

क्षितिज से उठ कर
विषैले बादलों में सनसनाता आता है तूफ़ान
झुलसती कोटरों में चिड़ियाँ टहनियाँ पेड़ों की!

झुका लूँगा शीश तब
उड़ाए झुलसाएगा जब तूफ़ान
यह रुखे सूखे बालों को।
शीश पर सह लूँगा
वेग सब प्रकृति के विकृत तूफ़ान का।

कड़कती उल्का आकाश में
विचलित करती है मानव में अंतर्हित ज्योति को।

बढूँगा आगे और
शांत होगा, जब विष वातावरण
अथवा यों शीश झुका
खड़ा हुआ अचल, एकांत स्थल पर,
देखूँगा भस्मसात होती है कैसे वह अंतर्ज्योति,
पाता है जय कैसे,
मानव पर कैसे यह विकृत प्रकृति का तूफ़ान।

रामविलास शर्मा

10. Varsha Ritu Poem – मेह क्या बरसा

मेह क्या बरसा
घरों को लौट आए
नेह वाले दिन

हाट से लौटे कमेरे
मुश्किलों से मन बचा कर
लौट आए छंद में कवि
शब्द की भेड़ें चरा कर

मेह क्या बरसा
भले लगने लगे हैं
स्याह काले दिन

कोप घर से लौट
धरती ने हरी मेहँदी रचाई
वीतरागी पंछियों ने
गीतरागी धुन बनाई

मेह क्या बरसा
लगे मुरली बजाने
गोप ग्वाले दिन

कुरकुरे रिश्ते बने
कड़वे कसैले पान थूके
उमंगें छत पर चढ़ीं
मैदान में निकले बिजूके

मेह क्या बरसा
सभी ने हाथ में लेकर
उछाले दिन

महेश अनघ

11. Poem on Varsha Ritu in Hindi – वर्षा के स्वागत में तोते

वर्षा के स्वागत में तोते
उड़ते नभ में खुश होते

सारस ऊंची टेर लगाते
दूर -दूर तक उड़ते जाते

कुहू-कुहू कर रहे पपीहे
नव साहस भर रहे पपीहे

रही न पीछे कहीं टिटहरी
सखी बनी वर्षा की गहरी

बता रहे बच्चे बकरी के
उछल-कूद के नए तरीके

फुदक रही चिड़िया की टोली
बादल है सबके हमजोली

ताक रही बच्चो की बारी
नाव चलाने की तैयारी

बादल बरसे लगा ठहाके
आसमान में बगुले झांकें

डॉ. जगदीशचंद्र शर्मा

12. Poem on Rainy Season in Hindi – मेरे बचपन की बारिश बड़ी हो गयी

मेरे बचपन की बारिश बड़ी हो गयी..!

ऑफिस की खिड़की से जब देखा मैने,मौसम की पहली बरसात को….
काले बादल के गरज पे नाचती, बूँदों की बारात को…

एक बच्चा मुझसे निकालकर भागा था भीगने बाहर…
रोका बड़प्पन ने मेरे, पकड़ के उसके हाथ को…!

बारिश और मेरे बचपने के बीच एक उम्र की दीवार खड़ी हो गयी…
लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी..

वो बूँदें काँच की दीवार पे खटखटा रही थी…
मैं उनके संग खेलता था कभी, इसीलिए बुला रही थी..
.
पर तब मैं छोटा था और यह बातें बड़ी थी…
तब घर वक़्त पे पहुँचने की किसे पड़ी थी…

अब बारिश पहले राहत, फिर आफ़त बन जाती है…
जो गरज पहले लुभाती थी,वही अब डराती है….

मैं डरपोक हो गया और बदनाम सावन की झड़ी हो गयी…
लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी..

जिस पानी में छपाके लगाते, उसमे कीटाणु दिखने लगा…
खुद से ज़्यादा फिक्र कि लॅपटॉप भीगने लगा…

स्कूल में दुआ करते कि बरसे बेहिसाब तो छुट्टी हो जाए…
अब भीगें तो डरें कि कल कहीं ऑफिस की छुट्टी ना हो जाए…

सावन जब चाय पकोड़ो की सोहबत में इत्मिनान से बीतता था,
वो दौर, वो घड़ी बड़े होते होते कहीं खो गयी..

लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी..

अभिनव नागर

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