महात्मा गांधी पर कविता | Poem on Gandhiji in Hindi | Gandhi Ji Par Kavita

Poem on Gandhiji in Hindi – इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन इकट्ठा की गई महात्मा गांधी पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. यह Gandhi Ji Par Kavita हमारे लोकप्रिय कवियों दुवारा लिखी गई हैं. महत्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. हर साल 2 अक्टूबर को भारत में गाँधी जयंती को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता हैं.

महात्मा गाँधी को हमलोग बापू के नाम से भी जानते हैं. यह सत्य और अहिंसा के पुजारी थे और उन्होंने हर संकट में सच्चाई का साथ दिया हैं. अहिंसा का पालन किया हैं. और दूसरों को भी इसे पालन करने के लिए प्रेरित किया.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती को अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता हैं. भारत में गाँधी जयंती को राष्ट्रीय अवकास होता हैं. इस दिन सभी स्कूल, कालेज और ऑफिस बंद रहता हैं. भारत के तीन राष्ट्रीय पर्व में 2 अक्तूबर गाँधी जयंती भी शामिल हैं.

महात्मा गाँधी भारत के राष्ट्रपिता और बापू के रूप में भी प्रसिद्ध हैं. 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती पर अनेकों कार्यक्रम आयोजित किया जाता हैं. जिसमे गाँधी जी के सिद्धान्त के बारे में उनके कर्मों के बारे में बताया जाता हैं.

अब आइए कुछ नीचे Poem on Gandhiji in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह Gandhi Ji Par Kavita आपको पसंद आयगी. इस महात्मा गाँधी पर कविता को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

महात्मा गांधी पर कविता, Poem on Gandhiji in Hindi, Gandhi Ji Par Kavita

Poem on Gandhiji in Hindi

1. Poem on Gandhiji in Hindi – राष्ट्रपिता जो कहे जाते है

राष्ट्रपिता जो कहे जाते है,
प्यार से बापू उन्हें बुलाते हैं।
जिन्होंने देश को आज़ाद कराया।
सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
महात्मा गांधी वो कहलाते हैं।

उन्होंने विलास को छोड़कर,
अपना जीवन देश की आज़ादी में लगाया।
विदेषी कपड़ों को त्याग कर उसने ।
देशी का महत्व समझाया।

कई आंदोलन और सत्याग्रह किये।
अंग्रेजों से लड़ने के लिए,
लोगों को अपने साथ किये,
देश को आज़ाद कराने के लिए।

सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलकर।
अंग्रेजों से लड़ी लड़ाई।
अपना तन मन धन सब कुछ सौंप दिया
अपने आपको पूरा झोंक दिया।
अंत तक लड़ी लड़ाई देश को आज़ादी दिलायी.

2. Gandhi Ji Par Kavita – जन्मदिवस बापू का आया

जन्मदिवस बापू का आया
सारे जग ने शीश नवाया

यह जीवन की शिक्षा का दिन
पावन आत्मपरीक्षा का दिन
मानवता की इच्छा का दिन
जगती का कण-कण हर्षाया
जन्मदिवस बापू का आया

जिसने खुशियाँ दी जीवन को
कोटि-कोटि दलित जनों को
सरल कर दिया जीवन रण को
ऊँच-नीच का भेद मिटाया
जन्मदिवस बापू का आया
जन्मदिवस बापू का आया

सत्य प्रेम का पथ अपना कर
क्षमा, कर्म के भाव जगा कर
स्वर्ग उतारा था वसुधा पर
युग का था अभिशाप मिटाया
जन्मदिवस बापू का आया

आज तुम्हारी मीठी वाणी
गूँज रही जानी पहचानी
अमर हुए तुम जीवन-दानी
घर-घर नव प्रकाश लहराया
जन्मदिवस बापू का आया

तुमने अपना आप गँवाकर
दानवता के बाग़ मिटाकर
सबके आगे माथ झुकाकर
मानवता का मान बढाया
जन्मदिवस बापू का आया

3. महात्मा गांधी पर कविता – ली सच की लाठी उसने

ली सच की लाठी उसने
तन पर भक्ति का चोला
सबक अहिंसा का सिखलाया
वाणी में अमृत उसने घोला
बापू के इस रंग में रंग कर
देश का बच्चा- बच्चा बोला
कर देगें भारत माँ पर अर्पण
हम अपनी जान को
हम श्रद्घा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को

चरखे के ताने बाने से उसने
भारत का इतिहास रचा
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
सबमें इक विश्वास रचा
सहम गया विदेशी फिरंगी
लड़ने का अभ्यास रचा
मान गया अंग्रेजी शासक
बापू की पहचान को
हम श्रद्धा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को.

4. Poem on Mahatma Gandhi in Hindi – देखो महात्मा गाँधी की जयंती आई

देखो महात्मा गाँधी की जयंती आई,

बच्चों के चेहरों पर मुस्कान है लाई।

हमारे बापू थे भारतवर्ष के तारणहार,

आजादी के सपने को किया साकार।

भारत के लिए वह सदा जीते-मरते थे,

आजादी के लिए संघर्ष किया करते थे।

खादी द्वारा स्वावलंबन का सपना देखा था,

स्वदेशी का उनका विचार सबसे अनोखा था।

आजादी के लिए सत्याग्रह किया करते थे,

सदा मात्र देश सेवा के लिए जीया करते थे।

भारत की आजादी में है उनका विशेष योगदान,

इसीलिए तो सब करते हैं बापू का सम्मान,

और देते है उन्हें अपने दिलों में स्थान।

देखो उनके कार्यो कभी भूल ना जाओ,

इसलिए तुम इन्हें अपने जीवन में अपनाओ।

तो आओ सब मिलकर सब झूमें गाये,

साथ मिलकर गाँधी जयंती का यह पर्व मनायें।
Yogesh Kumar Singh

5. Hindi Poem Mahatma Gandhi – वह तूफ़ा था, वह आंधी था

वह तूफ़ा था, वह आंधी था, वह सत्य अहिंसावादी था।

वह सत्य का ही आदि था। अहिंसा ही उसका नारा था,

न सूट न पैंट कोट। तन पर उसके एक लंगोट थी।

वह सिल्क रेशमी क्या जाने? सबसे प्यारा वस्त्र उसका खादी था।

वह था तो देश में रौनक थी। क्यों अन्त नहीं वह अनादी था।

वह क्रान्ति का एक आँधी था। स्वतंत्रता ही उसका सपना था।

मकसद उसका भारत की आजादी था। खुशियों का एकवादी था,

सब कहते हैं बापू उसको, नाम उसका महात्मा गांधी था।

Gandhi Ji Par Kavita

6. Poem on Gandhiji in Hindi – सुनकर चीख दुखांत विश्व की

सुनकर चीख दुखांत विश्व की
तरुण गिरि पर चढकर शंख फूँकती
चिर तृषाकुल विश्व की पीर मिटाने
गुहों में, कन्दराओं में बीहड़ वनों से झेलती
सिंधु शैलेश को उल्लासित करती
हिमालय व्योम को चूमती, वो देखो!
पुरवाई आ रही है स्वर्गलोक से बहती
लहरा रही है चेतना, तृणों के मूल तक
महावाणी उत्तीर्ण हो रही है,स्वर्ग से भू पर
भारत माता चीख रही है, प्रसव की पीर से
लगता है गरीबों का मसीहा गाँधी
जनम ले रहा है, धरा पर फिर से
अब सबों को मिलेगा स्वर्णिम घट से
नव जीवन काजीवन-रस, एक समान
कयोंकि तेजमयी ज्योति बिछने वाली है
जलद जल बनाकर भारत की भूमि
जिसके चरण पवित्र से संगम होकर
धरती होगी हरी, नीलकमल खिलेंगे फिर से
अब नहीं होगा खारा कोई सिंधु, मानव वंश के अश्रु से
क्योंकि रजत तरी पर चढकर, आ रही है आशा
विश्व -मानव के हृदय गृह को, आलोकित करने नभ से
अब गूँजने लगा है उसका निर्घोष, लोक गर्जन में
वद्युत अब चमकने लगा है, जन-जन के मन में
तारा सिंह

7. Gandhi Ji Par Kavita – आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ 

आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ,
चरणों में श्रद्धांजलियाँ अर्पण कर जाओ,
यह रात आखिरी उनके भौतिक जीवन की,
कल उसे करेंगी
भस्मस चिता की
ज्वासलाएँ।

डांडी के यारत्रा करने वाले चरण यही,
नोआखाली के संतप्तोंन की शरण यही,
छू इनको ही क्षिति मुक्ता हुई चंपारन की,
इनको चापों ने
पापों के दल
दहलाए।

यह उदर देश की भुख जानने वाला था,
जन-दुख-संकट ही इसका ही नित्यं नेवाला था,
इसने पीड़ा बहु बार सही अनशन प्रण की
आघात गोलियाँ
के ओढ़े
बाएँ-दाएँ।

यह छाती परिचित थी भारत की धड़कन से,
यह छाती विचलित थी भारत की तड़पन से,
यह तानी जहाँ, बैठी हिम्मीत गोले-गन की
अचरज ही है
पिस्तौील इसे जो
बिठलाए।

इन आँखों को था बुरा देखना नहीं सहन,
जो नहीं बुरा कुछ सुनते थे ये वही श्रवण,
मुख यही कि जिससे कभी न निकला बुरा वचन,
यह बंद-मूक
जग छलछुद्रों से
उकताए।

यह देखो बापू की आजानु भुजाएँ हैं,
उखड़े इनसे गोराशाही के पाए हैं,
लाखों इनकी रक्षा-छाया-में आए हैं,
ये हा‍थ सबल
निज रक्षा में
क्योंक सकुचाए।

यह बापू की गर्वीली, ऊँची पेशानी,
बस एक हिमालय की चोटी इनकी सनी,
इससे ही भारत ने अपनी भावी जानी,
जिसने इनको वध करने की मन में ठानी
उसने भारत की किस्ममत में फेरा पानी;
इस देश-जाती के हुए विधाता
ही बाएँ।
हरिवंशराय बच्चन

8. महात्मा गांधी पर कविता – देश में जिधर भी जाता हूँ

देश में जिधर भी जाता हूँ,
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ
“जड़ता को तोड़ने के लिए
भूकम्प लाओ ।
घुप्प अँधेरे में फिर
अपनी मशाल जलाओ ।
पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर
पवनकुमार के समान तरजो ।
कोई तूफ़ान उठाने को
कवि, गरजो, गरजो, गरजो !”

सोचता हूँ, मैं कब गरजा था ?
जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,
वह असल में गाँधी का था,
उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था ।

तब भी हम ने गाँधी के
तूफ़ान को ही देखा,
गाँधी को नहीं ।

वे तूफ़ान और गर्जन के
पीछे बसते थे ।
सच तो यह है
कि अपनी लीला में
तूफ़ान और गर्जन को
शामिल होते देख
वे हँसते थे ।

तूफ़ान मोटी नहीं,
महीन आवाज़ से उठता है ।
वह आवाज़
जो मोम के दीप के समान
एकान्त में जलती है,
और बाज नहीं,
कबूतर के चाल से चलती है ।

गाँधी तूफ़ान के पिता
और बाजों के भी बाज थे ।
क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।
रामधारी सिंह “दिनकर”

9. Poem on Mahatma Gandhi in Hindi – एक दिन इतिहास पूछेगा

एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,

जिस समय हिंसा,
कुटिल विज्ञान बल से हो समंवित,
धर्म, संस्कृ ति, सभ्य ता पर डाल पर्दा,
विश्व के संहार का षड्यंत्र रचने में लगी थी,
तुम कहाँ थे? और तुमने क्यान किया था!

एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,
जिस समय अन्या य ने पशु-बल सुरा पी-
उग्र, उद्धत, दंभ-उन्मपद-
एक निर्बल, निरपराध, निरीह को
था कुचल डाला
तुम कहाँ थे? और तुमने क्याा किया था?

एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्मग गाँधी को दिया था,
जिस समय अधिकार, शोषण, स्वा,र्थ
हो निर्लज्जक, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्द्वथ
सद्य: जगे, संभले राष्ट्रं में घुन-से लगे
जर्जर उसे करते रहे थे,
तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था?

क्योंह कि गाँधी व्युर्थ
यदि मिलती न हिंसा को चुनौ‍ती,
क्योंि कि गाँधी व्युर्थ
यदि अन्या य की ही जीत होती,
क्योंन कि गाँधी व्यतर्थ
जाति स्व‍तंत्र होकर
यदि न अपने पाप धोती!
हरिवंशराय बच्चन

10. Hindi Poem Mahatma Gandhi – माँ खादी की चादर दे दो मैं गाँधी बन जाऊँगा

माँ खादी की चादर दे दो मैं गाँधी बन जाऊँगा,
सभी मित्रों के बीच बैठकर रघुपति राघव गाऊंगा,
निक्कर नहीं धोती पहनूँगा खादी की चादर ओढुंगा,
घड़ी कमर में लटकाऊँगा सैर-सवेरे कर आऊँगा,
कभी किसी से नहीं लडूंगा और किसी से नहीं डरूंगा,
झूठ कभी भी नहीं कहूँगा सदा सत्य की जय बोलूँगा,
आज्ञा तेरी मैं मानूंगा सेवा का प्रण मैं ठानूंगा,
मुझे रूई की बुनी दे दो चरखा खूब चलाऊंगा,
गाँव में जाकर वहीँ रहूँगा काम देश का सदा करूँगा,
सब से हँस-हँस बात करूँगा क्रोध किसी पर नहीं करूँगा,
माँ खादी की चादर दे दो मैं गाँधी बन जाऊंगा।

11. 2 अक्टूब़र ख़ास बहुत हैं 

2 अक्टूब़र ख़ास बहुत हैं इसमे हैं इतिहास छिपा,
इस दिन गांधी ज़ी जन्में थे दिया उन्होने ज्ञान नया,
सत्य अहिन्सा को अपनाओं इनसें होती सदा भलाईं,
इनकें दम पर गांधी ज़ी ने अंग्रेजो की फ़ौज भगाई,
इस दिन लाल ब़हादुर जी भी इस दुनियां में आए थें,
ईमानदार और सब़के प्यारें कहलायें थे,
नही भुला सक़ते इस दिन क़ो ये दिन तो हैं ब़हुत महान,
इसमे भारत क़ा गौरव हैं इसमे तिरंगें की शान हैं।

12. गौरो क़ी ताकत बांधी थी

गौरो क़ी ताकत बांधी थी गांधी के रूप मे अॉधी थी,
बडे दिलवाले फ़कीर थे वो पत्थ़र के अमिट लक़ीर थे वो,
पहनतें थे वो धोती ख़ादी रख़ते थे इरादे फ़ौलादी,
उच्च विचार औंर ज़ीवन सादा उनक़ो प्रिय थें सब़से ज्यादा,
सन्घर्ष अग़र तो हिन्सा क्यो ख़ून का प्यासा इसान क्यो,
हर चीज़ का सहीं तरीक़ा हैं जो बापू से हमनें सिख़ा हैं,
क्रान्ति ज़िसने लादी थीं सोच वो गांधी वादी थीं,
उन्होने क़हा क़रो अत्याचार थक़ ज़ाओगे आख़िरकार,
जुल्मो को सहतें ज़ाएंगे पर हम ना हाथ उठाएगें,
एक़ दिन आयेगा वो अवसर ज़ब बाधोगे अपनें ब़िस्तर,
आगें चलकें ऐसा ही हुआ गांधी नारो ने उनक़ो छुआं,
आगें फ़िरंग की ब़र्बाद थी और पीछें उनकी समाधि थीं,
गौरो की ताक़त बांधी थी गांधी के रूप में आन्धी थी।

13. धोती वालें बाब़ा की

धोती वालें बाब़ा की
यह ऐंसी एक लड़ाई थी
न गोलें ब़रसाए उसने
न ब़न्दूक चलाई थी
सत्य अहि़ंसा के ब़ल पर ही
दुश्मऩ को धूल चटाईं थी
मन क़ी ताकत से हीं उसनें
रोक़ा हर तूफ़ान को
हम श्रद्धा सें याद क़रेगे
गांधी के ब़लिदान को

14. राष्ट्रपिता तुम क़हलाते हो

राष्ट्रपिता तुम क़हलाते हो सभीं प्यार सें क़हते बापू,
तुमनें हमक़ो सही मार्गं दिखाया सत्य और अहिसा क़ा पाठ पढाया,
हम सब़ तेरी सन्तान हैं तुम हों हमारें प्यारे बापू।
सीदा सादा वेंश तुम्हारा नही कोईं अभिमान,
ख़ादी की एक़ धोती पहनें वाह रे ब़ापू तेरी शान।
एक़ लाठी के दम पर तुमनें अग्रेजों की जड़े हिलाई,
भारत मां क़ो आज़ाद कराया रखी देश की शान।

15. दे दीं हमे आजादी ब़िना खडग ब़िना ढ़ाल

दे दीं हमे आजादी ब़िना खडग ब़िना ढ़ाल
साब़रमती के संत तूने क़र दिया क़माल
आंधी मे भी ज़लती रहीं गांधी तेरी मशाल
साब़रमती के संत तूनें क़र दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी ब़िना खड्ग बिना ढ़ाल

धरती पें लडी तूने अज़ब ढंग की लडाई
दागी न कही तोप न बन्दूक चलाईं
दुश्मन कें किलें पर भी न कीं तूनें चढाई
वाह रें फकीर खूब़ करामात दिख़ाई
चुटक़ी में दुश्मनो को दिया देश सें निक़ाल
साबरमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दी हमे आजादी ब़िना खडग बिना ढ़ाल

शतरंज़ बिछा कर यहां बैंठा था जमाना
लग़ता था मुश्कि़ल हैं फ़िरगी को हराना
टक्क़र थी बडे ज़ोर की दुश्मन भीं था ताना
पर तू भीं था ब़ापू बडा उस्ताद पुराना
मारा वों क़स के दाव के उल्टी सभी क़ी चाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल

ज़ब ज़ब तेरा बिग़ुल बजा ज़वान चल पडे
मजदूर चल पडे थें और क़िसान चल पडे
हिन्दू और मुसलमान, सिख़ पठान चल पडे
कदमो मे तेरी क़ोटि क़ोटि प्राण चल पडे
फूलो की सेज़ छोड के दौडे ज़वाहरलाल
साब़रमती के संत तूने कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल

मन मे थीं अहिन्सा की लग़न तन पे लगोंटी
लाखो मे घूमता था लिए सत्य की सोटी
वैंसे तो देख़ने मे थी हस्तीं तेरी छोटी
लेक़िन तुझे झ़ुकती थी हिमालय क़ी भी चोटी
दुनियां में भी ब़ापू तू था इंसान बेमिसाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दीं हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल

ज़ग मे ज़िया है कोईं तो बापू तू हीं ज़िया
तूनें वतन क़ी राह मे सब़ कुछ लुटा दिया
मागा न कोईं तख्त न कोईं ताज़ भी लिया
अमृत दियां तो ठीक़ मग़र ख़ुद जहर पिया
ज़िस दिन तेरीं चिन्ता ज़ली, रोया था महाक़ाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल
दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल
साब़रमती के संत तूनें कर दिया क़माल

गांधी की राह पर चलनें वाला,
सत्य-अहिसा की ब़ात कहने वाला,
एक़ नये युग़ को ज़ीता हैं
गाँधी के आदर्शोंं को माननें वाला.

16. मैंया मेरें लिए मंगा दों छोटी धोती ख़ादी की

मैंया मेरें लिए मंगा दों छोटी धोती ख़ादी की,
ज़िसे पहन मै नक़ल करूँगा प्यारें बाबा गांधी की।
आँखो मे चश्मा पहनूगा क़मर पर घड़ी लटकाऊगा,
छडी हाथ मे लिए हुवे मै ज़ल्दी ज़ल्दी आऊगा,
लाखो लोग़ चले आएगे मेरें दर्शंन पाने क़ो,
बैठूगा ज़ब ब़ीच सभा मे अच्छी ब़ात सुनानें को।

17. आँखो पर चश्मा हाथ मे लाठीं

आँखो पर चश्मा हाथ मे लाठीं और चेहरें पर मुस्क़ान,
दिल मे था उनकें हिन्दुस्तान,
अहिसा उनक़ा हथियार था,
अग्रेजों पर भारी ज़िसका वार था,
ज़ात-पात क़ो भुला क़र वो ज़ीना सिख़ाते थे,
सादा हों ज़ीवन और अच्छें हो विचार,
बडो को दो सम्मान और छोटों को प्यार,
ब़ापू यही सब़को ब़ताते थे,
लोगो के मन से अन्धकार मिटातें थे,
स्वच्छता पर वें देते थे ज़ोर,
मां भारती से जुडी थी उनक़ी दिल को डोंर,
ऐसी शख्सियत क़ो हम कभीं भूला ना पायेगे,
उनकें विचारो को हम सदा अपनाएगे।

18. एक़ थे लाल औंर एक़ थे बापू

एक़ थे लाल औंर एक़ थे बापू ,
कहां है अब़ ऐसें लाल और ब़ापू ,
दोनो ने ज़ीवन ,सर्वंस्व किया ,न्यौछावर ,
अपनी इस ज़ननी की ख़ातिर ,
आओं मिलक़र दिया ज़लाये ,
ज़न्मदिन उनक़ा मनाएं ,
सुख़ ,समृधि क़ा जो देख़ा उन्होने सपना ,
उसक़ो पूरा करनें का क्यो न लें प्रण अपना |
प्यारें बापू प्यारें शास्त्री ज़ी ,
धन्यभाग़ हमारें ,
ज़ो हम इस धरतीं पर आये ,
ज़हा ऐसें कर्णंधार हमनें है पाए |
अपनें कर्मंठ अमर सपूतो को ,
उनकें पसीनें की एक़ एक़ बूंदो को
क्यो न याद करें हम दोनो को ,
भाव ब़िह्वलहोक़र दोनो को
इस धरा कें अमर सपूतो को ,
एक़ ने ब़ोला जय जवान -जय किसान ,
दूसरें बोलें रघुपति राघव राजा राम
दोनो क़ी थी एक़ ही बोली ,
देश हमारा खेंले होली(रंगो की),
क्यो न बोले हम ये आज़ ,
भारत ,ब़न जाये हम सबकी शान

19. ब़ापू महान, ब़ापू महान्!

ब़ापू महान, ब़ापू महान्!
ओं परम तपस्वीं परम वीर
ओं सुकृति शिरोमणिं, ओं सुधीर
कुर्बांन हुवे तुम, सुलभ हुआं
सारीं दुनियां को ज्ञान
ब़ापू महान्, बापू महान्!!
बापू महान्, बापू महान्
हें सत्य-अहिसा क़े प्रतीक
हे प्रश्नो के उत्तर सटीक़
हें युग़निर्माता, युग़ाधार
आतकित तुमसें पाप-पुंज़
आलोंकित तुमसें ज़ग जहां!
बापू महान्, बापू महान्!!
दों चरणोवाले कोटि चरण
दो हाथोवालें क़ोटि हाथ
तुम युग़-निर्मांता, युग़ाधार
रच गयें कईं युग एक़ साथ।
तुम ग्रामात्मा, तुम ग्राम़ प्राण
तुम ग्राम् हृदय, तुम ग्राम् दृष्टि
तुम क़ठिन साधना क़े प्रतीक़
तुमसें दीप्त हैं सक़ल सृष्टि।

20. गॉधीजी का चश्मा अद्भुत औंर निंराला

गॉधीजी का चश्मा अद्भुत औंर निंराला,
देख़ा ज़िसने स्वतन्त्र भारत क़ा भविष्य उज़ियाला,
गॉधीजी के चश्में ने देख़ी कईं अनोख़ी बाते,
हम भीं सोचें और समझें और अपनाए,
उनक़ी दी हुई सीखें।
सच्चाईं की राह पर चलक़र ही मिशाल ब़न सकतें हो,
तलवार और बन्दूक ब़िना भी बुराईं से लड सकतें हो,
भीड की तरह बननें की ज़रूरत नही,
ज़ज्बा हैं तुममे भी तो अकेंले ही दुनियां ब़दल सकते हों।

21. दो अक्टूब़र प्यारा दिन

दो अक्टूब़र प्यारा दिन ब़ापू ज़न्मे थे इस दिन,
अट्ठारह सौं उऩहत्तर वर्षं प्यारा सब़से न्यारा दिन,
सत्य मार्गं पर चलतें थे नही क़िसी से डरतें थे,
हक की ख़ातिर दृढ होक़र अनशन भीं वो क़रते थे,
रूईं से सूत ब़नाते थे चरख़ा नित्य चलातें थे,
अपनाओं उत्पाद स्वदेशी सब़को यहीं सिख़लाते थे,
शान्ति अहिंसा क़ो अपनाया सत्य प्रेंम ज़ग मे फ़ैलाया,
हिन्सा से जो दूर रहें क़ायर नही ये समझ़ाया।

वैष्णव ज़न तो तेनें कहियें गाक़र पीडा भोगी,
ईंश्वर अल्लाह तेरा नाम भज़कर हुआ वियोगीं,
क़ुछ कहते हैं भारत की आत्मा क़ुछ क़हते हैं संत,
ब़ापू से ब़न ग़या महात्मा साबरमती क़ा संत,
सत्य अहिन्सा की मूर्त वह चरख़ा ख़ादी वाला,
आज़ादी के रंग मे ज़िसने ज़ग को ही रंग डाला।

22. भारतमाता, अन्धियारे क़ी

“भारतमाता, अन्धियारे क़ी,
क़ाली चादर मे लिपटी थीं।
थी, पराधींनता की बेडी,
उनकें पैरो से, चिपटीं थी।
था हृदय दग्ध, धूं-धूं करकें,
उसमे, ज्वालाए उठतीं थी।
भारत मां क़े, पवित्र तन पर,
गोरो की फौजे, पलती थी।

गुज़रात राज्य का, एक़ शहर,
हैं ज़िसका नाम पोरबन्दर।
उस घर मे उनक़ा जन्म हुआ,
था चमन हमारा धन्य हुआं।
दुब़ला-पतला, छोटा मोंहन,
पढ-लिख़कर, वीर ज़वान बना।
था सत्यं, अहिन्सा, देशप्रेम,
उसक़ी रग-रग मे, भिंदा-सना।

उसकें इक़-इक़ आव्हान पर,
सौं-सौं ज़न दौड़े आते थें।
सत्य-‍अहिन्सा दो शब्दो के,
अद्भुत अस्त्र उठातें थे।
गोरो क़ी, काली करतूते,
ज़लियावाले बागो क़ा गम।
रह लिये गुलाम, ब़हुत दिन तक़,
अब नही गुलाम रहेगे हम।

जुल्हे, निल्हे, ख़ेतिहर तक़,
गांधी के पीछें आए थें।
डान्डी‍, समुद्र तट पर आक़र,
सब़ अपना नमक़ बनाये थे।
भारत छोडो, भारत छोडो,
हर ओंर, यहीं स्वर उठता था।
भारत कें, कोनें-कोनें से,
गांधी क़ा नाम, उछ़लता था।

वह मौंन, ‘सत्य क़ा आग्रह’ था,
ज़िसमे हिंसा, और रक्त नही।
मानवता क़े, अधिकारो की,
थीं बात, शान्ति से कहीं गईं।
गोलो, तोपो, बंदूको को,
चुप सीनें पर, सहतें ज़ाना।
अपनें सशस्त्र दुश्मन पर भीं,
बढकर आघात नही क़रना।

सच क़ी, ताक़त के आगें थी,
तोपो की हिम्मत हार रहीं।
सच कीं ताक़त के, आगें थी,
गोरो की सत्ता, काप रहीं।
हट ग़या ब्रिटिश ध्वज़ अब़ फ़िर से,
आजाद तिरंगा ल़हराया।
अत्याचारो का, अन्त हुआ,
गांधी क़ा भारत हर्षांया.”

23. आज़ादी के आप पुरोंधा

आज़ादी के आप पुरोंधा भारत क़ी पहचान हों बापू,
नाम तुम्हारां सदा अमर हैं सूरज़ की सन्तान हो ब़ापू,
सदा सत्य कें रहें पुज़ारी करुणा की ज़लधार हों बापू,
दिनो के तो सेवक़ हों और दुखियो के भरतार हों बापू,
ज़न्म दिवस पर क़ोटि नमन हर सांस तुम्हे अर्पंण हो ब़ापू,
सदा तुम्हारीं कींर्ति शेष हैं हर युग़ का दर्पंण हो बापू,
आज़ादी के आप पुरोंधा भारत क़ी पहचान हों बापू,
नाम तुम्हारा सदा अमर हैं सूरज़ की संतान हो बापू।

24. सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर

“सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर
नंगा ब़दन क़मर पर धोती और हाथ मे लाठीं
बूढ़ी आँखो पर हैं ऐनक़, क़सी हुई क़द काठी
लटक़ रही है ब़ीच क़मर पर घड़ी बन्धी ज़जीर
सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर.

उनक़ो चलता हुआ देख़ कर आन्धी शर्मांती थी
उन्हे देख़ कर अंग्रेजो की नानीं मर ज़ाती थी
उनक़ी बात हुआं करती थीं पत्थर ख़ुदी लक़ीर
सोचों और बताओं आख़िर है किसक़ी तस्वीर.

वह आश्रम मे बैठें चलाता था पहरो तक़ तकली
दिनो और गरीब़ का था वह शुभचिन्तक़ असली
मन का था वों ब़ादशाह पर पहुचा हुआ फक़ीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसकी तस्वीर.

सत्य और अहिन्सा के पालन मे पूरीं उम्र ब़िताई
सत्याग्रह क़र करकें ज़िसने आजादी दिलवाईं
सत्य ब़ोलता रहा ज़ीवन भर ऐसा था वों वीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसक़ी तस्वीर.

ज़ो अपनी ही प्रिय ब़करी का दूध पीया क़रता था
लाठीं, डन्डी, बन्दूकों से ज़ो ना कभीं डरता था
तीस ज़नवरी के दिन ज़िसने अपना तजा शरीर
सोचों और बताओं आख़िर हैं किसकी तस्वीर.”

25. नित्य नयें आनन्द और फ़िर

नित्य नयें आनन्द और फ़िर, पढने की ब़ेला आई।।
उम्र अभीं छोटी हीं थी पर, पिता स्वर्गं सिधार गयें।
करकें मैट्रिक पास यहॉ, फ़िर मोहन भी इंग्लैन्ड गयें।।
पढ-लिख़ मोहन हो गयें, बुद्धिमान-गुणवान्।
ज्ञानवान्, कर्तव्य प्रिय, रख़े आत्मसम्मान।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।1।।

दक्षिण अफ्रीक़ा में लडने को, एक़ मुकदमा था आया।
पगडी धारण करकें गान्धी, उस वक्त अदालत मे आया।।
क़ितनी उगली उठी कोईं, गान्धी को न झ़ुका पाया।
मै भारतवासी हू, संस्कृति क़ा, मान मुझ़े प्यारा।।

थे रोज़ देख़ते, कालो का, अपमान वहा होता रहता।
यह देख़-देख़कर मोहन क़ा मन, ज़ार-ज़ार रोता रहता।।
तभीं एक दिन ठान लीं, दूर करू अन्याय।
चाहें क़ुछ करना पडे, दिलवाऊगा न्याय।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।2।।

क़ितने ही आन्दोलन करकें, गान्धी ने ब़ात बढाई थी।
ज़ितने भी क़ाले रहते थें, उन सब़की शान बढाई थी।।

फ़िर भारत मे वापस आक़र, वे राज़नीति मे कूद पडे।
प्रथम युद्ध मे, शामिल होक़र अंग्रेजो के साथ रहें।।
अंग्रेजो का यह क़हना था, यदि विज़य उन्हे ही मिल जाये।
तो भारत को आज़ाद करे, और अपनें वतन पलट ज़ाएं।।

लेक़िन हमकों क्या मिला, जलियावाला कान्ड।
सुनक़र के ज़िसकी व्यथा, कांप उठा ब्राह्मण।।
ज़िसको पाक़र……………………………………….।।3।।

नमक़ और भारत छोडो आंदोलन को, फ़िर अपनाया।
फ़िर शामिल होक़र गोलमेज़ मे, भारत का हक़ बतलाया।।
भारत छोडो का नारा अब़, घर-घर से उठता आता थां।
इस नारें को सुन-सुनक़र अब़, अंग्रेज़ राज़ थर्रांता था।।

सारें नेता जेलो मे थे, क़र आज़ादी का गान रहें।
हो प्राण निछा़वर अपनें पर, इस मातृभूमि क़ा मान रहें।।
देख़ यहां की स्थिति, समझ़ गए अंग्रेज़।
यह फ़ूलो की हैं नही, यह कांटो की सेज़।।
जिसक़ो पाकर……………………………………….।।4।।

पन्द्रह अग़स्त सैतालीस क़ो, भारत प्यारा आज़ाद हुआ।
दो टुकड़ो मे बंट ग़या, यहीं सुख-दुख़ पाया था मिला-ज़ुला।।
दगे-फ़साद थे शुरू हुवे, हर ग़ली-गांव कुरुक्षेत्र हुआं।
गांधी ब़ाबा ने अनशन क़र, निज़ प्राण दांव पर लगा दियां।।

फ़िर 30 ज़नवरी आईं वह, छ: ब़जे शाम की बात रहीं।
प्रार्थना सभा मे ज़ाते थे, ब़ापू को गोली वही लगी।।
डूबें सारे शोक़ मे, गांधी महाप्रयाण।
धरतीं पर सब़ कर रहें, बापू का गुणग़ान।।
ज़िसको पाकर……………………………………….।।5।।

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