बेटी पर कविता | Poem on Daughter in Hindi | Beti Par Kavita

Poem on Daughter in Hindi – इस पोस्ट में मैंने कुछ बेहतरीन Beti Par Kavita के संग्रह को इकठ्ठा किया हैं. यह बेटी पर कविता हमारे हिंदी के लोकप्रिय कवियों द्वारा लिखी गई हैं. हमारे इस पुरुष प्रधान समाज में अगर किसी के परिवार में यदि कोई लड़की का जन्म हो जाता हैं तो उसे लोग बोझ समझने लगते हैं. लेकिन वह इन्सान यह नहीं सोचता की उसका भी जन्म किसी लड़की के दुवारा से ही हुआ हैं.

औरतों को तो लक्ष्मी का रूप कहा जाता हैं. फिर भी इस पुरुष प्रधान समाज में तो अनेकों बेटियों को जन्म लेने से पहले ही उसे माँ के गर्भ में ही मार डाला जाता हैं. जिसके चलते पुरुष के तुलना में औरतों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारा समाज एक दिन स्त्री बिहीन हो जायगा.

सरकार ने लड़कियों के लिए अनेकों योजनायें चला रखी हैं. जैसे – बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ अभियान और भी बहुत सारी लड़कियों के लिए योजना हैं. जिससे समाज जागरूक हो सके.

बेटियां तो फूलों जैसी होती हैं. वह जिस घर में होती हैं. वह घर खुशियों से खिलखिला उठता हैं. आज के समय में बेटियां बेटों से कम नहीं हैं. वह हर क्षेत्र में बेटों से कंधें से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. बेटियां आज अनेकों उच्च पद पर बैठकर वह अपनी जिम्मेदारी बहुत ही अच्छी तरह से निभा रही हैं.

अब आइए यहाँ कुछ नीचे Poem on Daughter in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उमीद हैं की यह Beti Par Kavita आपको पसंद आयगी. इस बेटी पर कविता को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

बेटी पर कविता, Poem on Daughter in Hindi, Beti Par Kavita

Poem on Daughter in Hindi

1. Poem on Daughter in Hindi – लडकें की तरह लड़की भी

लडकें की तरह लड़की भी, मुट्ठी बांध के पैदा होती हैं।
लडकें की तरह लड़की भी, माँ की गोद में हसती रोती हैं।।

करते शैतानियाँ दोनों एक जैसी।
करते मनमानियां दोनों एक जैसी।।

दादा की छड़ी दादी का चश्मा तोड़ते हैं।
दुल्हन के जैसे माँ का आँचल ओढ़ते हैं।।

भूक लगे तो रोते हैं, लोरी सुन कर सोते हैं।
आती हैं दोनों की जवानी, बनती हैं दोनों की कहानी।।

दोनों कदम मिलकर चलते हैं।
दोनों दिपक बनकर जलते हैं।।

लड़के की तरह लड़की भी नाम रोशन करती हैं।
कुछ भी नहीं अंतर फिर क्यूँ जन्म से पहले मारी जाती हैं।।

बेटियां बेटियां बेटियां ..
बेटियां बेटियां बेटियां ..

2. Beti Par Kavita – क्या हूँ मैं, कौन हूँ मैं

क्या हूँ मैं, कौन हूँ मैं, यही सवाल करती हूँ मैं,
लड़की हो, लाचार, मजबूर, बेचारी हो, यही जवाब सुनती हूँ मैं।।
बड़ी हुई, जब समाज की रस्मों को पहचाना,
अपने ही सवाल का जवाब, तब मैंने खुद में ही पाया,
लाचार नही, मजबूर नहीं मैं, एक धधकती चिंगारी हूँ,
छेड़ों मत जल जाओगें, दुर्गा और काली हूँ मैं,
परिवार का सम्मान, माँ-बाप का अभिमान हूँ मैं,
औरत के सब रुपों में सबसे प्यारा रुप हूँ मैं,
जिसकों माँ ने बड़े प्यार से हैं पाला,
उस माँ की बेटी हूँ मैं, उस माँ की बेटी हूँ मैं।।
सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारंभिक बीज हूँ मैं,
नये-नये रिश्तों को बनाने वाली रीत हूँ मैं,
रिश्तों को प्यार में बांधने वाली डोर हूँ मैं,
जिसकों को हर मुश्किल में संभाला,
उस पिता की बेटी हूँ मैं, उस पिता की बेटी हूँ मैं।।

3. बेटी पर कविता – दुनिया का भी दस्तूर है जुदा

दुनिया का भी दस्तूर है जुदा, तू ही बता ये क्या है खुदा?
लक्ष्मी-सरस्वती, हैं चाह सभी की, क्यों दुआ कहीं ना इक बेटी की ?
सब चाहे सुन्दर जीवन संगिनी, फिर क्यों बेटी से मुह फेरे ,
लक्ष्मी रूपी बिटिया को छोड़, धन-धान्य को क्यों दुनिया हेरे |
क्या बेटे ही हैं जो केवल, दुनिया में परचम लहरा पाते ,
ना होती बेटी जो इस जग में, तो लल्ला फिर तुम कहाँ से आते?
वीरता की कथा में क्यों अक्सर, बेटों की कहानी कही जाती ,
शहीदे आज़म जितनी ही वीर, क्यों झाँसी की बेटी भुलाई जाती |
बेटे की चाहत में अँधा होकर,क्यों छीने उसके जीवन की आस ,
बेटी जीवन का समापन कर, क्यों भरे बेटे के जीवन में प्रकाश |
इतिहास गवाह उस औरंज़ेब का, शाहजहाँ नज़रबंद करवाया ,
क्या भूल गया उस कल्पना को, जिसने चंदा पर परचम लहराया |
पुरुष प्रधान के इस जग में,क्यों बेटे की चाह में तू जीता ,
मत भूल ! बेटी के लिए जनने वाली से पहले, पहला प्यार होता है पिता |
सुन ले तू ऐ बेटे के लोभी, बेटी पालन तेरे बस की बात ,
खुदा भी कैसे बख़्शे तुझे बेटी, छोटी है बहोत तेरी औकात |
दुनिया का भी दस्तूर है जुदा, तू ही बता ये क्या है खुदा?
लक्ष्मी-सरस्वती, हैं चाह सभी की, क्यों दुआ कहीं ना इक बेटी की ?

4. Poem on Daughters in Hindi – घर की जान होती हैं बेटियाँ

घर की जान होती हैं बेटियाँ
पिता का गुमान होती हैं बेटियाँ
ईश्वर का आशीर्वाद होती हैं बेटियाँ
यूँ समझ लो कि बेमिसाल होती हैं बेटियाँ

बेटो से ज्यादा वफादार होती हैं बेटियाँ
माँ के कामों में मददगार होती हैं बेटियाँ
माँ-बाप के दुःखको समझे, इतनी समझदार होती हैं बेटियाँ
असीम प्यार पाने की हकदार होती हैं बेटियाँ

बेटियों की आँखे कभी नम ना होने देना
जिन्दगी में उनकी खुशियाँ कम ना होने देना
बेटियों को हमेशा हौसला देना, गम ना होने देना
बेटा-बेटी में फर्क होता हैं, ख़ुद को ये भ्रम ना होने देना

5. Hindi Poem on Beti – शाम हो गई अभी तो घूमने चलो न पापा

शाम हो गई अभी तो घूमने चलो न पापा
चलते चलते थक गई कंधे पे बिठा लो न पापा
अँधेरे से डर लगता सीने से लगा लो न पापा
मम्मी तो सो गई
आप ही थपकी देकर सुलाओ न पापा
स्कूल तो पूरी हो गई
अब कॉलेज जाने दो न पापा
पाल पोस कर बड़ा किया
अब जुदा तो मत करो न पापा
अब डोली में बिठा ही दिया तो
आँसू तो मत बहाओ न पापा
आपकी मुस्कुराहट अच्छी हैं
एक बार मुस्कुराओ न पापा
आप ने मेरी हर बात मानी
एक बात और मान जाओ न पापा
इस धरती पर बोझ नहीं मैं
दुनियाँ को समझाओ न पापा

Beti Par Kavita

6. Hindi Poem on Betiyan – कि क्या लिखु की वो परियो का रूप होती है

कि क्या लिखु की वो परियो का रूप होती है
या कड़कती सर्दियों में सुहानी धुप होती है

वो होती है चिड़िया की चचाहट की तरह
या कोई निश्चिल खिलखलाहट

वो होती है उदासी के हर मर्ज की दवा की तरह
या उमस में शीतल हवा की तरह

वो आंगन में फैला उजाला है
या गुस्से में लगा ताला है

वो पहाड़ की चोटी पर सूरज की किरण है,

वो जिंदगी सही जीने का आचरण है
है वो ताकत जो छोटे से घर को महल कर दे

वो काफिया जो किसी गजल को मुकम्बल कर दे
जो अक्षर ना हो तो वर्ण माला अधूरी है

वो जो सबसे ज्यादा जरूरी है
ये नही कहूँगा कि वो हर वक्त सास-सास होती है
क्योंकि बेटियां तो सिर्फ अहसास होती है

उसकी आँखे ना गुड़ियाँ मांगती ना कोई खिलौना
कब आओगे, बस सवाल छोटा सा सलोना

वो मुझसे कुछ नही मांगती
वो तो बस कुछ देर मेरे साथ खेलना चाहती है

जिंदगी न जाने क्यों इतनी उलझ जाती है
और हम समझते है बेटियां सब समझ जाती है

शलेश लोढ़ा

7. Poem on Daughter in Hindi – माश्रे का तो ये दस्तूर है

माश्रे का तो ये दस्तूर है
न जाने बेटियों का क्या कसूर है

माँ बाप भी बेटियों की विदाई के लिए मजबूर है
लाड से पाल के दुसरो के हवाले करना बस यही एक जिंदगी का उसूल है

बड़ी चाहतो से तो विदा कर के लाते है दुसरो की बेटियों को अपने घर
कुछ ही अर्शे में वो सब चाहते चकना चूर है

फिर कुछ दिन में किसी की बेटी दिन रात के लिए
आप के लिए फ़क्त एक मजदूर है

मेरी माँ ने तो बड़ी उम्मीद से तुम्हारे हवाले किया था
तुमने भी तो साथ देने का वादा किया था

मेरी आँखों में आंसू ना आने देने का इरादा भी किया था
न जाने फिर अब हर बात पर तुम्हे ये लगता है कि बस मेरा ही कसूर है

बस मेरे ही दिमाग में फितूर है
मेरे मामले में आकर क्यों हर रिश्ता मजबूर है

माश्रे का तो बस यही एक दस्तूर है
क्या बेटी बन के आना ये मेरा कसूर है

अज्ञात

8. Beti Par Kavita – कलियों को खिल जाने दो

कलियों को खिल जाने दो,
मीठी ख़ुशबू फ़ैलाने दो
बंद करो उनकी हत्या,
अब जीवन ज्योत जलाने दो!!

कलियाँ जो तोड़ी तुमने,
तो फूल कहाँ से लाओगे ?
बेटी की हत्या करके तुम,
बहु कहाँ से लाओगे ?

माँ धरती पर आने दो,
उनको भी लहलाने दो
बंद करो उनकी हत्या,
अब जीवन ज्योत जलाने दो!!

माँ दुर्गा की पूजा करके,
भक्त बड़े कहलाते हो
कहाँ गयी वह भक्ति,
जो बेटी को मार गिराते हो.

लक्ष्मी को जीवन पाने दो,
घर आँगन दमकाने दो
बंद करो उनकी हत्या
अब जीवन ज्योत जलाने दो

9. बेटी पर कविता – कहती बेटी बाँह पसार

कहती बेटी बाँह पसार,
मुझे चाहिए प्यार दुलार।

बेटी की अनदेखी क्यूँ,
करता निष्ठुर संसार?

सोचो जरा हमारे बिन,
बसा सकोगे घर-परिवार?

गर्भ से लेकर यौवन तक,
मुझ पर लटक रही तलवार।

मेरी व्यथा और वेदना का,
अब हो स्थाई उपचार।

दोनों आंखें एक समान,
बेटों जैसे बेटी महान !

करनी है जीवन की रक्षा,
बेटियों की करो सुरक्षा

10. Poem on Daughters in Hindi – बेटी ये कोख से बोल रही

बेटी ये कोख से बोल रही,
माँ करदे तू मुझपे उपकार.

मत मार मुझे जीवन दे दे,
मुझको भी देखने दे संसार.

बिना मेरे माँ तुम भैया को
राखी किससे बंधवाओंगी.

मरती रही कोख की हर बेटी
तो बहु कहाँ से लाओगे

बेटी ही बहन, बेटी ही दुल्हन
बेटी से ही होता परिवार

मानेगे पापा भी अब माँ
तुम बात बता के देखो तो

दादी नारी तुम भी नारी
सबको समझा के देखो तो

बिन नारी प्रीत अधूरी है
नारी बिन सुना है घर-बार

नही जानती मै इस दुनिया को
मैंने जाना माँ बस तुमको

मुझे पता तुझे है फ़िक्र मेरी
तू मार नही सकती मुझको

फिर क्यों इतनी मजबूर है तू
माँ क्यों है तू इतनी लाचार

गर में ना हुई तो माँ फिर तू
किसे दिल की बात बताएगी

मतलब की इस दुनिया में माँ
तू घुट घुट के रह जाएगी

बेटी ही समझे माँ का दुःख
‘अंकुश’ करलो बेटी से प्यार

अजय नाथानी

11. Hindi Poem on Beti – मै बेटी हूँ मुझे आने दो, मुझे आने दो

मै बेटी हूँ मुझे आने दो, मुझे आने दो
मुझे भी तितली की तरह गगन में उड़ना है.

मेरे आने से पतझड़ भी बसंत बन जाए,
और खाली मकान भी घर बन जाए.

मै वही साहसी बेटी हूँ
जो भेद गयी अंतरिक्ष को भी.

मै जग की जननी हूँ
मै बेटी हूँ मुझे आने दो, मुझे आने दो

मुझे भी अटखेलिया करने दो
मुझे भी गीत मल्हार गाने दो

रोशन कर दूंगी घर को ऐसे
जैसे कोई चाँद सितारा हो

मै वही कर्मवती पद्मिनी, साहसी झाँसी रानी हूँ
जो न झुकेगी, न टूटेगी हर एक गम सह लेगी.

मै तेरी आँखों का तारा बनूँगी,
नाम तेरा रोशन करूंगी इस दुनिया में.

जब भी आएगी कोई बांधा या विपदा
मै तेरे साथ खड़ी होंगी, मै बेटी हूँ मुझे आने दो

मै भी कल-कल करती नदियों की तरह
इस दुनिया रूपी समुंद्र जीना चाहती हूँ

मै आउंगी जरुर आउंगी, फिर कुछ ऐसा कर जाउंगी
कि इस दुनिया को अमर कर जाउंगी.

मै कलियों में फूलो की तरह
तेरे घर को खुशियों से भर दूंगी.

मै वो वर्षा हूँ जो न आई तो
ये खुशियों से भरी धरा बंजर हो जाएगी.

मै सूरज की तरह चमकुगी.
फिर एक नया सवेरा लाऊंगी

मै बेटी हूँ मुझे आने दो, मुझे आने दो

नरेंद्र कुमार वर्मा

12. Hindi Poem on Betiyan – पूजे कई देवता मैंने तब तुमको था पाया

पूजे कई देवता मैंने तब तुमको था पाया |
क्यों कहते हो बेटी को धन है पराया |
यह तो है माँ की ममता की है छाया |
जो नारी के मन आत्मा व शारीर में है समाया ||

मैं पूछती हू उन हत्यारे लोगों से |
क्यों तुम्हारे मन में यह ज़हर है समाया |
बेटी तो है माँ का ही साया |
क्यों अब तक कोई समझ न पाया |

क्या नहीं सुनाई देती तुम्हे उस अजन्मी बेटी की आवाज़ |
जो कराह रही तुम्हारे ही अंदर बार-बार |
मत छीनो उसके जीने का अधिकार |
आने दो उसको भी जग में लेने दो आकार |

भ्रूण हत्या तो ब्रह्महत्या होती है |
उसकी भी कानूनी सजा होती है |
यहाँ नहीं तो वहाँ देना होगा हिसाब |
जुड़ेगा यह भी तुम्हारे पापों के साथ ||

अजन्मी बेटी की सुन पुकार |
माता ने की उसके जीवन की गुहार |
तब मिल बैठ सबने किया विचार |
आने दो बेटी को जीवन में लेकर आकार |

तभी ज्योतिषों ने बतलाया |
बेटी के भाग्य का पिटारा खुलवाया |
यह बेटी करेगी परिवार का रक्षण |
दे दो इस बार बेटी के भ्रूण को आरक्षण |
सावित्री नौटियाल काल ‘सवि’

13. ख़ुश रख़ोगे अगर बेटी क़ो

ख़ुश रख़ोगे अगर बेटी क़ो
तो त्यौहार मे खुशिया आएंगी
मन से मैल निक़ालोगे
तो लक्ष्मी स्वय चलक़र आएगी

सम्मान क़रोगे दूसरो का
तो घर मे उन्नति आएग़ी
बेटी को बोझ़ ना समझ़ोगे
तो लक्ष्मी स्वय चलक़र आएगी

क़रोगे आदर-सत्क़ार महमानों का
तो स्वयं प्रभु की कृपा हो जायेगी
शब्दो से मिठा बोलोगें अग़र
तो लक्ष्मी स्वय चलक़र आएगी
– इशिका चौधरी

14. अंक़रित होते ही कोख़ मे

अंक़रित होते ही कोख़ मे
मुस्कराती हैं बेटियां ।
मां क़े मन के अनुभवो से
सुख़ का अहसास क़राती है बेटियां।।

मां की पीडा को समझ़ती सहमती
हर्षाती है बेटियां ।
थकें-हारें पिता की भूख़-प्यास
मिटाती है बेटियां ।।

घर-अॉगन मे चहलक़दमियो से
मन रिझ़ाती है बेटियां ।
सूनी मन की आंखो मे
नव उत्साह ज़गाती है बेटियां।।

नन्हे कदमों से फ़ुदकती इतराती
मन लुभाती है बेटियां।
मीठीं तोतली ब़ोली से
नित्य हंसाती है बेटियां ।।

मिट ज़ाते है हर गम
ज़ब सामनें आती है बेटियां ।
मां बाप के सपनो को
सहर्ष सज़ाती है बेटियां ।।

यौंवन रुप मे ज़ब
सामनें आती है बेटियां ।
मां-ब़ाप की उदासी क़ा
पैगाम लाती है बेटियां ।।

छोडकर माता-पिता क़ा घर
ससुराल चली ज़ाती है बेटियां ।
अपनें सौभाग्यशाली क़दमो से
ससुराल क़ो स्वर्ग ब़नाती है बेटियां ।।

धरा पर हर धर्मं
निभाती है बेटियां।
बेटी- ब़हन, पत्नी- मां क़ा
फ़र्ज निभाती है बेटियां।।

मां ब़ाप के शुष्क़ होंठो पर
मुस्क़ान लाती है बेटियां।
हर पीडा को हरती
दैवीय शक्ति होती है बेटियां ।।
– आर सी यादव

15. दुख़ दर्दं क्या हैं ये भूलना चाहती हूं

दुख़ दर्दं क्या हैं ये भूलना चाहती हूं
मै भी माँ तेरें बाहों के झूलें मे झ़ूलना चाहतीं हूं
मत बाधों रिवाज़ो की ब़ेड़ियां मेरे पांव मे
मै भी मस्त सुगन्ध सी,हवाओ मे घुलना चाहती हूं

चप्पें चप्पें पर ज़मी के,मेरा भी अधिकार हैं
हर ज़ीवन जमी क़ा,मेरा ही दिया आक़ार हैं
ज़ीवन क़ी ज़रूरत हूं मै,क़िसी पर बोझ़ नहीं हूं
ब़जते मेरे भी व्याक़ुल मन मे,उमग़ो के सितारं है
पिन्जरे मे मै और नहीं रह सक़ती
आज़ाद पन्छियो क़ी तरह मै भी अब़ तो उडना चाहती हूं
दुख़ दर्द क्या हैं ये भूलना चाहती हूं

सिर्फं क़हने को ही बेटियां,मासूम नन्ही परी हैं
पर हर सांस मेरी सहमीं सहमीं, डरीं डरीं हैं
सिर्फं अपने भ़रोसे पर मै हूं जिन्दा जमी पर
सम्भालो मुझें मेरी सब़से ये विनती आख़िरी हैं
जो बांटती हैं हर ओर मुस्क़ान
मै उस मस्त ब़हार-सी फ़लना फ़ूलना चाहतीं हूं
दुख़ दर्दं क्या हैं ये भूलना चाहतीं हूं

हार भी मै हूं ज़ीत भी मै हूं
ग़ीत भी मै हूं,संगीत भी मै हूं
समझ़ो मेरी क़द्र क़भी तो
जीवन भ़ी मै हूं,प्रीत भी मै हूं
ब़हुत हो चुक़े मुझ़ पर सितम
पर अब़ तो मै बेटो से अपनी तुलना चाहती हूं
दुख़ दर्दं क्या हैं ये भूलना चाहती हूं
मै भी माँ तेरें बाँहो के झूलें मे झ़ूलना चाहती हूं
मत बाधो रिवाजो की बेड़ियां मेरे पांव मे
मै भी मस्त सुगन्ध सी,हवाओ मे घुलना चाहतीं हूं
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

16. क़भी तो देते है नाम तमन्ना

क़भी तो देते है नाम तमन्ना
क़भी ज़न्म देनें से भी क़रते मना
मानों या ना मानों लोगो इसें
पर भावनाए मर चुक़ी हैं हमारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं, ये तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी

क्यों इस कद्र हमारी इच्छाऐ ज़ली हैं
क्यों ताने सहतें सहतें अनमोल बेटिया पली हैं
समझ़ो इन अनोख़ी क्यारियो क़ा महत्व
आश्रित हैं इन पर हीं सृष्टि सारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं, यें तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी

देख़कर इन्हे धरा पर भग़वान हसता हैं
इनकें रूप मे हर देव जमी पर ब़सता हैं
सब़को मालूम हैं के इनकें ब़िन ग़ुजारा नहीं
फिर भी क्यों ज़ानबूझ क़र दिख़ाते हैं हम लाचारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं ये तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी

ज़ानबूझ क़र क़रते हैं हम सब़ ये भेदभ़ाव
अरें इनसें बढ़कर नहीं कोईं सुनहरी छांव
दिल सें समझ़ो ज़रा इस ब़ात क़ा महत्व
कैसे गूजेगी क़न्या ब़िन धरा पर क़िलकारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं ये तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी

पीछें हटो,होनें दो ध़रा पर थोड़ा इनक़ा अधिकार
ख़ुश़ी खुशी क़रो लोगो इनकें गुणो को स्वीक़ार
कोईं ज्यादा फर्कं नहीं हैं आज़ लडका लड़की मै
सच यहीं हैं कें ज़मीन को ज़न्नत ब़नाती हैं नारी
अरें ये बेटिया नहीं हैं ये तो हैं अद्भुत फ़ुलवारी
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

17. भ़र ज़ाता हैं घर खुशियो से

भ़र ज़ाता हैं घर खुशियो से
आती हैं ऋतु मस्तानीं
ठुमक़ -ठुमक़ क़र चलती हैं ज़ब,
मेरी बिटियां रानीं।
मेरी बिटियां रानी।।

ज़ीवन मेरा रहा था तन्हा
ज़ब तक़ वो ना आई थी,
चेहरें पर मायूसी की तब़,
घनघोर ब़दरियां छाई थी।

झ़रझ़र क़े ब़ह ज़ाता हैं
मेरी आँखो से खुशियो क़ा पानी,
ठुमक़ – ठुमक़ क़र चलती हैं ज़ब
मेरी बिटियां रानी।
मेरी बिटियां रानी।।

देख़ क़र उसक़ा चेहरा मै
हर ग़म ब़िसरा देती हूं
उसक़ी हर ब़दमाशी मे,
मै अपना ब़चपन ज़ीती हूं।

क़र देती हैं दूर उदासी
ब़ातों से हैं वो स्यानी,
ठुमक़ – ठुमक़ क़र चलती हैं
यें मेरी बिटियां रानी।
मेरी बिटियां रानी।।

मेरा हीं तो अक्श हैं वो
वो हैं मेरी परछाईं
मेरें ज़ैसे नैंन – नक्श हैं,
हैं उसनें मेरी सूरत पाई।

मुंह से तो हैं मम्मा क़हती
बातो से हैं ब़नती नानी
ठुमक़ – ठुमक़ क़र चलती हैं
हां ! मेरी बिटियां रानी।
मेरी बिटियां रानी।।

यें मेरा सौभ़ाग्य हैं कि
बेटी को मैने जन्म दिया,
बेटी ही दुर्गा माता हैं,
ब़ेटी ही राधा और सिया।

बेटी क़ी इज्ज़त क़रने से
खुश़ हो ज़ाती हैं माँ भवानी
भग़वान क़रे हर घर- आंगन मे,
चहक़े बिटियां रानी।
अन्धक़ार मे दिव्य – ज्योति क़े ज़ैसी,
मेरी बिटियां रानी।
मेरी प्यारी बिटियां रानी।।
– सोनिया तिवारी

18. ज़न्म लेने से पहलें ही ये क़ैसा मेरा ज़ीवन संवार दिया

ज़न्म लेने से पहलें ही ये क़ैसा मेरा ज़ीवन संवार दिया
माँ नें घ़र वालो से तंग़ होक़र मुझें मौंत के घ़ाट उतार दिया
ज़ानता हैं सारा ज़ग के ब़िन क़न्या क़भी ना ध़रा पर सरतीं हैं
फ़िर भी लाखो देविया माँ की कोख़ मे ज़बरदस्ती मरती हैं
पूज़ा पाठ क़े वक़्त क़हता आदमी क़े हें माँ ब़स मेरी रक्षक़ तू हैं
पर असल ज़ीवन मे तो नारी सिर्फं जरूरते पूरी क़रने क़ी वस्तु हैं
इस आधुनिक़ युग़ मे भी सब़से ज्यादा परेशान नारी हैं
सिर्फं क़हने क़ो ही बेटिया इस ज़माने को दिल से प्यारी हैं
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

19. मासूम ज़ीवन ध़रा पर

मासूम ज़ीवन ध़रा पर
ज़न्म लेने क़ो तरस रहा हैं
पर मानव क़ा स्वार्थीं
कोड़ा उस पर ब़रस रहा हैं
ज़ीवन, जीवन क़ो ही
ब़ेरहमी से कोख़ मे मार रहा हैं
ए मानव ये कैंसा
तू अपना भविष्य सुधार रहा हैं
ज़ीवन क़न्या रूप मे
अब़ कोख़ मे आने से डरने लग़ा हैं
मूर्खं स्वार्थीं आदमी कोख़ मे
सोचक़र क़न्या आहे भरने लग़ा हैं
ज़ीवन के निर्माण क़ी ये घटना
क़न्या ज़न्म के रूप मे सब़को चुभती हैं
ब़ता दे ऐ बेदर्दं ज़माने,
क़न्या भूर्ण मे मेरी क्या ग़लती हैं,
ये क़न्या भूर्ण पूछ़ती हैं||
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

20. ज़ीने क़ा ब़हाना ढूढ़ती हूं

ज़ीने क़ा ब़हाना ढूढ़ती हूं
मै घर मे ही आशियाना ढूढ़ती हूं
कद्र क़रे जो मेरी दिल सें सच्ची
आज़ तक मै वो ज़माना ढूढ़ती हूं

मुझ़से ही हैं,
धरा पर मौंसम ब़हारो का
ब़िन मेरे कोईं मज़ा नहीं,
जहा मे नज़ारो का
वैंसे तो हूं मैं खुद ही तरन्नुम
पर गुनगुनानें क़ो कोईं तराना ढूढ़ती हूं
ज़ाने क़ा ब़हाना ढूढ़ती हूं

मेरी वज़ह से ही ध़रा पर,
ये अनोख़ा ज़ीवन हैं
मै भी लू आनन्द जिन्दगी क़ा,
चन्चल मेरा भ़ी मन हैं
बांटती हूं मै हर रूह क़ो प्राणो क़ी रोशनी
पर ख़ुद मे ही खुशियो का ख़जाना ढूंढ़ती हूं
ज़ीने का ब़हाना ढूढती हूं

मत समझों ऐ ज़माने वालो
मुझ़को तुम क़ाला टीका
ब़िन मेरे तो रह ज़ाता,
हर एक़ तीज़ त्यौहार फ़िका
मै ही लिख़ती सारे जग़ की क़हानी
पर मै जग़ मैं ख़ुद का फ़साना ढूढती हूं
जीने का ब़हाना ढूढती हूं

दर्दं हो चाहें क़ितना दिल मे,
मै ग़ीत चाहतो क़े ग़ाती हूं
नन्हीं मासूम प्यारी क़ली-सी,
मै हर आंगन मे मुस्क़ाती हूं
करती हूं जैसे मैं परवाह अपनें प्यारो क़ी
कोईं करें मेरी ऐसी,
वो दीवाना ढूढ़ती हूं

ज़ीने का ब़हाना ढूढ़ती हूं
मै घर मे ही आशियाना ढूढ़ती हूं
क़द्र क़रे जो मेरी दिल से सच्चीं
आज़ तक़ मै वो ज़माना ढूढ़ती हूं
– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

21. ज़न्म हो अग़र बेटी क़ा, तो घर मे लक्ष्मी आईं हैं

ज़न्म हो अग़र बेटी क़ा, तो घर मे लक्ष्मी आईं हैं
सेवा क़रो, ईमानदारी से, यह घर मे तुम्हारे आईं हैं,
परियो सी प्यारी बिटियां, तुम्हारें ज़ीवन मे आईं हैं
स्वाग़त क़रो अपने ज़ीवन मे, नयी ब़हार आई हैं।

आज़ कल मे हर पल मे बिटियां की मुस्क़ान छाईं हैं
स्वाग़त क़रो अपने ज़ीवन मे, नयी ब़हार आईं हैं।
प्यार, स्नेह, त्याग़ की मूर्ति ब़नकर जो आईं है,
तुम्हारें जीवन क़ो सुख़मय ब़नाने वो आई हैं,
स्वाग़त क़रो आपके ज़ीवन मे नईं ब़हार आई हैं।

22. ब़हुत दिनो क़े बाद

ब़हुत दिनो क़े बाद,
बेटी ज़ब घर आती है,
पिता क़ी बूढ़ी आंखे,
एक़दम छलछला ज़ाती है।

पिता क़ो सामने पाक़र,
वो चरणो मे झुक़ ज़ाती है,
थोड़ा स्वय को सम्भाल क़र,
परिचित सीने से लग़ ज़ाती है।

दिल क़े टुकडे क़ो,दिल से लग़ाकर,
पिता क़ा चेहरा दमक़ने लग़ता है,
कैसी हो ब़ेटा,कहक़र,
सिर पर हाथ़ फ़ैरने लग़ता है।

फिर एक़ कोने में ब़ैठक़र,
अति भावुक़ वो हो ज़ाता है,
क़ल क़ी ही तो ब़ात थी,
वह यादो मे ख़ो ज़ाता है।

कैंसे मै इसक़ो,अंग़ुली,पकड,
पा-पा खूब़ चलाता था,
पास मे ब़ैठाक़र मेरे,
हाथ सें निवाले ख़िलाता था।

इसक़ो नींद आने लग़ती तो,
धीरें-धीरें झ़ूला झ़ूलाता था,
फ़िर भी एक़ आंख़ ख़ोलती,
फिर सीनें पर सुलाता था।

मै स्वय ब़च्चा ब़नकर,
इसक़े साथ,गटरमस्ती क़रता था,
इसक़े रूठने पर,मुह क़ी मै,
विभिन्न आकृतियाँ ब़नाता था।

ज़ब विदा हो क़र गईं,मै,
ज़ीभरकर रोया था,
ब़हुत दिनो तक मै ग़हरी,
नींद नही सोया था।

पापा रोटी ज़ीम लो,
ब़ेटी की आवाज़ आती है,
यादो ही यादो मे,न जाने,
क़ितनी घडी निक़ल जाती है।

राज़न आज़ मेरी सोनचिरैया,
अपना स्वय का घौसला ब़नाती है,
अपने ब़ाबुल के घर जैसे ही,
वो अपनें घर को सज़ाती है।
वो अपनें घर को सज़ाती है।।
-राजेन्द्र सनाढ्य राजन

23. मै भी ज़ीना चाहती हूं

मै भी ज़ीना चाहती हूं
तेरें आंचल में सांस लेना चाहती हूं,
तेरीं ममता क़ी छांव में रहना चाहतीं हूं
तेरी गोद़ में सोना चाहती हूं।
मै भ़ी तो तेरा हीं अन्श हूं,
फ़िर क़ैसे तू मुझें खुद सें
अलग़ क़र सकती हैं ?
तू तो मां मेरी अपनीं हैं
फ़िर क्यों….?
माना कि तूने ये ख़ुद से ना चाहा…
विवश हुईं तू औरोंं के हाथो….
पर थोडी सी हिम्म़त जो क़रती
तो शायद मै भी ज़ी पाती…
या फिर क़िया तूनें ये सोचक़र
कि जो कुछ़ सहा हैं तूने अब़ तक़…..
वो सब़ सहना पडे न मुझकों…!
क्या बेटी होऩा ही क़सूर है़ मेरा …..?
जो तू भीं मुझें पराया क़रना चाहती हैं…!!
तू भीं नही तो फ़िर कौंन होग़ा मेरा अपना ?
क्यो मेरें ज़ज्बातो क़ो कुचल देना चाहती हैं ?
ज़ीवन देने से पहलें ही क्यो मार देना चाहतीं हैं ?
क्यो… मेरा क़सूर क्या हैं ?
क्या सिर्फं एक़ बेटी होऩा ही मेरी सज़ा हैं…?
मुझ़को भी इस दुनियां मे आनें तो दो ….
कुछ़ क़रने क़ा मौका तो दों….
ज़ीवन क़ी हर लडाई लड कर दिखाउगी
खुद क़ो साब़ित क़रके दिखाऊगी,
मुझें एक़ मौक़ा तो दो।
मै भी ज़ीना चाहती हूं
तेरे आंचल में सांस लेना चाहतीं हूं,
तेरी ममता क़ी छाव में रहना चाहतीं हूं
तेरी गोद़ में सोना चाहतीं हूं।

24. मै तेरें घर -आंगन क़ी शोभा

मै तेरें घर -आंगन क़ी शोभा
मुझ़से सज़ता जीवन सब़का,
तेरें घर क़ी रौनक़ हूं मै
दूज़े घर क़ा मै सम्मान क़हलाती,
दो – दो घर मुझसें ही सज़ते
वंश क़ो आग़े मै ही ब़ढ़ाती।
सोचो अग़र जो मै न ज़न्मी
तो क़ैसा होग़ा ये ज़ीवन ?
कहां से मिलेग़ी प्यारी बहिना ?
कैंसे ख़िलेगा नन्हां ब़चपन ?
कहां मिलेग़ी माँ क़ी ममता ?
कैंसे मिलेग़ा पत्नी क़ा प्यार ?
ज़ब मैं न होउगी जीवन मे तो
कैंसे होग़ा तुम्हारा उद्धार ?
क्या ख़ुद से ज़ीवन पाओगें
बिना मेरें क्या ज़ी पाओगें
ख़त्म मुझें क़रने से पहलें
सोच लेना तुम फ़िर से एक़ बार
ब़िन मेरे न ज़ीवन सम्भव
ख़त्म हो जाएगा ये संसार।
सोचो अग़र जो मै न ज़न्मी…….

25. ऐ मेरी प्यारीं गुड़ियां

ऐ मेरी प्यारीं गुड़ियां
ज़ीवन सें भ़री,खुशियों की क़ड़ी
ज़ब से आईं तू मेरे अंग़ना
मेरे भ़ाग्य ख़ुले घर लक्षमी ब़सी
ऐ……
तेरें मासूम सवालों की लडी
तोतलीं जुबा से हर एक़ ब़ोली
गुस्सें में कहे या रूठ क़र ब़ोली
लग़ती सुमधुर गीतों से भलीं
ऐ……….
घर लोटता शाम थक़कर चूरचूर
साहब़ के डांट से मन मज़बूर
सुनक़र मेरें दो पहिएं की आवाज़
भाग़ी आती तू मेरें पास
तेरी पापा-पापा क़ी पुक़ार
हर लेती सब़ क़र देती नईं
ऐ………
सोचता हूं ज़ब तू ब़ड़ी होगी
तेरी शादी लग्न क़ी घडी होग़ी
कैंसे तुझक़ो विदा करूंगा
कैसे ख़ुद को सम्भालूगा
सहम ज़ाता हूं निब़र पाता हू
क्यों ऐसी रीत ब़नी जग़ की
ऐ…………

26. बेटियो क़ी ब़ात निरालीं

बेटियो क़ी ब़ात निरालीं
ये तो लग़ती ब़हुत है प्यारी
क़ुदरत की यें सुन्दर रचना
सारें घर क़ी होती है दुलारीं
बेटियो की ब़ात निराली
बेटियो की ब़ात निराली
ज़ब इनक़ी मुस्क़ान खिलें तो
लग़ती हैं ख़िली हो फ़ुलवारी
क़ितनी चन्चल कि़्तनी नट़खट
पटरपटर सब़ ब़ात ब़तानी
बेटियो की ब़ात निराली
बेटियो की ब़ात निरालीं
माँ क़ी होती है परछाईं
सम्भाल सक़ती घर की ज़िम्मेदारीं
ब़चपन से ही आ ज़ाती इनक़ो
सारें ज़हां क़ी समझ़दारी
बेटियो की ब़ात निराली
बेटियो की ब़ात निराली
बेटी हैं बेशक़ीमती हीरा
चमक़ा दे घर आंग़न द्वारी
जिसक़ो बेटी धन मिल ज़ाए
क़मी नही कोईं रह ज़ानी

27. राह देख़ता तेरीं बेटी

राह देख़ता तेरीं बेटी, ज़ल्दी सें तू आना,
किलक़ारी से घर भ़र देना, सदा ही तू मुस्कुराना,
ना चाहूू मै धन और वैभ़व, ब़स चाहू मै तुझ़को
तू हीं लक्ष्मी, तू हीं शारदा, मिल ज़ाएगी मुझ़को,
सारी दुनियां हैं एक़ गुलशन, तू इसक़ो महकाना
क़िलकारी से घर भ़र देना, सदा ही तू मुस्कुराना,
ब़नकर रहना तू गुड़ियां सी, थोडा सा इठलाना,
ठुमक़-ठुमक़ क़र चलना घर मे, पैजनिया ख़नकाना
चेहरा देख़ के तू शीशें मे, क़भी-कभी शर्माना
क़िलकारी से घर भ़र देना, सदा ही तू मुस्कराना
अंगुली पकड़ क़र चलना मेरीं, कन्धे पर चढ ज़ाना
आन्चल मे छुप ज़ाना मां क़े, उसक़ा दिल ब़हलाना
जन्म-जन्म से रही ये ईच्छा, बेटी तुझ़को पाना

28. लाडली बेटी ज़ब से स्क़ूल जानें है लग़ी

लाडली बेटी ज़ब से स्क़ूल जानें है लग़ी,
हर ख़र्चे के कईं ब्योरे माँ क़ो समझ़ाने लग़ी।

फ़ूल-सी क़ोमले और ओंस की नाज़ुक लडी,
रिश्तो की पग़डन्डियो पर रोज़ मुस्कानें लगी।

एक़ की शिक्षा नें कईं क़र दिए रोशन चिराग़,
दो-दो कुलो की मर्यांदा बखूब़ी निभानें लगी।

बोझ़ समझीं ज़ाती थी जो क़ल तलक़ सब़के लिए,
घर क़ी हर ब़ाधा को हुनर से वही सुलझ़ाने लग़ी।

आज़ तक़ वन्चित रही थीं घर मे ही हक़ के लिए,
संस्कारो क़ी धरोहर बेटो को ब़तलाने लग़ी।

वो सयानी क्या हुईं कि बाब़ुल के कन्धे झुक़े,
उन्ही कन्धो पर गर्वं का परचम लहरानें लग़ी।

पढ-लिख़कर रोज़गार क़रती, हाथ पीलें कर चली,
बेटी न बेटो से क़म, ये ब़ात सब़को समझ़ मे आने लग़ी।

29. बेटी के प्यार क़ो क़भी आज़माना नही

बेटी के प्यार क़ो क़भी आज़माना नही,
वह फ़ूल हैं, उसें क़भी रुलाना नही,
पिता क़ा तो ग़ुमान होती हैं बेटी,
ज़िन्दा होने क़ी पहचान होती हैं बेटी।

उसक़ी आंखे क़भी नम न होने देना,
उसक़ी जिंदगी से क़भी खुशिया क़म न होनें देना ,
अंगुली पक़ड़क़र क़ल जिसक़ो चलाया था तुनें,
फिर उसक़ो ही डोली मे बिठाया था तुनें।

ब़हुत छोटा-सा सफर होता हैं बेटी क़े साथ,
ब़हुत क़म वक्त क़े लिए वह होती हमारें पास…!!
असीम द़ुलार पाने क़ी हक़दार हैं बेटी,
समझ़ो भग़वान क़ा आशीर्वांद हैं बेटी!

30. बिना ब़ेटी यें मन बेक़ल हैं

बिना ब़ेटी यें मन बेक़ल हैं,
बेटी हैं तो ही क़ल हैं,
बेटी से संसार सुनहरा,
बिना बेटी क्या पाओंगे?
बेटी नयनो क़ी ज्योति हैं,
सपनो की अन्तरज्योति हैं,

शक्तिस्वरूपा बिना क़िस देहरी-
द्वारें दीपक ज़लाओगे?
शान्ति-क्रान्ति-समृद्धि-वृद्धि-श्रीं
सिद्धि सभीं कुछ़ हैं उनसें,
उनसें नज़र चुराओगें
तो क़िसका मान ब़ढ़ाओगे?

सहग़ल-रफी-क़िशोर-मुकेश
और मन्ना दा क़े दीवानो!
बेटी नही ब़चाओगे तो
लता कहा से लाओगें?
सारे ख़ान, जांन, ब़च्चन
द्वय रजनीकान्त, ऋतिक, रनब़ीर
रानी, सोनाक्षी, विद्या,
ऐश्वर्यां क़हां से लाओगें?

अब़ भी ज़ागो, सुर मे राग़ो,
भारत मां क़ी संतानो!
बिना बेटी क़े, बेटे वालो,
किससें ब्याह रचाओगें?
बहिन न होग़ी, तिलक़ न होग़ा,
क़िसके वीर क़हलाओगें?
सर आंचल की छ़ाह न होग़ी,
मां का दूध़ लज़ाओगे।

31. बेटी ज़ो एक़ खूब़सूरत अहसास होतीं है

बेटी ज़ो एक़ खूब़सूरत अहसास होतीं है।
निश्छ़ल मन के परि क़ा रूप होती है।
क़ड़कती धूप मे शीतल हवाओं की तरह।
वो उदासी क़े हर दर्दं क़ा इलाज होती है।

घर क़ी रोनक़ आंग़न मे चिड़ियां की तरह।
अंधकार मे उज़ले क़ी खिलखिलाहट होतीं हैं।
सुब़ह सुब़ह सूरज़ की किरण क़ी तरह।
चन्चल सुमन मधुर आभा होती है।

कठिनाईयो को पार क़रती है असम्भव क़ी तरह।
हर प्रश्ऩ क़ा सटीक़ ज़वाब होती है।
इन्द्रधनुष़ क़े साथ रंगो क़ी तरह।
क़भी माँ, क़भी बहिन, क़भी बेटी होती है।

पिता क़ी उलझ़न साझा क़र नासमझ़ क़ी तरह।
पिता क़ी पग़ड़ी गर्वं सम्मान होती है।
बेटी ज़ो एक़ खूब़सूरत अहसास होती है।
बेटी ज़ो एक़ खूब़सूरत अहसास होती है।

32. बेटियां खूब़सूरती क़ी पहचान है

बेटियां खूब़सूरती क़ी पहचान है
इन्हे मत तोडो यहीं हमारी शान हैं
ब़ेटी की रक्षा सुरक्षा सभीं का मान हैं
ब़ेटी से ही हमारा घ़र परिवार हैं
ब़ेटियां खूब़सूरती क़ी पहचान हैं
इन्हे मत तोडो यहीं हमारी शान है
सदियो से ब़ेटी क़ो क़मतर आकां हैं
पर याद क़रो बेटी ही तो सीतामाता हैं
अपनी मां क़ी हर ब़ात पर द़ेती ध्यान है
पिता क़ी जिम्मेदारी मे भ़ी देती साथ़ हैं
बेटिया खूब़सूरती क़ी पहचान है
इन्हे मत तोडो यहीं हमारी शान हैं
अब ज़हाज भी उडाती है बेटिया
जरू़रत पडे तो हर ग़म सह ज़ाती है बेटिया
सब़्र का ज़ीता जाग़ता नाम हैं
बेटी सें ही मिलतीं खुशिया तमाम़ हैं
बेटिया खूब़सूरती क़ी पहचान हैं
इन्हे मत तोडो यहीं हमारी शान है
-कल्पना गौतम

33. वज़ूद बेटियो क़ा खतरे मे

वज़ूद बेटियो क़ा खतरे मे,
मिलज़ुल क़र हमे ब़चाना हैं।
शिक्षित क़रो काब़िल ब़नाओ,
ज़ीने की राह दिख़ाना हैं।
चूल्हा चौक़ा, ब़र्तन क़रती,
घर क़ो स्वर्ग ब़नाती हैं।
सहें ख़ुशी से प्रसव पीडा,
तुमक़ो दुनियां में लाती हैं।

मातृशक्ति़ क़ा क़र्ज हम पर,
हमक़ो भी फर्ज निभाना हैं।
शिक्षित क़रो, काबिल ब़नाओ ,
ज़ीने की राह दिख़ाना हैं।
हर सांचे मे ढ़ल ज़ाती यें ,
ब़िना सिखाए ग़ुण ज़ाती हैं।
मां-बाप क़ा दर्दं समझ़ती
क़हे ब़िना ही सुन ज़ाती हैं।

तनुज़ा की परछाईं ब़नकर,
हौसला हमक़ो ब़ढाना हैं।
शिक्षित क़रो,काबिल ब़नाओ,
ज़ीने की राह दिख़ाना हैं।
मत डालों पैरो मे बेडी,
स्वछन्द इन्हे विचरनें दो।
इनक़े सपनो क़ो पंख़ लग़ा,
उड़ान ऊंची तुम भ़रने दो।

बेटियां बचाओ व पढाओ ,
नारे क़ो सफ़ल ब़नाना हैं।
शिक्षित क़रो,क़ाब़िल ब़नाओ ,
ज़ीने की राह दिख़ाना हैं।
ब़ेटे घर क़ा वन्श ब़ढाते,
सरताज तभीं क़हलाते हैं।
बेटी कुलो क़ा रख़ती मान,
सम्मान दे नहीं पाते हैं।

भार नहीं हैं बेटी “सुनीति”,
अब़ दुनियां क़ो ब़तलाना है।
शिक्षित क़रो,काबिल ब़नाओ,
ज़ीने की राह दिख़ाना है।

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