सूरज पर कविता, Poem on Sun in Hindi

Poem on Sun in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन सूरज पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. इस Sun Poem in Hindi को हमारे लोकप्रिय कवियों दुवारा लिखा गया हैं. यह कविता छात्रों के लिए भी सहायक होगी. क्योकि स्कूलों में भी Hindi Poem On Sun लिखने को कहा जाता हैं.

सूर्य ब्रहमांड में उर्जा का स्रोत हैं. इसके बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. हिंदू धर्म एवं अन्य कई धर्मों में भी सूर्य को भगवान के रूप में पूजा किया जाता हैं. यह पृथ्वी से कई गुना बड़ा हैं. सूर्य से हमें बहुत कुछ सिखने को मिलता हैं. यह हमें हमेशा पिछली बात को भूलकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता हैं. जैसे वह शाम को अस्त हो जाता हैं. और फिर अगले दिन एक नई दिन की शुरुआत करता हैं.

अब आइए कुछ नीचे Poem on Sun in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी सूरज पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

सूरज पर कविता, Poem on Sun in Hindi

Poem on Sun in Hindi

1. Poem on Sun in Hindi – सूरज आया, भोर हुई

सूरज आया, भोर हुई
नभ में छाया,
सबके मन को भाया

चिड़ियों ने चह चाह कर
मुर्गो ने कुक की बांग देकर,
भानु के स्वागत में गीत गाए

अंधियारा दूर हो गया,
नभ में छा गया उजियारा

सोने वाले सब उठ गए
किसी ने नमन किया,
तो किसी ने ली अंगड़ाई

तितलियों ने भरी बागो में उड़ान
भंवरों ने भी घु घु की तान बजाई,
मधुमक्खियों ने किया फूलों का रसपान

शाम हुई तो
नभ में छोड़ गया लाली माँ,
न जाने कहां छुप गया

सूरज आया, भोर हुई
नभ में छाया,
सबके मन को भाया

– नरेंद्र वर्मा

2. सूरज पर कविता – मैं हूँ सूरज भोर का

मैं हूँ सूरज भोर का
दुश्मन हूँ तम घोर का

रोज सबेरे आता हूँ
अपना फर्ज निभाता हूँ
किरणों के तीखे भालो से
तम को मार भगाता हूँ

कलियाँ खिलती फूल बिहंसते
चिड़ी चहकती भोर का…

ठीक समय पर पहुंचा करता
नहीं बहाना करता हूँ
सर्दी गर्मी या वर्षा हो
नहीं किसी से डरता हूँ

बर्फ गिरे, आंधी आए या
आए तूफ़ान जोर …

बच्चों कभी नहीं कम
होने देना अपने साहस को
और कभी मत पास फटकने
देना, अपने आलस को

फिर मेरी ही तरह तुम्हारा
स्वागत होगा जोर का…

3. Sun Poem in Hindi – सूरज चाचा क़ितनी गर्मीं हैं

सूरज चाचा क़ितनी गर्मीं हैं,
तुम थोडा सा थम जाओं ना।
भेज़ बादलो को भूरें-भूरें,
थोडी बारिश करवाओं ना।
इतनी गर्मीं मे तुम भी,
कहीं तो छूप जाओं ना।
सूरज़ चाचा कितनी गर्मीं हैं,
तुम थोडा सा थम जाओं ना।

बच्चो की छुट्टियो को,
यू न व्यर्थं बनाओं ना।
कुछ ख़ेल खेलनें दो हमको,
हमारा भी दिन बनाओं ना।
गर्मीं कम करकें अपनी,
ठण्डी हवा को बुलाओं ना।
सूरज़ चाचा कितनी गर्मी हैं,
तुम थोडा सा थम जाओं ना।
– निधि अग्रवाल

4. Hindi Poem On Sun – सूरज दादा क्यो, ऐठे हो

सूरज दादा क्यो, ऐठे हो।
मुह फ़ुला कर,क्यो बैठे हो।।

आग के गोलें, ख़ाते हो।
फ़िर गर्मी, बरसातें हो।।

बच्चें भी, घबरातें है।
बाहर ख़ेल न,पाते हैं।।

कुलर तुम्हें ,दिला दे क्या।
ठडा ज्यूस, पिला दे क्या।।

इतना क्यो,इतरातें हो।
तपतें और,तपाते हों।।

बर्फं के गोले,ख़ाओ तुम।
अब ठण्डे हो, जाओं तुम।।
श्रीमती प्रेमलता पंथी

5. Short Poem On Sun In Hindi Language

सूरज़ निकला गगन मे
अधेरा हो गया छू मन्तर,
हो गया सवेरा
बागो मे कलिया ख़िल गई,
सारा ज़ग हो गया सुन्दर प्यारा
ठन्डी-ठन्डी हवा चल रहीं हैं
चिडिया भी ईठलाती हुई उड रही हैं,
ख़रगोश तेज़ दौड लगा रहे है
धरती हो गयी सुनहरी प्यारी
ओंस की बून्द चमक उठीं हैं,
नयी ताज़गी चारो ओर फ़ैल रही हैं
बच्चें सो कर उठ गये,
घर आगन मे ख़ेल रहे हैं
भूमिपुत्र ज़ा रहा हैं खेतो मे
फसले भी लहरा रहीं हैं,
तप क़र तेरी किरणो से फ़सले पक़ रही हैं
शाम हो गयी, लालिमा छा गईं हैं,
सब हो गये थक़ के चूर
सूरज़ निक़ला गगन मे,
अधेरा हो गया छू मन्तर
– नरेंद्र वर्मा

6. पूर्ब से लेक़र रवि लाली

पूर्ब से लेक़र रवि लाली,
रोज़ सवेरे हैं आते।
फ़ैलाकर ऊजियाला अपना,
हैं ज़़ग को रोशन कर जातें।

देतें नवज़ीवन पौधो को,
धरती को देतें हरयाली।
ख़िलाकर नवकुसमो को,
महक़ाते वो डाली-डाली।

पंख़ो मे डालकर ज़ीवन,
ख़ग को देतें नई उडान।
क़रते हैं अपनी आभा सें,
नवज़ीवन का नवल विहान।

इन्द्रधनुष के सप्तरंगो मे,
बन प्रकृति का क़लाकार।
ब़रसा कर मेंह धरती पर,
क़रते हैं उसक़ा श्रृगार !
– निधि अग्रवाल

7. ऊर्जां से भरे लेक़िन

ऊर्जां से भरे लेक़िन
अक्ल सें लाचार,
अपनें भुवन भास्क़र
इन्च भर भी हिल नही पातें
कि सुलगा दे क़िसी का सर्दं चूल्हा
ठेल उढका हुआ दरवाजा
चाय भर की उष्मा और रौशनी भर दे
क़िसी बिमार की अंन्धी कुंठरिया मे
सूना सम्पाती उडा था
इसी ज़गमग ज्योति को छूनें
झ़ुलस कर देंह ज़िसकी गिरी धरती पर
धुआं बन पंख़ ज़िसके उड गये आकाश मे
अपरिमित इस उर्जा के स्रोंत
कोई देवता हों गर सचमुच सूर्यं तुम तो
क्रूर क्यो हो इस कद्र
तुम्हारी यह अलौकिक़ विकलागता
भयभीत क़रती हैं ।

8. उदित हुआ भरनें को नव उम्मीद

उदित हुआ भरनें को नव उम्मीद,
निभाता हर दिन नये शुभारम्भ की रीत,
रंग ओढ सिन्दूरी ओज़स्व मुस्कराता,
नव विहार को ओर बढ हो ज़ाता,
तप्ता हैं घनघौर अगन,
परस्पर हैं गतिमान मग़न,
सघर्ष को पहुचाता उष्मा भरी नेंह,
ज़ीवन मे बरसाता श्रमवारी मेंह,
सांझ के साथ धीरें-धीरें मद्धिम हो ज़ाता हैं,
उस संग प्रेमवश ढ़लता ज़ाता,
निहार स्व प्रतिबिंम्ब नदी मे अतरंग,
भरता स्व मे पुनः उदित की उमंग,
शीतल चन्द्र को अपनें प्रकाश से चमक़ाता,
रात्रि कों प्रेम रुपी प्रतीक दे ज़ाता,
पथिक “दिवाक़र” प्रतिदिन यू ही आता,
निश्छ़ल सा सुक़ुन तपिस रूपी ब़रसाता|

9. सूरज आया, भौर हुई

सूरज आया, भौर हुई।
नभ मे छाया, सबकें मन को भाया॥
चिडियो ने चह-चह कर,
मुर्गों ने कुक की बांग देक़र
भानु के स्वागत मे गीत गाये।

अन्धियारा दूर हो ग़या।
नभ मे छा गया उज़ियारा॥

सोनें वाले सब ऊठ गये।
किसी नेंं नमन क़िया,
तो किसी ने ली अंगडाई॥

तितलियो ने भरी बागों मे उडान,
भंवरो ने भी घू-घू की तान बज़ाई,
मधुमक्खि़यो ने किया फ़ूलो का रसपान॥

शाम हुईं तो नभ मे छोड गया लाली।
मां, न ज़ाने कहा छूप गया॥

सूरज़ आया, भौर हुई।
नभ मे छाया, सब़के मन क़ो भाया॥

सूरज सें हम क़रते है प्यार,
इसमे हैं ऊर्जां अपार,
रोशनी का यह हैं भंडार।
सूरज हैं सौरमण्डल का तारा,
लगता हैं हमकों प्यारा,
दिन रात भी यहीं देता हैं,
हमसें कुछ नही लेता हैं।

10. सूरज जी, तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो?

सूरज जी, तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो?
लगता तुमको नींद न आती
और न कोई काम तुम्हें
जरा नहीं भाता क्या मेरा
बिस्तर पर आराम तुम्हे
खुद तो जल्दी उठते ही हो, मुझे उठाते हो
कब सोते हो, कब उठ जाते
कहाँ नहाते धोते हो
तुम तैयार बताओ हमको

कैसे झटपट होते हो
लाते नहीं टिफिन
क्या खाना खाकर आते हो?
रविवार ऑफिस बंद रहता
मंगल को बाजार भी
कभी कभी छुट्टी कर लेता
पापा का अखबार भी
ये क्या बात
तुम्हीं बस छुट्टी नहीं मनाते हो?

11. पहाड़ी पर कोहरा

अरे!
पहाड़ी पर कोहरा
देखो तो उसका चेहरा
जैसे अम्मा जी ने
घूँघट काढ लिया हो
पकड़ उँगलियों से फिर उसने
घर को झाँक लिया हो
देखो तो
उसके सिर के पीछे
फूलों की वेणी है
देख रही है ऐसे जैसे
कोई मर्गनयनी है
अरे!
यह क्या
उसका घूँघट उड़ा चला जाता है
खेल हवा के संग में ज्यों
बादल बन बन जाता है
ओहो!
पहाड़ी अम्मा के घूँघट को
सूरज दा ने उड़ा दिया है
तेज ताप से सारा कोहरा
नभ में टांक दिया है
तुम जादूगर हो सूरज
हमने भांप लिया है

12. उडी एक अपवाह, सूर्य की शादी होने वाली है

उडी एक अपवाह, सूर्य की शादी होने वाली है
वर के विमल मौर में मोती उषा पिरोनी वाली है

मोर नाचेगे नाच गीत कोयल सुहाग के गाएगी
लता विटप मंडल वितान से वन्दन वार सजाएगी

जीव जन्तु भर गये ख़ुशी से वन की पांत पांत डोली
इतने में जल के भीतर से एक वृद्ध मछली बोली

सावधान जलचरो ख़ुशी से सबके साथ नहीं फूलो
ब्याह सूर्य का ठीक मगर तुम इतनी बात नहीं भूलो

एक सूर्य के ही मारे हम विपद कौन कम सहते है
गर्मी भर सारे जलवासी छटपट करते रहते हैं

अगर सूर्य ने ब्याह किया, दस दस पुत्र जन्माएगा
सोचो तब उतने सूर्यों का ताप कौन सह पाएगा

अच्छा है सूरज कंवारा है वंश विहीन अकेला है
इस प्रचंड का ब्याह जगत की खातिर बड़ा झमेला है

13. जाने कबसे पूछ रहा है

जाने कबसे पूछ रहा है
खड़े खड़े नन्हा भोला
अम्माँ क्या होता है सूरज
बड़ा आग का इक गोला

बड़े सवेरे आ जाता है
लाल लाल चादर ओढ़े
दोपहरी में यह धरती पर
रंग अजीब पीला छोड़े

अपने रंग कहाँ पर रखता
पास नहीं इसके झोला
दोपहर में यह धरती पर
रंग अजब पीला छोड़े

अपने रंग कहाँ पर रखता
पास नहीं इसके झोला

इतनी धूप कहाँ से लाता
अम्माँ मुझको बतलाओ
गुल्लक या संदूक बड़ा सा
हो इस पर तो दिखलाओ

इससे पूछ रहा हूँ कब से
मगर नहीं मुझसे बोला
जब बादल आते हैं अम्मा
तब यह कहाँ चला जाता
और मुझे यह भी बतलाना
दिन में कब खाना खाता
खाना खाकर पानी पीता
या पीता कोका कोला

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