मकड़ी पर कविता, Poem on Spider in Hindi

Poem on Spider in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ मकड़ी पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

मकड़ी पर कविता, Poem on Spider in Hindi

Poem on Spider in Hindi

1. मकड़ी पर कविता

अष्ट भुजाधारी विचित्र बनावट,
रूप रंग से लागे काल भैरव,
धरती का कोना कोना करे हाहाकार,
जब फैलता रहे इस मकड़ी का जाल।
जाल इसका मनोरूपी, अनोखा जिसका हाल
करता रहे यही पुकार,
मेरे घर में है एक मकड़ी का जाल;
लिपटा रहे इस श्वेत वर्ण, ना दिखे इसके अंदर
ना दिखे इसके बाहर,
पर बंद दरवाजों के पीछे है एक मकड़ी का जाल
इसकी कला पर फिदा दुनिया सारी,
बिन पानी बिन साधन बिना
रोज बनाए एक नया जाल,
हाय यह है हर घर की कहानी,
बनाए यह अष्टभुजाधारी एक मकड़ी का जाल |
Lalit Dadhich

2. मकड़ी का जाल

नश्वर यह जीवन
तो क्या हुआ ?
देखो ! मकड़ी का जाल ,
कितने संघर्ष से बना है
उसने कौन बताएगा ,
उसका हाल I
उचित होगा या अनुचित होगा ,
उद्देश्य कहाँ वह जानती है
कर्म ही सर्वोच्य है
सिर्फ कर्म को पहचानती है
एक नन्हीं सी मकड़ी देखो !
बुनते जाल !
अरे ! हम तो ठहरे भी इन्सान
कर्म पथ पर रुके अगर
तो होगा यह धिक्कार
होगा यह धिक्कार ii
subhash yadav

3. Poem on Spider in Hindi

मकड़ी मकड़ी जाले पूर !
पूर के जल्दी हट जा दूर !!

दूर बैठ जा गाले पर
देख कि कैसे खुद फँस जाते
कीट-पतंगे जालों पर
देख कि कैसे मक्खी-मच्छर
इनके चक्कर में आकर
हो जाते हैं चकनाचूर ।।

मकड़ी मकड़ी जाले…।।

इन जालों को देख देखकर
बने रूप कई जालों के
कोई चिड़ीमार के हाथों
कोई मछली मारों के
कोई जाल निरे नर भक्षी
कोई हरते सबके नूर ।।

मकड़ी मकड़ी जाले…।।

जिनको देखो उलझे बैठे
जालों के जंजालों में
कोई धर्म-कर्म में उलझे
कोई भ्रष्टाचारों में
कुछ के जाले सम्मोहक हैं
कुछ के हैं खट्टे अंगूर ।।

मकड़ी मकड़ी जाले…।।
प्रेमशंकर रघुवंशी

4. मेरे चारों ओर बिछ गया है जो यह रेशमी जाल

मेरे चारों ओर बिछ गया है जो यह रेशमी जाल

मैंने ही तो उसको मकड़ी बन-बन कर दिन-रात बुना है;

नए-नए झीने तारों को

अपने से बाहर फैलाते जाने का रंगीन मोह

मैंने ही रह-रह कर पाला है

अगर आज मैं उलझ गया हूँ

अपने ही आत्मा से निर्मित इन तारों में

अगर प्रतीक्षा-रक्त-पिपासा-तृप्ति-प्रतीक्षा-रक्त-पिपासा—

यही हो गया है जीवन-क्रम

तो अपनी दुर्बलता के इन अभिशापों को

चुप होकर सहना ही होगा

और कदाचित्—

कभी मुक्ति की तृष्णा जागे—

तो चुन-चुन कर एक-एक उलझे धागे

अपने को ही सुलझाने होंगे;

एक-एक कर इनको सबको पीना होगा

एकमात्र बाहर के इन झंझावातों से

नहीं कभी भी ये ताने-बाने टूटेंगे।
प्रयागनारायण त्रिपाठी

5. नीयत बुरी तो दावत कैसी

एक थी मकड़ी बड़ी सयानी
नाम था उसका बीबी जानी
उसका था इक मकड़ा राजा
मकड़ा राजा लाया बाजा

बाजा देखा वह मुस्काई
अक्ल में उसके बात यह आई
बाजा खूब अनोखा है यह
अच्छा बढिया मौका है यह

चींटी पिस्सू मक्खी मच्छर
दावत दूंगी सबको जाकर
बाजा सुनने सब आएँगे
हम भी दावत फिर खाएंगे

मकड़ी ने फिर पहनी साड़ी
साथ में ले ली अपनी गाड़ी
फिर पहुची मक्खी के घर
मक्खी भाग जान बचाकर

मकड़ी बोली आओ आओ
हम से इतना मत खबराओ
सुनो सुनो ऐ बीबी जानी
हमें पता है तुम हो ज्ञानी

और सुना है मकड़े राजा
लाए है इक बढिया बाजा
दावत देने तुम आई हो
हमको लेने तुम आई हो

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