घर पर कविता, Home Poem in Hindi

Home Poem in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ घर पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

घर पर कविता, Home Poem in Hindi

Home Poem in Hindi

1. घर पूछता है

घर पूछता है,
अक्सर यह सवाल,
क्या जाना है तुमने,
कभी मेरा हाल?

या फिर समझ लिया,
ईंट, पत्थर, गारे का
बुत बेज़बान, मकबरे सा
जो हो दीदार-ए-आम!

पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ,
जो चढ़ीं मेरी सीढ़ियाँ,
आज नहीं देखें कभी,
मेरे जर्जर हालात को।

बचपन की खेली थीं,
खूब मैंने अठ्ठखेलियाँ,
जवानी में भी,कान्हा संग
नाचीं थीं अनेक गोपियाँ।

दूल्हा बना, घोड़ी चढ़ा,
बारात में की कई मैंने मस्तियाँ,
मुँह दिखाई, फिर गोद भराई,
फिर से बचपन था मैं जिया।

पइयाँ पइयाँ तू चला,
फिर साइकिल का चक्का बढ़ा,
कार के नीचे कभी न,
तूने पांव था अपना धरा।

फिर समय का वहीं,
चक्का चला,
निरंतर आगे तू बढ़ा,
सपने किए साकार फिर,
न कभी तू पीछे मुड़ा।

मात-पिता जो हैं तेरे,
मन में अपने धीरज धरा,
तेरे नाम का दीया,
मेरे आंगन में सदा जला।

पर तू! क्या तुझे इसका,
भान है ज़रा।
यह न हो तेरे नाम का दीया,
बन जाए उनके अंतिम,
श्वास का दीया क्या है!

मैं तो हूँ केवल,
ईंट, पत्थर का एक ढांचा,
पर क्या नहीं है तुझे,
उनके प्रेम पर मान ज़रा सा?

कुछ तो दे ध्यान तू,
कर उनके प्रेम का मान तू,
आज, हाँ आज….

घर पूछता है,
यह सवाल,
क्या जाना है तुमने,
कभी मेरा हाल?
बोलो, कुछ तो बोलो,
क्या जाना है तुमने,
कभी मेरा हाल?
अक्षुण्णया अनुरूपा

2. घर होता है सबका प्यारा

घर होता है सबका प्यारा।
जिसमें होता प्यार बहुत सारा
मिलकर बैठते सब जहां
खुलता सब की खुशियों का पिटारा
घर होता है सबका प्यारा।

सुख-दुख को जहां बांटा जाता
समय ना जाने कब बीत जाता
भरा रहता यादों से सारा
घर होता है सबका प्यारा।

आंधी तूफान से हमें बचाता
इंसान जहां पर सुरक्षा पाता
ईटों का यह ढांचा न्यारा
घर होता है सबसे प्यारा।

तीज त्यौहार जब घर में होता
आंगन है फूलों से सजता
जगमग करता लगता प्यारा
घर होता है सबसे प्यारा।
_Pooja Mahawar

3. मेरा घर है..

यह सिर्फ ईट पत्थर से बना ढांचा नहीं
मेरा घर है..

जिसमें उंगली पकड़कर सीखा मैंने चलना
अनुभव सुनकर सीखा जिंदगी में ढलना

मां का प्यार दादी का दुलार
अपनों की छाया में खुशियों की बहार

बैठा हूं जब कभी थक हार कर
पाया है मैंने अपनों का प्यार

मुसीबत में देते हैं सब एक दूसरे का साथ
यह मेरा घर है..

जहां खुशियां मिलती हजार।
_Pooja Mahawar

4. घर पर कविता

कई टुकड़ों में बिखड़ जाते है, समानों के ढ़ेर

जब सभी कलाकारीयाँ करते है, मेरे घर में

थकते नहीं देखा है, कभी चीटियों को आते-जाते

घर तो बन गया है, अब कीड़े-फतिंगें, और पक्षियों के

हाँ! यहीं है मेरा घर, जहाँ लगते है चीटियों के रेलम-रेल

कभी बाहर से बन्दरों की टोलियाँ आई

तो, किसी ने घर में घुस कर डाले है ढ़ेर

हाँ! यहीं है मेरा घर, हाँ! यहीं है मेरा घर

जहाँ कई मासूम सी जान हो जाती है ढ़ेर

कभी बिल्लीयों को खुशबूँ लगी, स्वादिष्ट भोजन की

तो आये घर पे, और खाते है खाना, साथ में हम दोनों

तो कभी हवाओ ने गुस्से में आकर, दरवाज़ों को पीटा

और अवाज चली गयी मकान मालिक के पास;

कभी तितलियाँ आकर ,बैठती है बदन पर;

तो कभी खोयी सी चिड़िया, आ जाती है अंदर

कभी छिपकलियाँ उलटे चल रहे हैं, दीवारों पे

तो, कभी चिट्टियाँ भी चढ़ रही हैं, दीवारों पे

हाँ! यहीं है मेरा घर, हाँ! यहीं है मेरा घर,

ओ रोज देखते हैं, मेरे संघर्ष को

और मैं भी देखता हूँ, उनके संघर्ष को

कभी फुर्सत मिले तो, हम बाते भी किया करते है

क्यूँ नहीं, हम जो एक, अच्छे दोस्त बन गए है

हाँ! यहीं है मेरा घर, हाँ! यहीं है मेरा घर

5. अपना घर तो अपना ही होता है

अपना घर तो अपना ही होता है,
चाहे बना हो वो लकड़ी मिट्टी का,
या बना हो ईट, सीमेंट, सरिये का,
रहने मे तो वही सकून आता है,
अपना घर तो अपना ही होता है|

चाहे बारिश मे टपके छत,
या फर्श मे बारों महीने रहती सीलन हो,
लेकिन हमें वही रहना अच्छा लगता है,
अपना घर तो अपना ही होता है|

महल वही है हमारे लिए,
वही हमारे लिए मंदिर है,
जिंदगी भर की कमाई का तोफा वही,
वही हमारे लिए जन्नत है,
जैसा भी हो चाहे छोटा हो या बड़ा,
अपना घर तो अपना ही होता है|

जहाँ रहता है हमारा परिवार,
जिसे ये घर सभाले रहता है,
अनेक बीती यादों को,
ये घर समेटे रखता है,
हमारा सुख – दुःख जुडा है इससे,
ये हमारे लिए सब कुछ है,
जैसा भी है चाहे छोटा हो या बड़ा,
अपना घर तो अपना ही होता है|

दादा – दादी का आशीर्वाद यहाँ,
माता पिता की डाट यहाँ,
भाई – बहन का झगड़ा यहाँ,
बचपन की सब यादें यहाँ,
फिर क्यों हम इसको छोड़े,
क्यों हम इससे मुँह मोड़े,
जैसा भी है ये सबसे अच्छा है|

अच्छे लगते है हमें कमरे इसके,
अच्छा लगता इसका आँगन,
अच्छा लगता इसके बगल मे,
रंग बिरंगा फूलों का गार्डन|

फिर क्यों हम इसको छोडे,
क्यों हम इससे मुँह मोड़े,
पूर्वजो का दिया ये एक तोफा है,
अनेक यादों से भरा संन्दुक है,
इसका हर पत्थर, हर ईट अनमोल है|

न इसको पैसो से तोला जा सकता,
ये ऐसा अनमोल हिरा है,
चाहे हो ये छोटा या बड़ा,
ये हमारा पुस्तेनी घर है|

जो हमें अपने जान से भी प्यारा है,
फिर क्यों हम इसको छोड के जाए,
क्यों इसको खंडर बनने दे,
क्यों इससे जुडी यादों को,
ऐसे ही मिटने दे,
इसको बनाये रखना मेरा फर्ज है,
क्योंकि जैसा भी है छोटा बड़ा,
अपना घर तो अपना ही है |

6. जब भी दूर गई घर से

जब भी दूर गई घर से

अजाने ही

कोई साथ चला आया हर बार

उसे लौटाने ही को लौट आती हूँ

बार-बार यात्राओं से

घर की ओर

जाने मैं किस ओर निकली हूँ

यात्राओं के नाम से

घर से संसार को जाती हूँ

संसार से घर को!
ममता बारहठ

7. मेरे घर में हुई पुताई

मेरे घर में हुई पुताई
भैया! समझो शामत आई
पूरे घर में मचा झमेला
बच्चे बड़े सभी ने झेला
कमरे किए जब खाली
सबसे ही मेहनत करवा ली

पापा तब आए उलझन में
कितना झुंझलाए थे मन में
कैसे बाहर हो अलमारी
कहाँ रखे ये चीजे सारी
बाहर सब सामान निकाला
घर लगता था गडबडझाला
हुआ कहीं गुम मेरा बस्ता

खोज खोज हालत थी खस्ता
गद्दे में जब उसको पाया
चैन तब कहीं जाकर आया
सात दिनों तक हुई पुताई
घर में फिर रौनक थी आई
फिर से सब सामान सजाया
हिप हिप हुर्रे सबने गाया

8. लकड़ी पत्थर ईंटों से

लकड़ी पत्थर ईंटों से
नहीं कभी घर बनता है

मम्मी से ही घर है घर
पापा से ही दर है दर
अगर नहीं मम्मी पापा
तिनका तिनका इधर उधर
यानी मम्मी पापा से
ही केवल घर बनता है

लकड़ी पत्थर ईंटों से
नहीं कभी घर बनता हैं

9. सदा यही तो कहती हो माँ

सदा यही तो कहती हो माँ
घर यह सिर्फ हमारा अपना
लेकिन माँ कैसे मैं मानूँ
घर तो यह कितनों का अपना?

देखो तो कैसे ये चूहे
खेल रहे है पकड़म पकड़ी
कैसे मच्छर टहल रहे हैं
कैसे मस्त पड़ी है मकड़ी

और छिपकली को तो देखो
चलती है जो गश्त लगाती
अरे कतारें बाँधे बाँधे
चींटी चींटी दौड़ी जाती

और उधर आंगन में देखो
पंछी कैसे झपट रहे हैं
बिल्कुल दीदी और मुझ जैसे
किसी बात पर झगड़ रहे हैं

इसीलिए तो कहता हूँ माँ
घर न समझो सिर्फ हमारा
सदा सदा से जो भी रहता
सबका ही है घर यह प्यारा

10. सबसे अच्छा अपना घर

सबसे अच्छा अपना घर
अपने घर पर है बिस्तर

छाया हरी भरी इसकी
मीठे मीठे इसके फर

आ जाना चुपचाप यहाँ
थक जाना तुम कभी अगर

धूप का जंगल एक कुआं
प्यास तुम्हारी लेगा हर

जानी पहचानी पोथी
जाने पहचाने अक्षर

जो चाहे जब आ जाना
क्षितिजों की सीमा छूकर
अपने घर पर है बिस्तर

11. मुझकों ऊंची मिले हवेली

मुझकों ऊंची मिले हवेली
या मिल जाए राजमहल
छप्पर की कुटिया हो चाहे
वृक्षों की छाया शीतल

मेरा घर ये नहीं बनेंगी
चाहें हो कितनी सुंदर
मेरी माँ जिस जगह रहेगी
वहीं बनेगा मेरा घर

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