गुलाब पर कविता, Poem On Rose Flower In Hindi

Poem On Rose Flower In Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ गुलाब पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

गुलाब पर कविता, Poem On Rose Flower In Hindi

Poem On Rose Flower In Hindi

1. गुलाब पर कविता

दो गुलाब के फूल छू गए जब से होठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है।

रोम-रोम में खिले चमेली
साँस-साँस में महके बेला,
पोर-पोर से झरे मालती
अंग-अंग जुड़े जुही का मेला
पग-पग लहरे मानसरोवर, डगर-डगर छाया कदम्ब की
तुम जब से मिल गए उमर का खंडहर राजभवन लगता है।
दो गुलाब के फूल…

छिन-छिन ऐसा लगे कि कोई
बिना रंग के खेले होली,
यूँ मदमाएँ प्राण कि जैसे
नई बहू की चंदन डोली
जेठ लगे सावन मनभावन और दुपहरी सांझ बसंती
ऐसा मौसम फिरा धूल का ढेला एक रतन लगता है।
दो गुलाब के फूल…

जाने क्या हो गया कि हरदम
बिना दिये के रहे उजाला,
चमके टाट बिछावन जैसे
तारों वाला नील दुशाला
हस्तामलक हुए सुख सारे दुख के ऐसे ढहे कगारे
व्यंग्य-वचन लगता था जो कल वह अब अभिनन्दन लगता है।
दो गुलाब के फूल…

तुम्हें चूमने का गुनाह कर
ऐसा पुण्य कर गई माटी
जनम-जनम के लिए हरी
हो गई प्राण की बंजर घाटी
पाप-पुण्य की बात न छेड़ों स्वर्ग-नर्क की करो न चर्चा
याद किसी की मन में हो तो मगहर वृन्दावन लगता है।
दो गुलाब के फूल…

तुम्हें देख क्या लिया कि कोई
सूरत दिखती नहीं पराई
तुमने क्या छू दिया, बन गई
महाकाव्य कोई चौपाई
कौन करे अब मठ में पूजा, कौन फिराए हाथ सुमरिनी
जीना हमें भजन लगता है, मरना हमें हवन लगता है।
दो गुलाब के फूल…
गोपालदास ‘नीरज’

2. Poem On Rose Flower In Hindi

गुलाब का फूल है
हमारा पढ़ा – लिखा
मैंने उसे काफी
उलट-पुलट कर देखा है
मुझे तो वह ऐसा ही दिखा

सबसे बड़ा सबूत
उसके गुलाब होने का यह है
कि वह गाँव में जाकर
बसने के लिए
तैयार नहीं है

गाँव में उसकी
प्रदर्शनी कौन कराएगा
वहां वह अपनी शोभा की
प्रशंसा किससे कराएगा

वह फूलने के बाद
किसी फसल में थोड़े ही
बदल जाता है
मूरख किसान को फूलने के बाद
फसल देने वाला ही तो भाता है

गाँव में इसलिए ठीक है
अलसी और सरसों और
तिली के फूल
जा नहीं सकते वहाँ कदापि
गुलाब और लिली के फूल

बुरा नहीं मानना चाहिए
इस गुलाब – वृत्ति का
गाँव वालों को
क्योंकि वहाँ रहना चाहिए सिर्फ ऐसे हाथ – पाँव वालों को

जो बो सकते हैं
और काट सकते हैं
कुएँ खोद सकते हैं
खाई पाट सकते हैं
और फिर भी चुपचाप
समाजवाद पर भाषण सुनकर
वोट दे सकते हैं
गुलाब के फूल को
और फिर अपना सकते हैं
पूरे जोश के साथ अपनी उसी भूल को

याने जुट जा सकते हैं जो
उगाने में अलसी और
सरसों और तिली के फूल
गुलाब और लिली के फूल
तो भाई यहीं शांतिवन में रहेंगे

बुरा मानने की इसमें
कोई बात नहीं है
बीच – बीच में यह प्रस्ताव कि गुलाब वहाँ जा कर
चिकित्सा करे या पढ़ाये
पेश करते रहने में हर्ज नहीं है
मगर साफ समझ लेना चाहिए
गुलाब का यह फर्ज नहीं है
कि गाँवों में जाकर खिले
अलसी और सरसों वगैरा से हिले-मिले
और खोये अपना आपा
ढंक जाये वहां की धूल से
सरापा

और वक्तन बवक्तन
अपनी प्रदर्शनी न कराये
आमीन, गुलाब पर ऐसा वक्त कभी न आये
भवानीप्रसाद मिश्र

3. हाय, कोमल गुलाब के गाल

हाय, कोमल गुलाब के गाल
झुलस दे ऊष्मा का अभिशाप?
प्रथम यौवन, कलियों के जाल
स्वयं कुम्हला जाएं चुपचाप!

भले हीं हममे, तुममे कुछ
ये रूप रंग का भेद हो
है खुशबुओं में फर्क क्या, गुलाब हम, गुलाब तुम

भले ही शब्द हो अलग, अलग-अलग हों पंक्तियाँ
अलग-अलग क्रियाएँ हों,अलग-अलग विभक्तियाँ
मगर हृदय से पूछिए, तो अर्थ सबका एक है
बता गयी है कान में, ये बात शब्द शक्तियाँ

भले हीं हममे, तुममे कुछ
कथन के ढंग का कुछ भेद हो
मगर सभी के प्यार की,किताब हम, किताब तुम !

उड़े भले अलग-अलग ये पंछियों की टोलियाँ
अलग-अलग हो रूप और अलग-अलग हो बोलियाँ
मगर उड़ान के लिये, खुला गगन तो एक है
भरी हुई है प्रीति से, सभी के मन की झोलियाँ

भले ही अपने सामने
नए-नए सवाल हों
मगर हर एक सवाल का जवाब हम, जवाब तुम
चलो कि आज मिल के साथ राष्ट्र-वन्दना करें
सभी दिलों में एक रंग, सिर्फ प्यार का भरें
चलो कि आज मिल के हम, खाएं एक ये कसम
स्वदेश के लिये जियें ,स्वदेश के लिये मरें

तुम्हें कसम है ,
तुम भी एक पल न टूटना
कि देश के खुले नयन के ख्वाब हम हैं, ख्वाब तुम
कुंअर बेचैन

4. रोज देने का उसे आज कर रहा मेरा मन

रोज देने का उसे आज कर रहा मेरा मन
कर ले वह स्वीकार तो होगा जीवन चन्दन

यह आरज़ू पाले बैठे देखो कब से हम
कर लेगी आज कबूल तो दूर होंगे गम

सताएं गए प्यार में हम उसके द्वारा खूब
ना होगी शुरुआत तो जायेंगे जीवन से ऊब

बस दिखे इक नजर यह गुलाब है सुन्दर
है बिलकुल इस जैसा दिल मेरा दूंगा खबर

क्योंकि प्यार में इससे अनमोल तोहफा नहीं
एक बार जुड़ेगा इससे तो मिलेगी ऐसे वफ़ा नहीं

— Lokesh Indoura

5. लेके खड़े थे हम गुलाब उसके वास्ते

लेके खड़े थे हम गुलाब उसके वास्ते
इच्छा थी हमारी कभी निकले हमारे रास्ते

ताकि मुलाक़ात इस बहाने से हो
प्रेम की शुरुआत प्रेम फ़साने से हो

समझे गुलाब सा कोमल हमारा दिल
महके गुलाब सा उस पहली का भी संग दिल

आरज़ू मन में कई दिनों से इंतज़ार में
कई गुलाब मुरझा गए देखो हमारे प्यार में

पर सच्चे इश्क़ की यारों कौन करता है कदर यहाँ
हाथ में रखे हुए गुलाब हम रह गए वहां के वहां

6. गुलाब सी हसीन वो क्या उसे गुलाब दूँ

गुलाब सी हसीन वो क्या उसे गुलाब दूँ।
खुश्बू का है बाग़ वो देख देख ख्वाब लूँ।

गुजरे जब भी नज़रों से दिल में बजे गिटार
नूर उसका देखकर बढ़ता जाये प्यार
कितना चाहूँ उसको इसका क्या हिसाब दूँ
गुलाब सी हसीन वो

गुलाबो नाम रख दूँ सोचता मैं इश्क़ में
देख उसकी सुंदरता गलती ना हो जाये रश्क में
रूप के इस महल पर खुदा को आदाब दूँ
गुलाब सी हसीन वो

गुलाब से होठ है अंग अंग गुलबदन
क्या गुलाब की पायल पहना दूँ गुलाब के कंगन
गुलाबी उसका नशा और क्या शबाब दूँ
गुलाब सी हसीन वो उसको

7. चलो गुलाबों से

चलो गुलाबों से
बातें करें

काँटों में खिलकर भी
हँसते है वे
देखो निडर कैसे
खिलते हैं वे?

घूमें हम उपवन में
बातें करें

सप्तरंगी इन्द्रधनुष
रचते हैं वे
खुशबू से पुलकित मन
करते हैं वे

बैठे हम संग साथ
बातें करें

खिले हम भी उन सा ही
कहते हैं वे
बुने स्वप्न मोहक जो
बुनते हैं वे

चलो हम चलें उनसे
बातें करें.

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