रोटी पर कविता, Poem On Roti in Hindi

Poem On Roti in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ रोटी पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

रोटी पर कविता, Poem On Roti in Hindi

Poem On Roti in Hindi

1. Hindi Poem on Roti

रोटी अगर पेड़ पर लगती
तोड़ तोड़कर खाते
तो पापा क्यों गेहूँ लाते
और उन्हें पिसवाते?

रोज सवेरे उठकर हम
रोटी का पेड़ हिलाते
रोटी गिरती टप टप, टप टप
उठा उठाकर खाते
निरंकारदेव सेवक

2. रोटी पर कविता

हूँ सबकी चाहत
हूँ सबकी ज़रूरत
सबका पेट भरती हूँ
हाँ मैं रोटी हूँ
गोल गोल है मेरा आकर
सब्जी के साथ बनाऊँ पौष्टिक आहार
चाहे हो बच्चा, बूढ़ा या हो जवान
रोटी खाकर ही आती हा तन में जान

3. Poem On Roti in Hindi – दो जून की रोटी

जब जब भी गरीबों के छप्पर देखता हूँ।
दिल मे अजीब सा एहसास होने लगता है।।

कैसे रहते होंगे सड़कों के किनारे मजदूर ये।
ये सोच सोच कमियां खोजने लगता हूँ।।

समाज की भूल कहूँ या मतलबपरस्ती इसे।
अमीरी – गरीबी की खाई पाटने लगता हूँ।।

एहसास जिन्हें नहीं होता गरीबी का तनिक भी
मैं उन लोगों को रात – दिन कोसने लगता हूँ।।

दो जून की रोटी भी जिन्हें कभी होती नहीं नसीब।
पुरोहित उन बस्तियों में रोशनी खोजने लगता हूँ।।

कवि राजेश पुरोहित भवानीमंडी

4. दहकती आग में रोटी

दहकती आग में रोटी लगे है सूरज सी।
मानव का जीवन रोटी के इर्द गिर्द चक्कर लगाए पृथ्वी सा।
रोटी ही मानव की जठराग्नि को करे है शांत।
सुबह रोटी ,शाम को रोटी की चिंता।
रोटी का करो सम्मान।
बची रोटियों को कचरे के डिब्बे में ना फेका करो।
इन रोटियों से कितने ही भूखों का पेट भर जाता है।
रोटियों के लिए कोई करे कमर तोड़ मेहनत।
कोई थाली में परसी रोटी के लिए करे नखरे।
कोई कहे कच्ची,कोई कहे कड़क रोटी।
एक जिंदगी ऐसी भी ,कूड़े के ढेर में ढूंढती बासी कूसी रोटी
दहकती आग में रोटी लगे है सूरज सी।
मानव का जीवन रोटी के इर्द गिर्द चक्कर लगाए पृथ्वी सा।
धन्यवाद दीजिए उस परमात्मा को जिसने आप की थाली व्यंजनों से भरी है।
रोटी के लिए लड़ने वाला शैतान होता है
मिल बांट कर खाने वाला इंसान होता है।
जो अपनी रोटी भूखे को दे दे वो ईश्वर होता है।
दहकती आग में रोटी लगे है सूरज सी।
मानव का जीवन रोटी के इर्द गिर्द चक्कर लगाए पृथ्वी सा।
Vijaya Gupta

5. नहीं घर में रोटी रक्खी हुई है

नहीं घर में रोटी रक्खी हुई है!
यहाँ तो भूख यूं तड़पी हुई है

मिले है आंख खुलते ख़ूब ताने
सहर अपनी नहीं अच्छी हुई है

नहीं मिलता कभी जो चाहता हूँ
बहुत तक़दीर ही रूठी हुई है

नहीं दिल अब मिले अपनें किसी से
बहुत कड़वी बातें बोली हुई है

इन्हे खाकर मिटाऊं भूख कैसे
बहुत रोठी सूखी रक्खी हुई है

मिली है जिंदगी में ही निराशा
दुआ दिल की नहीं पूरी हुई है

सितम आज़म किये इतने मुझी पर
अपनों से दुश्मनी गहरी हुई है

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