शहर पर कविता, Poem on City in Hindi

Poem on City in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ शहर पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. इस आधुनिक समय में लोग बड़ी तेजी से गांव से शहर की तरफ भाग रहें हैं. गांव भी अब धीरे – धीरे शहर में तब्दील होते जा रहा हैं. जिससे प्रदूषण भी तेजी से फ़ैल रहा हैं. जिसके कारण मनुष्य कई गंभीर बिमारियों से ग्रसित होते जा रहें हैं.

दोस्तों आइए अब नीचे कुछ Poem on City in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी शहर पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

शहर पर कविता, Poem on City in Hindi

Poem on City in Hindi

1. Short Poem on City in Hindi

रोता सा ये शहर है देखो,
रीते रीते गांव हैं।
न वो पनघट की मस्ती,
न बरगद की छांव है।

फटे हुए कपड़ों से रिश्ते,
हर मन में दीवार है।
शब्द सभी तुतलाते लगते,
अभिव्यक्ति बीमार है।

कंधे सारे झुके झुके हैं,
लँगड़ाता हर पांव है।
चुप्पी सारी चुभन भरी हैं,
मौन भरा कोलाहल है।
टीस सिसकती मन के भीतर,
जीवन बना हलाहल है।

सूख गया मन का हर कोना,
धूप भरी हर छांव है।
न गौरैया, न ताल-तलैया,
पोखर, झीलें सूखी हैं।
बना हुआ है बाप रुपैया,
मन की बातें रूखी हैं।

न मोरों का नृत्य सुहाना,
न कौवों की कांव है।
रत्नेश मिश्र

2. शहर पर कविता

मैंने इस शहर को पहली बार
पानी के आईने में देखा
रेत के बीच
पिघलते हुए लोहे की तरह !
जैसे कुछ लोग बहुत दूर से
किसी ऊँची ढलान से
एक गहरी खाई में दस्तक दे रहें हैं !

एक पाँव पर खड़े होकर
सूर्य की पहली किरण के साथ
अर्घ का लोटा उठाये हुए
पूरी सभ्यता का भार
एक पैर पर लिए, निचोड़कर सूर्य का सारा ताप
मुझे विसर्जित कर दिया इस शहर की
ढलान से तंग गलियों के बीच !

आखिर मैं दंग हूँ
इस गहरी खाई में जहाँ इतने दरबे हैं,
जिसके मुख पर मकड़ियों ने जले बुन रखें हैं ,
हर तिराहे चोराहे पर लाल बत्ती लगा दी गई है!
जिसके जलते ही हम दुबक जाते हैं
चालीस चोरों की तरह !

हमने अपनी हर साँस रोजगार के रिक्क्त स्थानों में भरकर
लिफ़ाफ़े को चिपका दिया है !
उसके ऊपर गाँधी छाप डाक टिकट चिपका दिया है !
हमने अपने हर सपने हर जज्बात को
किताब के हर पन्ने पर अंडरलाइन कर दिया है !
लेकिन उसके भी
धीरे-धीरे पिला पड़ने ,सड़ने के अतिरिक्क्त
और कोई विकल्प सुरक्षित नहीं है !
लेकिन हमारे सपनो की नींव जहाँ पर है
वहीँ पर इतिहास का पहला प्रतिरोध दर्ज है !

लेकिन जब-जब इस दरबे से बाहर निकलने की कोशिश करता हूँ
और सोचता हूँ कि
ये खाई में पड़े हुए लोग
मेरे साथ खड़े होंगे
लेकिन तभी बजता है एक शंख
मंदिर का घड़ियाल
और लोग लेकर खड़े हो जातें हैं
लेकर मेरी अस्थियों का कलस !

शंख और घड़ियाल के बीच
मैं देखता रह जाता हूँ
दरबों में आत्म्हत्त्याओं का सिलसिला
मैं बैठ जाता हूँ और गौर करता हूँ
कि दरअसल,
जिस संस्कृति कि भट्ठी तुम
प्रयाग और कांची में बैठकर सुलगा रहे हो
उसकी आग कहीं और से नहीं
बल्कि मेरे घर के चुलल्हे से मिल रही है !

3. Poem on City in Hindi

गाँव को गाँव रहने देंगे
शहर नहीं बनायेंगे,
वरना ये हवाएँ और पानी
भी प्रदूषित हो जायेंगे.

सबको लगता है कि
शहर की जिन्दगी बहुत निराली है,
पर जब वहाँ तुम रहोगे
तो पता चलेगा कि वहाँ की रातें कितनी काली है.

माना हर तरफ उजाला होता है
चमकता है वो भी चेहरा जो काला होता है
माना ये चमकते-दमकते घरों में रहते है
पर इनके अंदर कई बीमारियाँ हर कर लेती है.

अब तो शहर के छोटे-छोटे बच्चों को कई बीमारियाँ हो जाती है,
आँखों से कम दिखना और साँसों का फूलना
मैं अक्सर समझ नहीं पाता हूँ कि
बच्चों की आँखों से कम दिखाई देता है
या पढ़े लिखे अक्लमंद लोगो की आँखों से.

सपने हमारे पूरे होने का नाम नहीं लेते हैं,
और हम अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं होते है,
पैसों के पीछे भागते-भागते खुद से कितनी दूर आ जाते है
जब आँखें खुलती है तो खुद को सिर्फ मजबूर पाते हैं.

गाँव को गाँव रहने देंगे
शहर नहीं बनायेंगे,
वरना ये हवाएँ और पानी
भी प्रदूषित हो जायेंगे.

4. एक शहर मैंने देखा है

एक शहर मैंने देखा है
रहता है जो जगरमगर
कभी नहीं बिजली जाती है
ऐसा है वह बना शहर

ऐसे लोग वहां रहते है
लड़ना आता नहीं जिन्हें
लड़ना भिड़ना ठीक नहीं है
यह सब भाता नहीं जिन्हें

पुलिस नहीं है, नहीं मुकदमे
न्यायालय का नाम नहीं
दिनभर सब मेहनत करते हैं
पलभर भी आराम नहीं

खेती करते है किसान सब
लड़के सारे पढ़ते है
अफसर नेता या व्यापारी
मेहनत करके बढ़ते है

दिन में काम रात में मिलकर
गाते और बजाते है
नाटक करते किस्से कहते
ऐसे मन बहलाते है

इसी शहर में चलो चलें हम
खुशियाँ है दिन रात यहाँ
मन को बुरी लगे ऐसी है
नहीं एक भी बात जहाँ

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