बैलगाड़ी पर कविता, Poem on Bullock Cart in Hindi

Poem on Bullock Cart in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बैलगाड़ी पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

बैलगाड़ी पर कविता, Poem on Bullock Cart in Hindi

Poem on Bullock Cart in Hindi

1. बैलगाड़ी पर कविता

बैलगाड़ी भी क्या सवारी थी!
एक तुम्हारी कभी एक हमारी थी।

दौड़ती थी बेधड़क चकरोट पर,
हमारे लिए हमारी वह फरारी थी।

खींचती थी बड़े रौब से उसे,
वाह! क्या गोई प्यारी-प्यारी थी।

खलिहान से अनाज़ घर आया,
तब अम्मा ने नज़र उतारी थी।

गोई: बैलों की जोड़ी।
©नज़र नज़र का फ़ेर शिशु

2. Poem on Bullock Cart in Hindi

सस्ती लोकप्रियता का सुंदर तरीका
हमने भी आख़िर लिख दी कविता
गलत पिच पर बल्ला घुमाओ
देश भर के मीडिया में छाओ
चमचे बनाएंगे डैडी सा हीरो
अंत में तो बनना है ही ज़ीरो
चढ़े हो तुम भी ‘बैलगाड़ी’
ज्यादा नहीं दूर जाएगी गाड़ी !
** अरुण प्रदीप

3. एक दिन औंधे मुँह गिरेंगे

एक दिन औंधे मुँह गिरेंगे
हवा में धुएँ की लकीर से उड़ते
मारक क्षमता के दंभ में फूले
सारे के सारे वायुयान

एक दिन अपने ही भार से डूबेंगे
अनाप-शनाप माल-असबाब से लदे फँसे
सारे के सारे समुद्री जहाज़

एक दिन अपनी ही चमक-दमक की
रफ्तार में परेशान सारे के सारे वाहनों के लिए
पृथ्वी पर जगह नहीं रह जायेगी

तब न जाने क्यों लगता है मुझे
अपनी स्वाभाविक गति से चलती हुई
पूरी विनम्रता से
सभ्यता के सारे पाप ढोती हुई
कहीं न कहीं
एक बैलगाड़ी ज़रूर नज़र आयेगी

सैकड़ों तेज रफ्तार वाहनों के बीच
जब कभी वह महानगरों की भीड़ में भी
अकेली अलमस्त चाल से चलती दिख जाती है
तो लगता है घर बचा हुआ है

लगता है एक वही तो है
हमारी गतियों का स्वास्तिक चिह्न
लगता है एक वही है जिस पर बैठा हुआ है
हमारी सभ्यता का आखिरी मनुष्य
एक वही तो है जिसे खींच रहे हैं
मनुष्यता के पुराने भरोसेमंद साथी
दो बैल।
भगवत रावत

4. चर्र चूं चर्र चूं

चर्र चूं चर्र चूं
गीत सुनाए बैलगाड़ी
ढेरों बोझा
और सवारी
पीठ पे लादे बैलगाड़ी
चर्र चूं

कच्ची हों
या पक्की सड़कें
झूम के जाए बैलगाड़ी
गाँव शहर
कस्बे के रस्ते
नाप रही है बैलगाड़ी
चर्र चूं

सूखे जब
पहियों का तेल
गा के मांगे बैलगाड़ी
थक जाते
जब इससे बैल
रूक जाती है बैलगाड़ी

चर चू चर्र चू
चर्र चूं चर्र चूं
गीत सुनाए बैलगाड़ी

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