रसगुल्ला पर कविता, Poem on Rasgulla in Hindi

Poem on Rasgulla in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ रसगुल्ला पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

रसगुल्ला पर कविता, Poem on Rasgulla in Hindi

Poem on Rasgulla in Hindi

1. रसगुल्ला पर कविता

गोल गोल सुंदर रसगुल्ले
मुझ को लगते प्यारे हैं।
मम्मी मुझको एक खिला दो
रसगुल्ले
रसगुल्ले
देखो कितने सारे हैं।

कितने मधुर रसीले मीठे
मुँह में पानी आता है।
जब भी इन पर नजर पड़ी
खाने को मन हो जाता है।

डूबे हुए चासनी में ये
माँ तेरे जैसे लगते हैं।
इनको माँ तू मुझको दे दे
ये मेरे मुँह में फबते हैं।

टिफिन में माँ रसगुल्ले रखदे ,
लंच नहीं ले जाऊँगा।
सब मित्रों के संग बाँट कर
रसगुल्ले मैं खाऊँगा।

2. छुटका-मुटका

छुटका-मुटका, गोरा-गोरा रसगुल्ला
मीठा-मीठा, रोला-पोला रसगुल्ला

‘सूखे-सूखे लड्डू-पेड़े औ’ बरफी
छेनेवाला रस का डोला रसगुल्ला

गर्म जलेबी, गर्म है गाजर का हलुवा
पर ‘मैं’ ठंडा-ठंडा बोला रसगुल्ला

दीवाली में गूँजिया कि तो धूम मची
पर मम्मी ने साथ परोसा रसगुल्ला

सी-सी मिर्ची वाली चाट लगी अच्छी
पर फिर खाया सबने मोटा रसगुल्ला

आइसक्रीम खिलाई सबको पापा ने
पर दादी ने माँगा पोला रसगुल्ला

बूढ़ों को बच्चो को अच्छा लगें ‘सुमन’
खुश-खुश खाएँ छोरी छोरा रसगुल्ला

3. मैं रसगुल्ला; खुल्लमखुल्ला

मैं रसगुल्ला; खुल्लमखुल्ला-
खाते पंडित, खाते मुल्ला।

देख-देख सब ललचाते हैं,
लार जीभ से टपकाते हैं,
छीना-झपटी भी हो जाती,
जो ले ले, मैं उसका साथी।

घर में जिस दिन मैं आ जाता,
मच जाता है हल्ला-गुल्ला।
मैं रसगुल्ला
बालकृष्ण गर्ग

4. रसगुल्ला और रशोगुल्ला में

रसगुल्ला और रशोगुल्ला में, छिड़ी थी कड़वी जंग
दोनों बनते छेने से और दोनों सबकी पसंद

एक सा इनका रंग, बात थी बड़ी निराली
उड़िया कहे मैं असली, मैं असली कहे बंगाली

काका, आया फैसला और फिर झगड़ा टल गया
दो साल से ज्यादा, इनका ये मुकदमा चल गया

बर्चस्व के इस झगड़े का, हुआ अब वारा न्यारा
बंगाली रशोगुल्ला जीत गया और उड़िया हारा

उड़िया रसगुल्ला हारा, बंगला वाला असली पाया
नवीन चंद्र दास ने इसे , सन 1869 में था बनाया

कह काका गुमनाम, मेरा ये दावा खुल्लमखुल्ला
दोनों ही स्वादिष्ट , चाहे रसगुल्ला हो या रशोगुल्ला

– उमेश त्रिपाठी

5. गोल गोल सुंदर रसगुल्ले

गोल गोल सुंदर रसगुल्ले
मुझ को लगते प्यारे हैं।
मम्मी मुझको एक खिला दो
रसगुल्ले
रसगुल्ले
देखो कितने सारे हैं।

कितने मधुर रसीले मीठे
मुँह में पानी आता है।
जब भी इन पर नजर पड़ी
खाने को मन हो जाता है।

डूबे हुए चासनी में ये
माँ तेरे जैसे लगते हैं।
इनको माँ तू मुझको दे दे
ये मेरे मुँह में फबते हैं।

टिफिन में माँ रसगुल्ले रखदे ,
लंच नहीं ले जाऊँगा।
सब मित्रों के संग बाँट कर
रसगुल्ले मैं खाऊँगा।

6. चिड़ियों ने बाजार लगाया

चिड़ियों ने बाजार लगाया
कौआ चौकीदार बिठाया
मेले में जब भालू आया
उठा एक रसगुल्ला खाया
गौरेया यह कह मुस्काई
कहाँ चल दिए भालू भाई
जल्दी क्या है रूक भी जाओ
रसगुल्ले के पैसे लाओ
भालू बोला क्या फरमाया
मुझको क्या यह जान न पाया
मंत्री जी हैं पिता हमारे
होश करें वो ठीक तुम्हारे
सुनकर झगड़ा कौआ आया
डांटा कोट उतार रखाया
और कहा भालू जी जाओ
कल तक पैसे लेकर आओ
जब पैसे देकर जाओगे
कोट तभी वापस पाओगे
मंत्री जी को जा बतलाना
अब अँधेरे नहीं चल पाना

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