ईद मुबारक कविता, Eid Mubarak Poem in Hindi

Eid Mubarak Poem in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ ईद मुबारक कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

ईद मुबारक कविता, Eid Mubarak Poem in Hindi

Eid Mubarak Poem in Hindi

1. ईद मुबारक कविता

ख़ुशी के फूल खिलेंगे हर इक घर में तो ईद समझूँगा
धनक के रंग बिखरेंगे हर इक घर में तो ईद समझूँगा
बुलबुलें गाती नहीं हैं अभी कोयल कूकने से डरती है
जब सर से उतरेगा ये ख़ौफ़े-अलम तो ईद समझूँगा
भूख की आँखों में रोटियों का सपना अभी अधूरा है
जब चूल्हा जलेगा हर इक घर में तो ईद समझूँगा
हामिद की निगाह अब भी चिमटे पे जमी रहती है
कि वो भी ख़रीदेगा जब खिलौने तो ईद समझूँगा
ख़ुदा क़फ़स में उदास बैठा है शैतान खिलखिलाते हैं
जो निज़ाम कायनात का बदलेगा तो ईद समझूँगा
भूल कर नफ़रत-अदावत रंज़ो-ग़म शिकवे-गिले
सब भेजेंगे जब सबको सलाम तो ईद समझूँगा

अकबर रिज़वी

2. Eid Mubarak Poem in Hindi

वो बच्चों की आंखों में सपने सुनहरे।
हसीनों के हाथों पें मेंहदी के पहरे।
सजीली दुकानों में रंगों के लहरे।
वो ख़ुश्बू की लडियां उजालों के सहरे।।
उमंगें भरी चाँद रातें सुहानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।

वो राहों में ख़ुश-पोशयारों के हल्ले।
वो किरनों से मामूर गलियाँ मुहल्ले।
झरुकों में रंगीं दुपटटों के पल्ले।
वो मांगों में अफ़शांवो हाथों में छल्ले।।
वो अपनी सी तहज़ीब की तरजुमानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।

वो कुल्फ़ी के टुकड़े वो शरबत के गोले।
चहकते से बच्चे बड़े भोले भोले।
वो झूलों पे कमसिन हसीनों के टोले।
फ़ज़ा में ग़ुबारों के उड़ते बगूले।
बसंती गुलाबी हरे आसमानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।

वो रौनक, वो मस्तीभरी चहल पहलें।
वो ख़्वाहिश कि आओ मुहल्लों में टहलें।
इधर चल के बैठें,उधर जा के बहलें।
कुछ आंखों से सुनलें कुछ आंखों से कहलें
करें जा के यारों में अफ़साना-ख़्वानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।

झलकती वो चेहरों पे बरकत घरों की।
निगाहों में शफ़क़त बड़ी-बूढियों की।
अदाओं में मासूमियत कमसिनों की।
वो बातों में अपनाईयत दोस्तों की।।
मुरव्वत,करम,मुख़लिसी,मेहरबानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।

मगर कहाँ ” साज़ “वो दौरे-राहत।
लबों पे हंसी है न चेहरों पे रंगत।
न जेबों में गर्मी न दिल में हरारत।
न हाथों के मिलने मेंअगली सी चाहत।
हक़ीक़त था वो दौर या इक कहानी।
बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।।

अब्दुल अहद साज़

3. हर साल में एक बार माहे रमजान के बाद आता है ईद

हर साल में एक बार माहे रमजान के बाद आता है ईद
ज़कात फ़ितरा मुफ़लिसों की मदद सीखा जाता है ईद।

करते है सभी फ़लक के चाँद का दीद
गले मिलके मुबारकबाद देकर सेवइयां खाकर मनाते हैं ईद।

मिटाता है दिलो से नफ़रत और अदावत को।
पैगाम प्रेम और भाईचारे का लाता है ईद।

मुंतज़र होता है हर एक को अपनी ईदी का
मीठी सेवइयों सा रिश्तों मे मिठास लाता हैं ईद।

“अफरोज” ये ईद सबब हैं खुदा के दिये नेक कामों का
तभी तो सारे त्योहारो में सबसे आला है ईद।

अफरोज आलम

4. आगे से मैं बहुत नुकीली

आगे से मैं बहुत नुकीली
चुभ चुभकर मैं चलती हूँ
एक बार घुसती हूँ अंदर
दूजी दफा निकलती हूँ

हाथों से जब मुझे चलाओ
आगे आगे बढ़ती हूँ
जब मशीन में मुझे लगाओ
ऊपर नीचे होती हूँ

नए पुराने कपड़े सिलकर
मैं ही उन्हें सजाती हूँ
धागे की दो पूंछे मेरी
दर्जी को मैं भाती हूँ

जो जो मेरा नाम बताए
कपड़े नए पहनकर ऐ
ईद संग होली आ जाए
मिलकर गले ख़ुशी से गाए

5. मुसलमान हो या हिंदू हों

मुसलमान हो या हिंदू हों
ईद सभी का है त्यौहार

मिलकर सबको गले लगाएं
भूल बैर बस झूमें गाएं
आओ सुखविंदर रोहित क्रिस
आओ कविता और रुखसार

गरम पकौड़े और पकवान
गजब जायके के सामान
देख सेवैयाँ ललचाए है
बच्चे आदत से लाचार

ईदी दी अब्बा ने मुझको
कहा बाँट दो सबमें इसको
झूलें झूला संग साथ सब
नहीं ख़ुशी का पारावार

रोजों में जो गुण है सीखे
क्यों न उनको आगे खींचे
बेमतलब की बात भूलकर
करें द्वेष का बंटाधार

हिन्दू मुस्लिम भाई भाई
ईद यही संदेशा लई
जीने का मतलब सिखलाती
तोड़े मतलब की दीवार

6. खत्म हो गये रोजे सारे

खत्म हो गये रोजे सारे
खुशियाँ लाई ईद
ईदगाह को चले जा रहे
आसिफ और फरीद

जहाँ बड़ा मेला होगा
सभी मिलेंगी चीज
जेबें आज भरी है चीजें
लेंगे सभी खरीद

अब्बू आज ख़ुशी से सबके
चूम रहे हैं गाल
देख सजी नन्ही गुड़िया को
अम्मी हुई निहाल

घर पर सबके आज बने हैं
ढेर ढेर पकवान
दम दम दमक रहा घर सबका
आएँगे मेहमान

सोनू मोनू पंकज टोनी
मिलने आए ईद
पहले आसिफ मिला गले फिर
मिलने लगा फरीद

मिटे बुराई दुरी कम हो
कहता यह त्यौहार
नहीं साल में एक बार हो
रोज बंटे ये प्यार

7. सुंदर है त्यौहार ईद का

सुंदर है त्यौहार ईद का
बांटों मिलकर प्यार ईद का

एक माह तक रोजा रखकर
सबने यह अवसर पाया है
बनकर चाँद ईद का देखो
हर कोई मिलने आया है

रंग बिरंगे कपड़ों वाला
मुस्काता संसार ईद का

मस्जिद में नमाज पढ़ लो फिर
देखो मेला खूब लगा है
सभी लोग उमड़े पड़ते है
सबके दिल में प्यार जगा है

मेल मिलाप सिखाने वाला
लो अनुपम उपहार ईद का

घर घर पकी सिवइयाँ मीठी
जीभर खाओ और खिलाओ
भेदभाव के बिना सभी को
हँसकर अपने गले लगाओ

कभी न कम हों जिसकी खुशियाँ
ऐसा है भंडार ईद का !

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