खिलौने पर कविता, Poem On Toys in Hindi

Poem On Toys in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ खिलौने पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

खिलौने पर कविता, Poem On Toys in Hindi

Poem On Toys in Hindi

1. खिलौने पर कविता

चलो खिलौना एक बनाएं

एक खिलौना चलने वाला
एक भागने वाला
एक न जिसमें चाबी कोई
और न जिसमें ताला

एक जरा सा उड़ता हो जो
एक जरा सा गाए
एक खिलौना मजेदार हो
हमको खूब हंसाए

चलो खिलौना ढूँढे ऐसा
जिसमें लगे न पैसा
मन ही मन हम उसे बनाएं
अरे! खिलौने जैसा

2. Poem On Toys in Hindi

पापा मुझे चाहिए मेरा खिलौना,
मुझे मेरी वो गेंद ला दो ना।
मैंने आज ही उछाला था हवा मे,
देखो बैठ गया है जाकर नभ में।।

वो देखो मेरी गाय जो कल तक हिलती भी ना थी,
आज बड़ी-बड़ी सींगे लेकर।
इधर ही दौड़ी चली आ रही,
कभी पुंछ उठाती, रंभाती अपने ही उमंग मे।।

मेरी गाड़ियाँ जिसे ढकेलता था मैं,
आज बिना धक्का ज़ोर से है चलती।
जिसके आगे था मैं चलता, इक डोर बांध,
वो चलती है मस्ती से मेरे संग में।।

संध्या हो गयी, लेकिन मेरी गेंद खो गयी,
ढूँढ कर लाओ मेरी गेंद को।
मेरी गेंद जो हो गयी थी बड़ी,
चुरा लिया किसी ने, क्या है उसके मन मे ।।

वो रही मेरी गेंद, उसे ला दो,
वह रही कई छोटे-छोटे चीजों के बीच।
सुबह थी लाल अब है सफेद,
कल शायद हो गेंद किसी और रंग में।।

@ऋषभ शुक्ला

3. देख के नए खिलौने

देख के नए खिलौने, खुश हो जाता था बचपन में।

बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।।

चाभी से गुड़िया चलती थी, बिन चाभी अब मैं चलता।

भाव खुशी के न हो फिर भी, मुस्काकर सबको छलता।।

सभी काम का समय बँटा है, अपने खातिर समय कहाँ।

रिश्ते नाते संबंधों के, बुनते हैं नित जाल यहाँ।।

खोज रहा हूँ चेहरा अपना, जा जाकर दर्पण में।

बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।।

अलग थे रंग खिलौने के, पर ढंग तो निश्चित था उनका।

रंग ढंग बदला यूँ अपना, लगता है जीवन तिनका।।

मेरे होने का मतलब क्या, अबतक समझ न पाया हूँ।

रोटी से ज्यादा दुनियाँ में, ठोकर ही तो खाया हूँ।।

बिन चाहत की खड़ी हो रहीं, दीवारें आँगन में।

बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।।

फेंक दिया करता था बाहर, टूटे हुए खिलौने।

सक्षम हूँ पर बाहर घर के, बिखरे स्वप्न सलोने।।

अपनापन बाँटा था जैसा, वैसा ना मिल पाता है।

अब बगिया से नहीं सुमन का, बाजारों से नाता है ।।

खुशबू से ज्यादा बदबू, अब फैल रही मधुबन में।

बना खिलौना आज देखिये, अपने ही जीवन में।।
श्यामल सुमन

4. मेरे खिलौने हैं अनमोल

मेरे खिलौने हैं अनमोल,
कोई लंबे, कोई हैं गोल।
कुत्ता, बंदर भालू, शेर,
मिट्टी के ये पीले बेर।
इक्का, साइकिल, टमटम, ट्रेन,
रंग-बिरंगी सुंदर क्रेन।
प्यारी-प्यारी नन्ही गुड़िया,
गोदउठाए कुबड़ी बुढ़िया।
मोटा जोकर ढोल बजाए,
ऊँचे-ऊँचे बोल बुनाए।
सीढ़ी चढ़ता नटखट बंदर,
लिए हाथ में लाल चुकंदर।
छोटा-सा यह तीर कमान,
देखो, इसकी कैसी शान।
अद्भुत यह नन्हीं पिस्तौल,
दो आने में ली थी मोल।
रस्सी फाँदे यह खरगोश
देखो, इसमें कैसा जोश,
देखो, मेरी डोर पतंग,
खूब निराले इसके रंग!
आओ खेलो इनसे यार,
और चलाओ मेरी कार।

-साभार: नंदन

5. नन्हे-नन्हे हाथो से

नन्हे-नन्हे हाथो से ,
खिलौना हाथ से छूट गया,
खिलौना था ये काँच का,
गिरा ज़मींं पे टूट गया,
रोने लगा सुबक-सुबक कर,
और ज़मीं पर लेट गया,
लेकर खिलौने के टूकडो को,
जोडने आपस मे बैठ गया,
मासूम सी आँखो से,
आँसू ना रुक पाए,
सोच रहा है ये खिलौना,
शायद फिर से जुड जाए,
बार-बार आँसूऔ को पौंछे,
पर खिलौना ना छोडे,
उल्टे-पूल्टे लगा जोडने,
भला काँच कैसे जुडे,
ये तो था एक खिलौना काँच का,
गिरते ही ज़मीं पर टूट गया,
नन्हे-नन्हे हाथो से,
खिलौना हाथ से छूट गया,
खिलौना था ये काँच का,
गिरा ज़मीं पे टूट गया।

-गरीना बिशनोई

6. धरती पर उसके आगमन की अनुगूँज थी

धरती पर उसके आगमन की अनुगूँज थी

वयस्क संसार में बच्चे की आहट से

उठ बैठा कब का सोया बच्चा

और अब वहाँ एक गेंद थी

एक ऊँट थोड़ा-सा ऊँ-ट-प-टाँ-ग

बाघ भी अपने अरूप पर मुस्कुराए बिना न रह सका

पहले खिलौने की ख़ुशी में

धरती गेंद की तरह हल्की होकर लद गई

हडप्पा और मोहनजोदड़ो से मिली मिट्टी की गाड़ी पर

जिसे तब से खींचे लिए जा रहा है वह शिशु
अरुण देव

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