अंगूर पर कविता, Poem on Grapes in Hindi

Poem on Grapes in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ अंगूर पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

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Poem on Grapes in Hindi

1. अंगूर पर कविता

एक लोमड़ी जंगल में
कर रही थी विहार
लटके थे अंगूर बेल पर
देखा, किया विचार

पाने को अंगूर उसने
लम्बी छलांग लगाई
फिर उठकर उछली
नई तरकीब लगाई

कई बार गिरकर भी
उसने हार नहीं मानी
अंगूरों को पा लेने की
गहरी मन में ठानी

गुजरा एक भालू पास से
उसको आवाज लगाई
भालू पर बैठ उछलकर
फिर एक छलांग लगाई

तोड़कर अंगूर का गुच्छा
लोमड़ी हर्ष से मुस्काई
कहाँ पर हैं अंगूर खट्टे?
कहावत को झुठलाई
तरुण कुमार दाधीच

2. Hindi Poem on Grapes

एक बाग मे, एक लोमड़ी घूम रही थी।

मस्त बहुत थी, मस्ती मे वो झूम रही थी।

सहसा देखा, लता ओट में अंगूरों के गुच्छे।

पीले-पीले बड़े रसीले, लगते थे बड़े अच्छे।

देख लोमड़ी के मुंह में पानी भर आया।

मिल जाएं, खा लूं , गर तो सुख पाए यह काया।

ऊपर बहुत नहीं है, सहज पहुँच जाउंगी।

एक छलांग मारूंगी और सब नीचे लाऊंगी।

उछली-कूदी ले लेने को, एक नहीं कई बार।

बोली- “ये सब मेरी पहुँच से नहीं बहुत है दूर,

करुँगी क्या मैं लेकर इनको, खट्टे हैं अंगूर।”

3. Short Poem On Grapes In Hindi Language

अंगूर खट्टे लगे, पलट कर जाने लगें।
बेशर्मी से बेचारे, आज मुस्काने लगें।
वो डरते है, कि जुबान न खुल जाये।
अपनी कमी को, यों ही छुपाने लगें।
बेवजह ही उलझ गये, अपनो के बीच।
इसलिए आँख-भौंह को, चढाने लगें।
सांसो का हिसाब, अस्पताल में किया।
ऊपरी खर्च से ‘उपदेश’, घबराने लगें।
उपदेश कुमार शाक्यावार ‘उपदेश’

4. Poem on Grapes in Hindi

एक लोमड़ी खोज रही थी
जंगल में कुछ खाने को,
दीख पड़ा जब अंगूरों का
गुच्छा, लपकी पाने को ।

ऊँचाई पर था वह गुच्छा,
दाने थे रसदार बड़े,
लगी सोचने अपने मन में
कैसे ऊँची डाल चढ़े ।

नहीं डाल पर चढ़ सकती थी
खड़ी हुई दो टाँगों पर,
पहुंच न पाई, ऊपर उचकी
अपना थूथन ऊपर कर ।

बार-बार वह ऊपर उछली
बार-बार नीचे गिर कर
लेकिन अंगूरों का गुच्छा
रह जाता था बित्ते भर ।

सौ कोशिश करने पर भी जब
गुच्छा रहा दूर का दूर
अपनी हार छिपाने को वह
बोली, खट्टे हैं अंगूर ।
-हरिवंशराय बच्चन

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