फास्ट फूड पर कविता, Poem on Fast Food in Hindi

Poem on Fast Food in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ फास्ट फूड पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

फास्ट फूड पर कविता, Poem on Fast Food in Hindi

Poem on Fast Food in Hindi

1. फास्ट फूड पर कविता

पिज्जा, पास्ता, चाउमिन, बर्गर
दादी मुझको बहुत सुहाते
फास्ट फूड की सारी चीजें
हम सब बड़े चाव से खाते
दे दो दादी थोड़े पैसे
दादा तो हर दिन तरसाते
मम्मी भी मिल जाती संग में
पापा भी, हैं डांट लगाते
दादी पैसे देकर बोली
देखो लाना अरे छुपा के
कैसा लगता फास्ट फूड यह
मैं भी तो देखूँ कुछ खा के

2. Poem on Fast Food in Hindi

फर्स्ट पसंद फास्ट फूड,
मां की दाल रोटी से पीछा छुड़ा,
पीछे भागें पीज़ा बर्गर पास्ता मैगी के,
दूध छाछ छोड़ दीवाने हुए कोल्ड ड्रिंक के,
दलिया खिचड़ी देख भूख हुई छूमंतर,
लार टपकती मोमोज देख,
फर्स्ट पसंद फास्ट फूड,
क्षण क्षण क्षीण करे काया और माया,
मोटापे, कब्ज,के हुए शिकार,
पाचन शक्ति हुई कमजोर,
काया बनी बीमारी का घर,
फर्स्ट पसंद फास्ट फूड,
रात को खाया चाट चाट कर,
सुबह तन जले,मन खिन्न,
जो खाने में नमक ,मिर्च की कमी निकाले,
नखरे करे दाल रोटी में,
स्वाद के लिए करे कलह ,
घर लगे नरक सा,
भोजन देवता सा,
मत ग्रहण करो दैत्य सा,
जवान के चटकारे,
चटका देंगे जीवन,
बन जायेगी शर शैया
ड्रिप चढ़ेगी,खून चढ़ेगा
डॉक्टर नर्स से घिरे होंगे,
दाल,दलिया खाने की सलाह देंगे,
छोड़ने को कहेंगे फास्ट फूड।
Vijaya Gupta

3. शीघ्रता की साधना, असिद्ध करती जा रही है

शीघ्रता की साधना, असिद्ध करती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

विश्वअंतर्जाल रचना जब से हुई है अवतरित,
सूचना तकनीक तब से हो रही है विस्तारित।
विश्व होता जा रहा है विश्वव्यापी जाल शासित,
संबंधों की दृढ़ता को तय कर रहा है ‘लाइक’।
हृदयगत सम्वेदना अब दूर होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

सोशल मीडिया, अनसोशल होता जा रहा है,
उस पर अराजकता का राज होता जा रहा है।
सामाजिक संजाल से हो रहा जीवन प्रभावित,
लोग घटिया सोच वाले कर रहे हैं इसे दूषित।
जीवन से नैतिकता तिरोहित होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

ऊपर से आकर्षक लगता है सामाजिक नेट,
किन्तु इसकी भीतरी दशा की है उल्टी गति।
अज्ञानी भी धड़ल्ले से बहसबाजी करता है,
अपनी सड़ी गली सोच की, शेखी बघारता है।
शालीनता की सीमा अब नष्ट होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।

साहित्य अधिक सबसे नेट पर हुआ प्रभावित,
चलताऊ लिखने वाला,बना आला साहित्यिक।
फास्ट फूड कविता का, नेट पर परोसता है,
बतौर महान कृति, कचरा पोस्ट करता है।
गंभीरता की महत्ता अब मंद होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।
तथापि, इंटरनेट का पक्ष उज्जवल भी प्रचुर हैं,
पहले जो दुर्लभ था, मिलता एक क्लिक पर है।
अब विश्वअंतर्जाल की, अवहेलना सम्भव नहीं,
दोष मानसिकता का है,इंटरनेट का दोष नहीं।
सोच परिष्कृत करें जो विकृत होती जा रही है,
धैर्य की अवधारणा अब लुप्त होती जा रही है।
ज्ञान प्रकाश सिंह

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