बर्तन पर कविता, Poem on Bartan in Hindi

Poem on Bartan in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बर्तन पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

बर्तन पर कविता, Poem on Bartan in Hindi

Poem on Bartan in Hindi

1. बर्तन पर कविता

सुनो सुनो बर्तन गाते हैं
थाली चम्मच और कटोरी
चम्मच चमचम गोरी गोरी
पहले मम्मी प्यार जताएँ
फिर उनमें खाना खाते हैं

बहुत स्वाद थी खीर बनाई
ऊपर उसके पड़ी मलाई
चाट गये चटखारे लेकर
सचमुच बहुत मजे आते हैं

बर्तन अब फिर से नहाएँगे
टन टन टिन गाना गाएंगे
मम्मी के हाथों में रहकर
सुबह शाम मुहं चमकाते हैं
सुनो सुनो बर्तन गाते हैं.

2. Poem on Bartan in Hindi

हर घर की रसोई में,
ढेरों बर्तन होते हैं।
बर्तनों में खाना खाते हैं।

तांबे-कांसे-पीतल के बर्तन,
पहले आम हुआ करते थे।

अब स्टेनलैस स्टील, चीनी, मिट्टी,
कांच और प्लास्टिक के होते हैं।

शादी-ब्याह में बड़े-बड़े बर्तन,
पहले खरीदे, दिए-लिए जाते थे।

मिट्टी के कुछ गिने-चुने बर्तन,
अब भी काम में लाए जाते हैं।

~ ओम प्रकाश बजाज

3. मिट्टी के बर्तन

मिट्टी के बर्तन,
एक कुम्हार बाजार में बेचता है।
मिट्टी की कुछ कल्पनाएं,
ज्ञान के सहारे उकेरता है।
अथक परिश्रम से थक गया है,
बर्तन भी आंच से पक गया है।
चिर काल से मिट्टी के सांचे में,
जीवन को ढ़ाल रहा है।
इस समस्त संसार को,
पृथ्वी पर पाल रहा है।
अब दिंगत का भी छोर,
प्रदर्शित हो रहा है।
वह कुम्हार अब हर क्षण,
स्वयं को खो रहा है।
जल से मिट्टी को सींच कर,
नभ से जीवन वायु खींच कर,
वास्तविकता जन्म की,
अग्नि को दिखा रहा।
कभी राम कभी रहीम बनाकर,
जीना भी सीखा रहा।
तीन युगों तक चाक चलाया,
समस्त सूर्य, ब्रह्मांड बनाया।
चौथे में अब चाक की धुरी,
केंद्रित है मानव धर्म पर पूरी।
सभी संवेदनाओं का सृजन,
मनुष्य सुर असुर व दुर्जन
सभी बने उसकी मिट्टी से
बने सभी के स्वयं के परिजन।
कभी अगर कोई घट टूटे,
उसका जल संसार से छूटे।
कभी अगर कोई घट निर्मित,
होता है कुरूप अपरिमित,
उसका जल भी उतना शांत
जितना अमृत कुम्भ अक्लांत।
व्यथा अनोखी क्योंकि
मिट्टी अब दूषित है।
पाप कर्म के विष से
हर क्षण कुत्सित है।
है दुविधा का यह क्षण,
मिट्टी का उसने लिया था प्रण।
अब सृजन नहीं संभव है इस धरा पर
प्रलय तांडव होना ही है इस परंपरा पर।
परंतु वह काल अभी कुछ दूरी पर है,
जीवन अब भी चाक की धूरी पर है।
दूषित है मिट्टी पर प्रदूषित नहीं,
कुत्सित है हर क्षण पर कुंठित नहीं।
कुछ संसोधन का कृत्य,
एक सुदर्शन चक्र नृत्य:
बन जाती पावन वह मिट्टी,
मंदिर की मूर्ति, आँगन की सिलबट्टी।।
एक सुनहरा प्रत्यर्पण
हे मनुष्य के भविष्य निधि,
हे! मिट्टी के बर्तन ।
ऋषभ पाण्डेय

4. उसके हाथों से छूटकर

उसके हाथों से छूटकर
खूब गिरते हैं बर्तन
कभी आँगन तो कभी किचिन में

फर्श पर गिरने के बाद
हर बर्तन की
अपनी एक खास आवाज
और फिर उसकी खिलखिलाहट

शुरू-शुरू में बड़ी झल्लाहट होती थी
फिर धीरे-धीरे
मैं भी अभ्यस्त हो गया
इन आवाजों का

अभ्यस्त ही नहीं
बल्कि सिद्ध हो गया ..
अब तो हालत यह है
कि वहाँ से आती है कोई आवाज
और यहाँ किताब पढ़ते-पढ़ते
मैं उस बर्तन का नाम बता देता हूँ
मणि मोहन

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