मुर्गे पर कविता, Poem On cock in Hindi

Poem On cock in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ मुर्गे पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

मुर्गे पर कविता, Poem On cock in Hindi

Poem On cock in Hindi

1. मुर्गे पर कविता

एक रोज मुर्गे जी जा कर
कहीं चढ़ा आए कुछ भांग
सोचा चाहे कुछ हो जाए
आज नहीं देंगे हम बांग

आज न बोलेंगे कुकडू कूँ
देखें होगी कैसे भोर
किंतु नशा उतरा तो देखा
धूप खिली थी चारों ओर

2. Poem On cock in Hindi

मुर्गा बोला यूँ मुर्गी से
हूँ मैं सबसे हटकर,
जंगल सारा जाग उठे जब
देता बाँग मैं डटकर।

कलगी मेरी जग से सुंदर
चाल मेरी मस्तानी,
उड़ न सकूँ भले जीवन भर
हार कभी न मानी।

मुर्गी बोली फिर मुर्गे से
बस छोड़ो इतराना,
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बन
अपनी – अपनी गाना।

करके देखो एक दिन ऐसा
मत देना तुम बाँग,
मानूँ तुम्हें मैं तीसमार खाँ
रुका रहे जो चाँद।

3. गाते नहीं प्रभाती बापू 

रोज चार पर मुर्गों की अब,
नींद नहीं खुल पाती बापू।
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू।

कुछ सालों पहले तो मुर्गे,
सुबह बांग हर दिन देते थे।
उठो उठो हो गया सबेरा,
संदेशा सबको देते थे।

किंतु बात अब यह मुर्गों को,
बिल्कुल नहीं सुहाती बापू।
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू।

हो सकता है अब ये मुर्गे,
देर रात तक जाग रहे हों,
कम्प्यूटर‌ टी. वी. के पीछे,
पागल होकर भाग रहे हो।

लगता है कि मुर्गी गाकर,
फिल्मी गीत रिझाती बापू।
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू।

नई सभ्यता पश्चिमवाली,
सबके सिर‌ चढ़ बोल रही है।
सोओ देर से उठो देर से,
बात लहू में घोल रही है।

मजे-मजे की यही जिंदगी,
अब मुर्गों को भाती बापू।
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू।

पर पश्चिम की यही नकल तो,
हमको लगती है दुखदाई।
भूले अपने संस्कार क्यों,
हमको अक्ल जरा न आई।

यही बात कोयल कौए से,
हर दिन सुबह बताती बापू।
इस कारण से ही तो अब वे,
गाते नहीं प्रभाती बापू।

4. इक बच्चे ने मुर्गे से कहा

इक बच्चे ने मुर्गे से कहा

प्यारे मुर्गे ये शोर है क्या

सुन सुन तेरी कुकड़ूँ-कूँ

मैं सख़्त परेशाँ होता हूँ

जब तारे छुपते होते हैं

सब चैन आराम से सोते हैं

उस वक़्त से तू चिल्लाता है

क्यूँ इतना शोर मचाता है

मालूम हो आख़िर बात है क्या

कुछ अपने दिल का हाल बता

जा दूर मचा ये शोर कहीं

पढ़ने में दिल लगता ही नहीं

मुर्गे ने सुना बच्चे का बयाँ

बोला न हो नाराज़ मियाँ

तुम सब नींद के माते हो

सो सो वक़्त गँवाते हो

ये मैं जो शोर मचाता हूँ

मालिक को पुकारे जाता हूँ

ये मेरी इबादत है प्यारे

अल्लाह की ताअत है प्यारे

मैं क़हर से उस के डरता हूँ

हर वक़्त इबादत करता हूँ

जब सुब्ह को बाँग मैं देता हूँ

और नाम ख़ुदा का लेता हूँ

तुम कितने ग़ाफ़िल होते हो

मैं जागता हूँ तुम सोते हो
महशर बदायुनी

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