पृथ्वी पर कविता, Poem on Earth in Hindi

Poem on Earth in Hindi – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ पृथ्वी पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. यह धरती पर हिंदी कविताएँ को आप World Earth Day पर अपने स्कूलों और कॉलेज में भी सुना सकते हैं.

दोस्तों ब्रहमांड में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह हैं. जहाँ जीवन हैं. यह धरती ही हमें जीवित रहने के लिए जरुरत की सभी चीजें उपलब्ध कराती हैं. लेकिन कुछ लोग लालच में उन संपदा का दोहन कर रहे हैं. अगर हम अभी भी नहीं संभले तो वह दिन दूर नहीं हैं. की पृथ्वी पर भी जीवन समाप्त हो जायगा. और इसके जिम्मेदार हम खुद होंगें. इसलिए जितना हो सके पर्यावरण को बचाइए खूब पेड़ – पोधें लगाइए. और धरती को नष्ट होने से बचाइए.

अब आइये कुछ नीचें Poem on Earth in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. और हमें उम्मीद हैं की यह पृथ्वी पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिएगा.

पृथ्वी पर कविता, Poem on Earth in Hindi

Poem on Earth in Hindi

1. Small Poem on Earth in Hindi

धरती माँ हमारी जीवन दाता
इस माता से जुड़ा हुआ हैं सारे जहाँ का नाता…!!

जन्म हुआ यही हमारा जीवन भी संवारा हमारा,
हमारी धरती बड़ी अपार, इसमें फैला हैं सारा संसार…!!

धरती को नहीं जरा भी अभिमान, हमारी धरती बड़ी महान,
धरती के हम पर अनगिनत उपकार, ये सब हैं धरती का परोपका…!!

सुंदर सुंदर बाग़ बगीचें हैं धरती पर, खुबसूरत पर्वतों का नजारा हैं धरती पर,
नदियों की बहती धारा हैं हमारे इस धरती पर…!!

सारे रिश्तें नाते हैं इस धरती पर,
बड़े बड़े महल और छोटे छोटे मकान हैं इस धरती पर…!!

खेतों में हरी भरी फ़सलो की बहार है इस धरती पर,
पेड़ों पर ची ची करती चिड़िया की पुकार हैं इस धरती पर…!!

सब कुछ हरा भरा हैं इस धरती पर,
इसीलिए धरती माता हमारी जीवन दाता,
इस माता से जुड़ा हुआ हैं सारे जग का नाता…!!

2. Short Poem on Earth in Hindi

ऊँची धरती नीची धरती,
नीली, लाल, गुलाबी धरती।
हरे-भरे वृक्षों से सज्जित,
मस्ती में लहराती धरती।

कल -कल नीर बहाती धरती,
शीतल पवन चलाती धरती,
कभी जो चढ़े शैल शिखर तो,
कभी सिन्धु खा जाती धरती।

अच्छी -अच्छी फसलें देकर,
मानव को हर्षाती धरती,
हीरा, पन्ना, मोती, माणिक,
जैसे रतन लुटाती धरती।

भेद न करती उंच-नीच का,
सबका बोझ उठाती धरती,
अंत-काल में हर प्राणी को,
अपनी गोद में सुलाती धरती।

जाती धर्म से ऊपर उठ कर,
सबको गले लगाती धरती,
रहे प्रेम से इस धरती पर,
हमको सबक सिखाती धरती।

~ डॉ. परशुराम शुक्ल

3. Poem on Earth in Hindi Language

ग्रह-ग्रह पर लहराता सागर
ग्रह-ग्रह पर धरती है उर्वर,
ग्रह-ग्रह पर बिछती हरियाली,
ग्रह-ग्रह पर तनता है अम्बर,
ग्रह-ग्रह पर बादल छाते हैं, ग्रह-ग्रह पर है वर्षा होती।

सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
पृथ्वी पर भी नीला सागर,
पृथ्वी पर भी धरती उर्वर,
पृथ्वी पर भी शस्य उपजता,
पृथ्वी पर भी श्यामल अंबर,
किंतु यहाँ ये कारण रण के देख धरणि यह धीरज खोती।

सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
सूर्य निकलता, पृथ्वी हँसती,
चाँद निकलता, वह मुसकाती,
चिड़ियाँ गातीं सांझ सकारे,
यह पृथ्वी कितना सुख पाती;
अगर न इसके वक्षस्थल पर यह दूषित मानवता होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।

~ हरिवंशराय बच्चन

4. Hindi Language Poem on Earth

बड़ी-बड़ी बातों से, नहीं बचेगी धरती
वह बचेगी, छोटी-छोटी कोशिशों से
हम नहीं फेंकें कचरा इधर-उधर, स्वच्छ रहेगी धरती,
हम नहीं खोदें गड्ढे धरती पर, स्वस्थ रहेगी धरती,
हम नहीं होने दें उत्सर्जित विषैली गैसें, प्रदूषणमुक्त रहेगी धरती,
हम नहीं काटे जंगल, पानीदार रहेगी धरती,
धरती को पानीदार बनाएँ, आओ, धरती बचाएँ।

5. पृथ्वी पर कविता

धरती कह रही हैं बार बार
सुन लो मनुष्य मेरी पुकार,
बड़े बड़े महलों को बना के
मत डालो मुझ पर भार
पेड़ पौधों को नष्ट करके,
मत उजाड़ो मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!

मैं हु सबकी जीवन दाता
मैं हु सबकी भाग्य विधाता,
करने डॉ मुझे सब जीवो पर उपकार,
मत करो मेरे पहाड़ों पर विस्फ़ोटक वार,
मत उजाड़ो मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!

सुंदर सुंदर बाग़ और बगीचे हैं मेरे,
हे मनुष्य ये सब काम आयेंगें तेरे,
मेरी मिटटी में पला बड़ा तू,
तूने यहीं अपना संसार गाढ़ा हैं,
फिर से कर ले तू विचार,
मत उजाड़ मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!

मैं रूठी तो जग रूठा,
अगर मेरे सब्र का बांध टुटा,
नहीं बचेंगा कोई,
मेरे साथ अगर अन्याय करोंगे,
तो न्याय कह से पाओंगे
कभी बाढ़ तो कभी सुखा,
और भूकंप जैसी आपदा सहते जाओंगे,
धरती की बस यहीं पुकार,
मत उजाड़ों मेरा संसार!!

6. Poem on Earth in Hindi

माटी से ही जन्म हुआ है!
माटी में ही मिल जाना है!!
धरती से ही जीवन अपना!
धरती पर ही सजे सब सपना!!
सब जीव जन्तु धरती पर रहते!
गंगा यमुना यही पर बहते!!
सब्जी फल यहाँ ही उगते!
धन फसल यहाँ ही उपजे!!
धरती माँ की देख रेख कर!
हमको फर्ज़ निभाना है!!

~ अनुष्का सूरी

7. तेरे हैं कितने नाम

भूमि, धरती, भू, धरा
तेरे हैं कितने नाम

तू थी रंग बिरंगी
फूल फूलों से भरी भरी

तूने हम पर उपकार किया
हमने बदले में क्या दिया

तुझ से तेरा रूप है छीना
तुझसे तेरे रंग है छीने

पर अब मानव है जाग गया
हमने तुझसे यह वादा किया

अपना जंगल ना काटेंगे
नदियों को साफ रखेंगे

लौटा देंगे तेरा रंग रूप
चाहे हो कितनी बारिश और धूप

8. धरती का आँगन इठलाता

धरती का आँगन इठलाता!
शस्य श्यामला भू का यौवन
अंतरिक्ष का हृदय लुभाता!

जौ गेहूँ की स्वर्णिम बाली
भू का अंचल वैभवशाली
इस अंचल से चिर अनादि से
अंतरंग मानव का नाता!

आओ नए बीज हम बोएं
विगत युगों के बंधन खोएं
भारत की आत्मा का गौरव
स्वर्ग लोग में भी न समाता!

भारत जन रे धरती की निधि,
न्यौछावर उन पर सहृदय विधि,
दाता वे, सर्वस्व दान कर
उनका अंतर नहीं अघाता!

किया उन्होंने त्याग तप वरण,
जन स्वभाव का स्नेह संचरण
आस्था ईश्वर के प्रति अक्षय
श्रम ही उनका भाग्य विधाता!

सृजन स्वभाव से हो उर प्रेरित
नव श्री शोभा से उन्मेषित
हम वसुधैव कुटुम्ब ध्येय रख
बनें नये युग के निर्माता!
सुमित्रानंदन पंत

9. धरती की है संतान हम

धरती की है संतान हम,
धरती के हैं प्राण हम
धरती के हैं कर्जदार हम,
धरती की हैं याद हम
धरती ने हमें जन्म दिया,
धरती ने हमें अन्न दिया।

धरती ने हमें जल दिया,
धरती ने हमें रहने के लिए घर दिया।
धरती हमको है पुकारती,
धरती हमको है सँवारती ।

धरती हमको फल देती बदले में न कुछ भी लेती।
धरती माँ की है पहचान,
हम सब हैं एक ही माँ की संतान।
बस एक फर्ज सब मिलकर निभाओ,
धरती माँ को सब मिलकर बचाओ।

10. प्रकृति हमारी बड़ी निराली

प्रकृति हमारी बड़ी निराली।
इससे जुड़ी है ये दुनिया हमारी।।

प्रकृति से ही है धरा निराली।
प्रकृति से ही फैली है हरियाली।।

वृक्ष प्रकृति का है शृंगार।
इनको क्यो काट रहा है इंसान।।

नष्ट इसे करके अपने ही पाँव पर।
कुल्हाड़ी क्यो मार रहा है इंसान।।

प्रकृति की गोद मे जन्म लिया है।
फिर इसको क्यो उजाड़ना चाहता है।।

स्वार्थ साधने के बाद मूह फेर लेना।
क्या मानव यही तेरी मानवता है।।

प्रकृति दात्री है जिसने हमे सर्वस्व दिया।
पर मानव उसे दासी क्यो समझता है।।

क्या मानव इतना स्वार्थी है कि।
अपनी माँ को ही उजाड़ना चाहता है।।

हमको सबक सिखाती धरती
ऊँची धरती नीची धरती,
नीली, लाल, गुलाबी धरती।
हरे-भरे वृक्षों से सज्जित,
मस्ती में लहराती धरती।

कल -कल नीर बहाती धरती,
शीतल पवन चलाती धरती,
कभी जो चढ़े शैल शिखर तो,
कभी सिन्धु खा जाती धरती।

अच्छी -अच्छी फसलें देकर,
मानव को हर्षाती धरती,
हीरा, पन्ना, मोती, माणिक,
जैसे रतन लुटाती धरती।

भेद न करती उंच-नीच का,
सबका बोझ उठाती धरती,
अंत-काल में हर प्राणी को,
अपनी गोद में सुलाती धरती।

जाती धर्म से ऊपर उठ कर,
सबको गले लगाती धरती,
रहे प्रेम से इस धरती पर,
हमको सबक सिखाती धरती।

11. आओं हम सब मिलकर

आओं हम सब मिलकर,
ये संकल्प उठाएँ,
धरती माँ को फिर से,
सुंदर और स्वच्छ बनाए।

हो सके स्वच्छ जिससे,
भूमि, जल और वायु,
आरोग्य बने, स्वस्थ रहे,
और हो सके जिससे सब दीर्घायु।

हरियाली फैली हो,
हो धरा रंगीली,
सुंदर पुष्पों से महके वन उपवन,
खेतों में फ़सलें हो फूली।

हो स्वच्छ और सुंदर नभ भी,
और पक्षी पंख लहराए,
गाए गीत खुशी के वो,
निडर वो उड़ते जाए।

आओं मिलकर हम सब,
ये संकल्प उठाएँ,
धरती माँ के आँचल को,
स्वर्ग सा सुंदर सजाएं।

12. क्या तुमने कभी सुना हैं

क्या तुमने कभी सुना हैं
सपनों में चमकती कुल्हाड़ियों के भय से
पेड़ों की चीत्कार
कुल्हाड़ियों के वार सहते
किसी पेड़ की हिलती टहनियों में
दिखाई पड़े है तुम्हें
बचाव के लिए पुकारते हजारों हजार हाथ
क्या होती है, तुम्हारे भीतर धमस
कटकर गिरता है जब कोई पेड़ धरती पर
सुना है कभी
रात के सन्नाटे में अँधेरे से मुंह ढाप
किस कदर रोती हैं नदियाँ
इस घाट अपने कपड़े और मवेशियां धोते
सोचा है कभी कि उस घाट
पी रहा होगा कोई प्यासा पानी
या कोई स्त्री चढ़ा रही होगी किसी देवता को अर्ध्य
कभी महसूस किया कि किस कदर दहलता है
मौन समाधि लिए बैठा पहाड़ का सीना
विस्फोट से टूटकर जब छिटकता दूर तक कोई पत्थर
सुनाई पड़ी है कभी भरी दुपहरिया में
हथोडों की चोट से टूटकर बिखरते पत्थरों की चीख
खून की उल्टियाँ करते
देखा है कभी हवा को अपने घर के पिछवाड़े
थोडा सा वक्त चुराकर बतियाया है कभी
शिकायत न करने वाली
गुमसुम बूढ़ी पृथ्वी से उसका दुःख
अगर नहीं तो क्षमा करना
मुझे तुम्हारे आदमी होने पर संदेह है.

13. जब ईश्वर ने कभी

जब ईश्वर ने कभी,
इस धरती को बनाया होगा,
न जाने कितने रंगों को प्रकृति के,
आपस में मिलाया होगा।

सूरज से माँगी होंगी किरणें,
और फसलों को सजाया होगा,
लेके चाँद से चाँदनी,
धरती का दर्पण बनाया होगा।

लेके हवाओं से मचलना,
उसका आँचल लहराया होगा,
थोड़ा बिजलियों से लेके संगीत,
उसके मन को बहलाया होगा।

लेके बारिशों से पानी,
मोती सा छलकाया होगा,
देके मौसम के रंग भी इसको,
और भी रंगी बनाया होगा।

सजा इतने रंगों से धरा को,
वो कितना मुस्कुराया होगा,
देख अपनी अप्रितम कृति को,
फिर वो ईश्वर न जाने कितना इतराया होगा।
– निधि अग्रवाल

14. गुस्से के मारे

गुस्से के मारे
सारे के सारे
आसमान के तारे
टूट पड़े धरती के ऊपर
झर झर झर झर अगर
तो बतलाओ क्या क्या होगा?

धरती पर आकाश बिछेगा
किरणों से हर कदम सींचेगा
चंदा तक चढ़ने का
मतलब नहीं बचेगा
रूस बढ़ा या अमरीका
बढ़ने का मतलब नहीं बचेगा

मगर एक मुशिकल आएगी
कब जाएगी रात और
दिन कब आएगा
कब मुर्गा बोलेगा कब सूरज आएगा
कब बाजार भरेगा
कब हम सब जाएंगे सोने
कब जागेंगे लोग,
बढ़ेगे कब किसान बोने
कब माँ हमें उठाएगी
मुहं हाथ धुलेगा
जल्दी जल्दी भागेंगे हम यों कि
अभी स्कूल खुलेगा

नाहक है सारे सवाल ये
हम सब चौबीसों घंटों
जागेंगे कूदेंगे खेलेंगे
हर तारे से बात करेंगे

मगर दूसरे लोग
बात उनकी क्या सोचें
उनसे कुछ भी नहीं बना
तो पापड़ बेलेंगे!

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