नरिन्द्र कुमार की प्रसिद्ध कविताएँ, Narinder Kumar Poem in Hindi

Narinder Kumar Poem in Hindi : यहाँ पर आपको Narinder Kumar ki Kavita in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. नरिन्द्र कुमार पंजाब जालंधर के रहने वाले हैं. यह हिंदी और पंजाबी दोनों भाषाओँ में कविता लिखते हैं. इनकी कविताएँ अलग – अलग पत्र पत्रिकाओं और सोसल मिडिया पर चर्चा में रहती हैं.

हिन्दी कविताएँ नरिन्द्र कुमार (Hindi Poetry Narinder Kumar)

Narinder Kumar Poem in Hindi

1. पहाड़ और नदी

पहाड़ ने पूछा नदी से
पानी लेकर जाती हो जिनके लिए
दूर दूर तक
टेढ़े मेड़े पथरीले रास्तों से हो कर
मान करते होंगे
तुम्हारा बहुत वे

बोली नदी पहाड़ से
हां वैसा ही
जैसे खेलते मचलते गोद में तुम्हारी
चढ़ बैठते हैं तुम्हारे सिर पर।

2. रात का रोना

अंधेरे कोने में बैठे
रोते बच्चे को देख
पास बैठी छोटी बहन
उसका दुख जान नही पाती
उसका रोना सह नही पाती
कहना चाहती है कुछ
लेकिन रोने लगी है
उसकी आवाज में आवाज मिला कर।

दोनों मां बाप की तरफ देख
रोते हैं जोर जोर से
और मां बाप रो रहे हैं
अपना अपना रोना
रोज की तरह।

बच्चे सो जाते हैं रोते रोते
सुबकते हुए नींद में
और उठते हैं जब
तो देखते हैं मायूस होकर
कि सुबह भी है रात जैसी ही।

3. ये आम बात है

जिस बात से तू प्रेशान है
ये आम बात है
नफ़रत मुकाम है
ये आम बात है

तंगहाली,बदहाली हर गली
शेयर बाजार में उफान है

जब भूख शरेआम हो
जहर बांटना नेक काम है

हवा पानी बिके , अब धूप बिकेगी
मुनाफाखोर का मुनाफा,
तरक्की की पहचान है

मोजूद हैं लाल किले तक
पहुंचाने वाले बदरंग मकान
राजगद्दी दिलाने वाले
भूखे लोग,बेरोजगार जवान हैं।

4. मनिहारी

मेरा वो दोस्त जो था मनिहारी
देखते देखते हो गया सरकारी
बांटता है चूड़ियां तोड़ने का सामान अब
बिना मेहनताने का दरबारी।

5. वो रोज टीवी देखते थे

थे वे हमारे जैसे ही
लेकिन हमारे साथ नहीं
अलग खड़े थे
हमारे साथ खेले थे, हम साथ पढ़े थे
हम सबकी समस्याएं एक जैसी थीं
हालात लगभग एक जैसे थे
न ही वे सरकार थे
न वे मक्कार थे
लेकिन जब हमने अपने वर्तमान
और भविष्य को संवारना चाहा
वे हमारे खिलाफ हुए
उन्होंने हम पर कई उपनाम जड़े थे
हम हैरान थे, परेशान थे
यह कैसे हो सकता है
कहां से सीखी गई यह सोच
तरीका, भाषा
हमने सुन रखा था बजुर्ग सयानों से
कि एक जैसे हालात के मारे लोग
लगभग एक जैसे होते हैं
सच जानने की जल्दी में
हमने उनका पीछा किया
घर तक पहुंच गए और पता चला
वे रोज टीवी देखते थे!

(पंजाबी से अनुवाद : स्वयं कवि)

6. हम लौट जाएंगे

हमारा पानी दे दे
हमारी मिट्टी दे दे
हम लौट जाएंगे
अपनी खाद ले जा
दारू दवाई ले जा
काली कमाई ले जा
किसान की खुदाई दे दे
हम लौट जाएंगे

तेरा कथन है कि
हरी-क्रांति से पहले कोई तरक्की नहीं थी हुई
हम कहते हैं
हरी-क्रांति से पहले कोई खुदकुशी नहीं थी हुई
अपनी क्रांति ले जा
हमारी शांति दे दे
हम लौट जाएंगे

हम मोल भाव नहीं
हिसाब करने आए हैं
आज के नहीं
मुद्दत्तों से सताए गए हैं
अपने झूठे केस ले जा
झूठे कर्ज ले जा
हमारे अंगूठे दे दे
हम लौट जाएंगे
हमारा पानी दे दे
हमारी मिट्टी दे दे
हम लौट जाएंगे।

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