भक्त धन्ना जी की प्रसिद्ध कविताएँ, Bhakt Dhanna Ji Poem in Hindi

Bhakt Dhanna Ji Poem in Hindi : यहाँ पर आपको Bhakt Dhanna Ji Famous Poems in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. भक्त धन्ना जी का जन्म 1415 ई में राजस्थान के टोक जिले के दूनी तहसील के धुवा गांव में हुआ था. इनके जन्मस्थान को लेकर लोगों में आज भी मतभेद हैं. यह एक रहस्यवादी कवि थे. इनके तीन भजन आदि ग्रन्थ में मौजूद हैं. यह कृष्ण भक्त थे.

भक्त धन्ना जी की प्रसिद्ध कविताएँ (Bhakt Dhanna Ji Poems)

Bhakt Dhanna Ji Poem in Hindi

1. भ्रमत फिरत बहु जनम बिलाने तनु मनु धनु नही धीरे

भ्रमत फिरत बहु जनम बिलाने तनु मनु धनु नही धीरे ॥
लालच बिखु काम लुबध राता मनि बिसरे प्रभ हीरे ॥१॥ रहाउ ॥
बिखु फल मीठ लगे मन बउरे चार बिचार न जानिआ ॥
गुन ते प्रीति बढी अन भांती जनम मरन फिरि तानिआ ॥१॥
जुगति जानि नही रिदै निवासी जलत जाल जम फंध परे ॥
बिखु फल संचि भरे मन ऐसे परम पुरख प्रभ मन बिसरे ॥२॥
गिआन प्रवेसु गुरहि धनु दीआ धिआनु मानु मन एक मए ॥
प्रेम भगति मानी सुखु जानिआ त्रिपति अघाने मुकति भए ॥३॥
जोति समाइ समानी जा कै अछली प्रभु पहिचानिआ ॥
धंनै धनु पाइआ धरणीधरु मिलि जन संत समानिआ ॥४॥१॥੪੮੭॥

(भ्रमत =भटकते, बिलाने=गुज़र गए, नही धीरे=नहीं टिकता,
बिखु=जहर, लुबध=लोभी, राता=रंगा हुआ, चार=सुंदर,
अन भांती=और और किस्म की, जलत=जलते, अघाने=जी भर गया,
अछली =जो छला न जा सके)

2. रे चित चेतसि की न दयाल दमोदर बिबहि न जानसि कोई

रे चित चेतसि की न दयाल दमोदर बिबहि न जानसि कोई ॥
जे धावहि ब्रहमंड खंड कउ करता करै सु होई ॥१॥ रहाउ ॥
जननी केरे उदर उदक महि पिंडु कीआ दस दुआरा ॥
देइ अहारु अगनि महि राखै ऐसा खसमु हमारा ॥१॥
कुमी जल माहि तन तिसु बाहरि पंख खीरु तिन नाही ॥
पूरन परमानंद मनोहर समझि देखु मन माही ॥२॥
पाखणि कीटु गुपतु होइ रहता ता चो मारगु नाही ॥
कहै धंना पूरन ताहू को मत रे जीअ डरांही ॥३॥३॥੪੮੮॥

(चेतसि की न=तू क्यों याद नहीं करता, दमोदर=परमात्मा,
बिबहि=और, न जानसि =तूने न जानी, धावहि=तुम दौड़ोगे, जननी=माँ,
केरे=के, उदर=पेट, उदक=पानी, पिंडु=शरीर, कुमी=कछुआ,कुमी,
खीरु दूध, पाखणि=पत्थर में, ता चो=उस का, मारगु=रास्ता)

3. गोपाल तेरा आरता

गोपाल तेरा आरता ॥
जो जन तुमरी भगति करंते तिन के काज सवारता ॥१॥ रहाउ ॥
दालि सीधा मागउ घीउ ॥
हमरा खुसी करै नित जीउ ॥
पन्हीआ छादनु नीका ॥
अनाजु मगउ सत सी का ॥१॥
गऊ भैस मगउ लावेरी ॥
इक ताजनि तुरी चंगेरी ॥
घर की गीहनि चंगी ॥
जनु धंना लेवै मंगी ॥२॥४॥੬੯੫॥

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