ख्वाब पर शायरी, Khwab Shayari in Hindi

Khwab Shayari – यहाँ पर Khwab Shayari in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. हम सभी के दिल में कुछ ख्वाब होते हैं. उन ख्वाबों को पूरा करने के लिए हमलोग अपनी तरफ से भरपूर कोशिश करते हैं. कुछ ख्वाब पुरे होते हैं तो कुछ ख्वाब अधूरे रह जाते हैं. शायरों ने ख्वाब को आधार मानकर बहुत सारे ख्वाब पर शायरी, अधूरे ख्वाब पर शायरी, झूठे ख्वाब पर शायरी लिखी हैं.

अब आइए यहाँ पर कुछ ख्वाब पर शायरी, अधूरे ख्वाब पर शायरी, झूठे ख्वाब पर शायरी दी गई हैं. इसको पढते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी ख्वाब पर शायरी आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

ख्वाब पर शायरी, Khwab Shayari in Hindi

Khwab Shayari

(1) मुस्काती आँखों में अक्सर
देखे हम ने रोते ख़्वाब
अफ़ज़ल हज़ारवी

(2) किसी ख़याल का कोई वजूद हो शायद
बदल रहा हूँ मैं ख़्वाबों को तजरबा कर के
ख़ालिद मलिक साहिल

(3) बला-ए-जाँ थी जो बज़्म-ए-तमाशा छोड़ दी मैं ने
ख़ुशा ऐ ज़िंदगी ख़्वाबों की दुनिया छोड़ दी मैं ने
अबु मोहम्मद सहर

(4) बनाऊँ किस को शब-ए-ग़म अनीस-ए-तन्हाई
कि साथ है मिरी तक़दीर वो भी ख़्वाब में है
जलील मानिकपूरी

(5) सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा
एक दिन बिस्तर पे कोई जागता रह जाएगा
हयात लखनवी

(6) हाथ लगाते ही मिट्टी का ढेर हुए
कैसे कैसे रंग भरे थे ख़्वाबों में
ख़ावर एजाज़

(7) नहीं करते वो बातें आलम-ए-रूया में भी हम से
ख़ुशी के ख़्वाब भी देखें तो बे-ताबीर होते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़

(8) इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा
सच हुआ करती हैं इन ख़्वाबों की ताबीरें कहीं
हसरत मोहानी

(9) टूट कर रूह में शीशों की तरह चुभते हैं
फिर भी हर आदमी ख़्वाबों का तमन्नाई है
होश जौनपुरी

(10) हमारा इश्क़ रवाँ है रुकावटों में ‘ज़फ़र’
ये ख़्वाब है किसी दीवार से नहीं रुकता
ज़फ़र इक़बाल

Khwab Shayari in Hindi

(11) पलट न जाएँ हमेशा को तेरे आँगन से
गुदाज़ लम्हों की बे-ख़्वाब आहटों से न रूठ
इरफ़ान सिद्दीक़ी

(12) मेरा हर ख़्वाब तो बस ख़्वाब ही जैसा निकला
क्या किसी ख़्वाब की ताबीर भी हो सकती है
फ़रहत नदीम हुमायूँ

(13) भर लाए हैं हम आँख में रखने को मुक़ाबिल
इक ख़्वाब-ए-तमन्ना तिरी ग़फ़लत के बराबर
अबरार अहमद

(14) जागती आँख से जो ख़्वाब था देखा ‘अनवर’
उस की ताबीर मुझे दिल के जलाने से मिली
अनवर सदीद

(15) कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
मैं ख़्वाब देख रहा हूँ मुझे जगाओ नहीं
अख़्तर अंसारी

(16) जब से इक ख़्वाब की ताबीर मिली है मुझ को
मैं हर इक ख़्वाब की ताबीर से घबराता हूँ
कफ़ील आज़र अमरोहवी

(17) रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा
अहमद शहरयार

(18) जी लगा रक्खा है यूँ ताबीर के औहाम से
ज़िंदगी क्या है मियाँ बस एक घर ख़्वाबों का है
ऐन ताबिश

(19) चौंक पड़ता हूँ ख़ुशी से जो वो आ जाते हैं
ख़्वाब में ख़्वाब की ताबीर बिगड़ जाती है
ज़हीर देहलवी

(20) अजीब ख़्वाब था ताबीर क्या हुई उस की
कि एक दरिया हवाओं के रुख़ पे बहता था
आशुफ़्ता चंगेज़ी

2 Line Khwab Shayari

(21) वही है ख़्वाब जिसे मिल के सब ने देखा था
अब अपने अपने क़बीलों में बट के देखते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़

(22) किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम
‘अता’ इसी लिए सोते में होंट हिलते हैं
अहमद अता

(23) लगता है इतना वक़्त मिरे डूबने में क्यूँ
अंदाज़ा मुझ को ख़्वाब की गहराई से हुआ
ज़फ़र इक़बाल

(24) मुझे इस ख़्वाब ने इक अर्से तक बे-ताब रक्खा है
इक ऊँची छत है और छत पर कोई महताब रक्खा है
ख़ावर एजाज़

(25) उसी के ख़्वाब थे सारे उसी को सौंप दिए
सो वो भी जीत गया और मैं भी हारा नहीं
सरफ़राज़ ख़ालिद

(26) नहीं अब कोई ख़्वाब ऐसा तिरी सूरत जो दिखलाए
बिछड़ कर तुझ से किस मंज़िल पर हम तन्हा चले आए
ख़लील-उर-रहमान आज़मी

(27) देने वाले तू मुझे नींद न दे ख़्वाब तो दे
मुझ को महताब से आगे भी कहीं जाना है
अज़ीम हैदर सय्यद

(28) ख़्वाब देखा था मोहब्बत का मोहब्बत की क़सम
फिर इसी ख़्वाब की ताबीर में मसरूफ़ था मैं
ख़ालिद मलिक साहिल

(29) ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है
आँख खुल जाए तो मुसीबत है
शारिक़ कैफ़ी

(30) आइना आइना तैरता कोई अक्स
और हर ख़्वाब में दूसरा ख़्वाब है
अतीक़ुल्लाह

ख्वाब पर शायरी

(31) या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो
ये महशर-ए-ख़याल कि दुनिया कहें जिसे
मिर्ज़ा ग़ालिब

(32) अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
दोस्तो आओ कि कुछ ख़्वाब दिखाते हैं तुम्हें
सलीम सिद्दीक़ी

(33) कभी दिखा दे वो मंज़र जो मैं ने देखे नहीं
कभी तो नींद में ऐ ख़्वाब के फ़रिश्ते आ
कुमार पाशी

(34) ऐसा हो ज़िंदगी में कोई ख़्वाब ही न हो
अँधियारी रात में कोई महताब ही न हो
ख़लील मामून

(35) ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे देख लें
क्या भरोसा कल कहाँ पागल हवा ले जाएगी
आशुफ़्ता चंगेज़ी

(36) दरवाज़ा खटखटा के सितारे चले गए
ख़्वाबों की शाल ओढ़ के मैं ऊँघता रहा
आदिल मंसूरी

(37) हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया
वो ज़िंदगी को ये कैसा अज़ाब दे के गया
हकीम मंज़ूर

(38) सुना है ख़्वाब मुकम्मल कभी नहीं होते
सुना है इश्क़ ख़ता है सो कर के देखते हैं
हुमैरा राहत

(39) माना कि सब के सामने मिलने से है हिजाब
लेकिन वो ख़्वाब में भी न आएँ तो क्या करें
अख़्तर शीरानी

(40) लोग करते हैं ख़्वाब की बातें
हम ने देखा है ख़्वाब आँखों से
साबिर दत्त

Adhure Khwab Shayari

(41) ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते ‘अता’
इस का मतलब है मिरा यार ख़फ़ा है मुझ से
अहमद अता

(42) कुचल के फेंक दो आँखों में ख़्वाब जितने हैं
इसी सबब से हैं हम पर अज़ाब जितने हैं
जाँ निसार अख़्तर

(43) भरी रहे अभी आँखों में उस के नाम की नींद
वो ख़्वाब है तो यूँही देखने से गुज़रेगा
ज़फ़र इक़बाल

(44) रात क्या सोए कि बाक़ी उम्र की नींद उड़ गई
ख़्वाब क्या देखा कि धड़का लग गया ताबीर का
अहमद फ़राज़

(45) ज़िंदगी छीन ले बख़्शी हुई दौलत अपनी
तू ने ख़्वाबों के सिवा मुझ को दिया भी क्या है
अख़्तर सईद ख़ान

(46) आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
जाँ निसार अख़्तर

(47) अभी वो आँख भी सोई नहीं है
अभी वो ख़्वाब भी जागा हुआ है
नसीर अहमद नासिर

(48) बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की
सो अब अपनी ज़िंदगी में नए ख़्वाब भर रहे हैं
उबैदुल्लाह अलीम

(49) हम तिरे ख़्वाबों की जन्नत से निकल कर आ गए
देख तेरा क़स्र-ए-आली-शान ख़ाली कर दिया
ऐतबार साजिद

(50) है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँ
आँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता
सय्यद अमीन अशरफ़

(51) बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं
कुछ ख़्वाब मिरे ऐन-जवानी में मरे हैं
एजाज तवक्कल

(52) ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा
दिन ढलते ही दिल डूबने लगता है हमारा
शहरयार

(53) कैसा जादू है समझ आता नहीं
नींद मेरी ख़्वाब सारे आप के
इब्न-ए-मुफ़्ती

(54) आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब में
लेकिन ख़बर नहीं कि बुलाया कहाँ गया
फ़ैसल अजमी

(55) ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में
मिर्ज़ा ग़ालिब

(56) ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए
आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

(57) क्या हसीं ख़्वाब मोहब्बत ने दिखाया था हमें
खुल गई आँख तो ताबीर पे रोना आया
शकील बदायूनी

(58) क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

(59) दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़
एक ने अज्र दिया एक ने उजरत नहीं दी
इफ़्तिख़ार आरिफ़

(60) तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
मगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं
अब्बास रिज़वी

(61) नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भी
सुब्ह हुई ज़मीन पर रात ढली मज़ार में
आदिल मंसूरी

(62) हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
अख़्तर अंसारी

(63) नींद को लोग मौत कहते हैं
ख़्वाब का नाम ज़िंदगी भी है
अहसन यूसुफ़ ज़ई

(64) मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ
साहिर लुधियानवी

(65) ज़िंदगी ख़्वाब देखती है मगर
ज़िंदगी ज़िंदगी है ख़्वाब नहीं
शबनम रूमानी

(66) मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला
अहमद फ़राज़

(67) ख़्वाबों पर इख़्तियार न यादों पे ज़ोर है
कब ज़िंदगी गुज़ारी है अपने हिसाब में
फ़ातिमा हसन

(68) मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

(69) बारहा तेरा इंतिज़ार किया
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह
परवीन शाकिर

(70) देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब में
फिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा
रज़ा अज़ीमाबादी

(71) आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम
उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में
सिराज लखनवी

(72) जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई
परवीन शाकिर

(73) रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
जलील मानिकपूरी

(74) तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
गुलज़ार

(75) ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
राहत इंदौरी

(76) कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए
वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए
सलीम कौसर

(77) यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
निदा फ़ाज़ली

(78) कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
जावेद अख़्तर

(79) ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जा कर मगर रहा न करो
मुनीर नियाज़ी

(80) ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ
काश तुझ को भी इक झलक देखूँ
उबैदुल्लाह अलीम

(81) आशिक़ी में ‘मीर’ जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
अहमद फ़राज़

(82) हर एक रात को महताब देखने के लिए
मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए
अज़हर इनायती

(83) ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़

(84) उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए
कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
इरफ़ान सिद्दीक़ी

(85) और तो क्या था बेचने के लिए
अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं
जौन एलिया

(86) अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
मुनव्वर राना

(87) ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूं
काश तुझ को भी इक झलक देखूं
– उबैदुल्लाह अलीम

(88) ख़्वाब तुम्हारे आते हैं
नींद उड़ा ले जाते हैं
– साबिर वसीम

(89) ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा
दिन ढलते ही दिल डूबने लगता है हमारा
– शहरयार

(90) देखे थे जितने ख़्वाब ठिकाने लगा दिए
तुम ने तो आते आते ज़माने लगा दिए
– जावेद सबा

(91) तुझसे मिलना तो अब ख्वाब सा लगता है,
इसलिए मैंने तेरे इंतज़ार से मोहब्बत की है.

(92) ख्वाब सा था साथ तुम्हारा,
ख्वाब बन के रह गया.

(93) कभी तुम्हरी याद आती है तो कभी तुम्हारे ख्व़ाब आते है,
मुझे सताने के सलीके तो तुम्हें बेहिसाब आते है.

(94) लो अब आवाज दी जाये नींद को,
कुछ थके थके से लग रहे हैं ✒ ख्वाब मेरे.

(95) पूरा नहीं हुआ , तो क्या हुआ,
दिखाने वाले तेरा ✒ ख्वाब अच्छा था.

(96) दिल ने आज फिर तेरे दीदार की ख्वाहिश रखी है,
अगर फुरसत मिले तो ✒ ख्वाबों मे आ जाना

(97) शोर न कर धड़कन ज़रा थम जा कुछ पल के लिए
बड़ी मुश्किल से मेरी आँखों में उसका ख्वाब आया है.

(98) ख़्वाब बुनते बुनते एक उम्र हो चली ,
अब उन ख्वाबो को सिरहाने रख सोने को जी चाहता है

(99) ख़्वाब आँखों से गए,नींद रातों से गई
वो गया तो ऐसे लगा,ज़िंदगी हाँथो से गई.

(100) नींद मिल जाए कहीं तो भेजना जरा,
बहोत सारे ख्वाब अधूरे है मेरे.

(101) आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब में
लेकिन ख़बर नहीं कि बुलाया कहाँ गया
फ़ैसल अजमी

(102) रात बड़ी मुश्किल से खुद को सुलाया है मैंने,
अपनी आँखों को तेरे ✒ ख्वाब का लालच देकर.

(103) ज़ीना मुहाल कर रखा है मेरी इन आँखों ने,
खुली हो तो तलाश तेरी बंद हो तो ✒ ख्वाब तेरे.

(104) मुझे मौत से डरा मत, कई बार मर चुका हूँ
किसी मौत से नहीं कम कोई ✒ ख़्वाब टूट जाना.

(105) अगर ख़ुदा न करे सच ✒ ये ख़्वाब हो जाए
तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए
दुष्यंत कुमार

(106) हाल-ए-दिल बयान क्या करूं
जब हमने ख्वाहिशों पर पहरा लगा
ख्वाबों को तेरे नाम कर रखा है.!!

(107) कुछ ख़ास फर्क नही पड़ता
अब ख्वाब अधूरे रहने पर
बहुत करीब से कुछ
सपनो को टूटते देखा है !

(108) ख़्वाब जितने भी थे जल गए सारे
अब इन आँखों में नमी के सिवा कुछ भी नही।

(109) बस यही दो मसले ज़िन्दगी
भर न हल हुए ना नींद पूरी हुई
न ख्वाब मुकम्मल हुए।

(110) खुदा का सुक्र है कि उसने ख्वाब बना दिए
वरना तुम्हें देखने की तो हसरत रह ही जाती।

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