जरूरत पर शायरी, Jarurat Shayari in Hindi

Jarurat Shayari – दोस्तों आज के इस पोस्ट में आपको कुछ बेहतरीन जरूरत पर शायरी का संग्रह दिया गया हैं. आइए इसको पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की आपको यह सभी Jarurat Shayari in Hindi में पसंद आयगी.

जरूरत पर शायरी, Jarurat Shayari in Hindi

Jarurat Shayari in Hindi

(1) ख़ुद चराग़ों को अंधेरों की ज़रूरत है बहुत
रौशनी हो तो उन्हें लोग बुझाने लग जाएं
– शबाना यूसुफ़

(2) ज़रूरत ढल गई रिश्ते में वर्ना
यहां कोई किसी का अपना कब है
– अता आबिदी

(3) अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे
– ऐतबार साजिद

(4) बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
हम ख़फ़ा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है
– शाहिद कबीर

(5) ग़ैर को दर्द सुनाने की ज़रूरत क्या है
अपने झगड़े में ज़माने की ज़रूरत क्या है
– अज्ञात

(6) ये ज़रूरत है तो फिर इस को ज़रूरत से न देख
अपनी चाहत को किसी और की चाहत से न देख
– शाहिद कमाल

(7) ज़रूरत बे-ज़रूरत बोलती है
जहाँ दौलत हो दौलत बोलती है
– माजिद अली काविश

(8) बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
हम ख़फ़ा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है
– शाहिद कबीर

(9) अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
छोड़ना है तो बहाने की ज़रूरत क्या है
-नदीम गुल्लानी

(10) शायद उसे ज़रूरत हो अब पर्दे की
रौशनियाँ घर की मद्धम कर जाऊँ मैं
– शारिक़ कैफ़ी

Insaan ki Jarurat Shayari

(11) हमें भी ज़रूरत थी इक शख़्स की
ये हुस्न-ए-तसादुम बहुत ख़ूब है
ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

(12) जाने कब कौन से लम्हे में ज़रूरत पड़ जाए
तुम हमारे लिए पहले से दुआ कर रखना
नाशिर नक़वी

(13) उन के भी अपने ख़्वाब थे अपनी ज़रूरतें
हम-साए का मगर वो गला काटते रहे
अज़हर इनायती

(14) दर-अस्ल इस जहाँ को ज़रूरत नहीं मिरी
हर-चंद इस जहाँ के लिए ना-गुज़ीर मैं
फ़रहत एहसास

(15) अगर इतनी मुक़द्दम थी ज़रूरत रौशनी की
तो फिर साए से अपने प्यार करना चाहिए था
यासमीन हमीद

(16) ये किस को याद किया रूह की ज़रूरत ने
ये किस के नाम से मेरे लहू में फूल खिले
अरशद अब्दुल हमीद

(17) निज़ाम-ए-मय-कदा साक़ी बदलने की ज़रूरत है
हज़ारों हैं सफ़ें जिन में न मय आई न जाम आया
आनंद नारायण मुल्ला

Jarurat Shayari in Hindi

(18) ख़ुद चराग़ों को अंधेरों की ज़रूरत है बहुत
रौशनी हो तो उन्हें लोग बुझाने लग जाएँ
शबाना यूसुफ़

(19) ज़रूरत उस की हमें है मगर ये ध्यान रहे
कहाँ वो ग़ैर-ज़रूरी कहाँ ज़रूरी है
सग़ीर मलाल

(20) अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे
ऐतबार साजिद

(21) क्या जरूरत थी दूर तुम्हें जाने की,
चाहते तो पास रहकर भी तो सता सकते थे।

(22) ये दिल ही तो जानता है मेरी मोहब्बत का आलम,
कि मुझे जीने के लिए सांसो की नहीं तेरी जरूरत हैं।

(23) तुझे हर बात पे मेरी जरूरत पड़ती,
काश मैं भी कोई झूठ होता।

(24) मेरा हर लम्हा खुबसूरत है,
दिल में सिर्फ तेरी ही सूरत है,
कुछ भी कहे जमाना गम नहीं,
जिंदगी में मुझे तेरी जरूरत है।

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