कौआ पर कविता, Hindi Poem on Bird Crow

Hindi Poem on Bird Crow – दोस्तों इस पोस्ट में कुछ कौआ पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

कौआ पर कविता, Hindi Poem on Bird Crow

Hindi Poem on Bird Crow

1. कौआ पर कविता

मेरी मम्मी की मम्मी जी
एक साल में आती है
रोज रात को पास बैठकर
किस्से नए सुनाती है

बहुत दूर से उडकर लाया
कौआ रोटी का टुकड़ा
रोटी का टुकड़ा देखा तो
उसको याद कहानी आई

कौआ भी था चतुर सयाना
उसके मन को भांप गया
याद किया पिछली घटना को
मन ही मन को काँप गया

ऊपर ऊपर लगा सोचने
इसको सबक सिखाना है
बीत गई है बात पुरानी
आया नया जमाना है

कहा लोमड़ी ने कौए से
बीता एक जमाना भाई
बहुत दिनों से नहीं सुना है
कोई मीठा गाना भाई

गाने की जब बात चली
तो कौआ बना सयाना
रखा डाल पर रोटी को
फिर लगा सुनाने गाना

कांव कांव सुन खड़ी लोमड़ी
मन ही मन खिसियाई
ऊपर से हंसकर बोली
क्या गाना गाते हो भाई

कौआ बोला अरे बहन
क्या सचमुच मीठा गाना था
गाना तो मीठा था लेकिन
सुर और ताल पुराना था

अरे बहन सुर ताला पुराना
इसी बात का रोना है
डाली पर रोटी का टुकड़ा
उसे नहीं अब खोना है

2. Hindi Poem on Bird Crow

घर के बाहर कौआ बैठा काँव-काँव चिल्लाता है।
कौन है आने वाला इसकी खबरें कौआ लाता है।

पापा की मौसी के घर से गुड़ की भेली आनी हो,
उस दिन सुबह सवेरे उठता जैसे बुढ़िया नानी हो,
चीख-चीख कर घर वालों को कौआ राग सुनाता है।
उस दिन सबसे पहले क्यों, मुझको नहीं जगाता है ?

मास्टर जी के आने पर कौए की छुट्टी होती है।
हाथ पे पड़ते बेंत ज़ोर के, कान कनैठी होती है।
शोर सुनाई देता है बस, समझ नहीं कुछ आता है,
काला अक्षर भी, काले कौए जैसा बन जाता है।

कभी कभी दादी कहती ये दादाजी के दादा हैं।
पहचानूँ पर कैसे उनको, कौए कितने ज़्यादा हैं!
जो आकर के गरम जलेबी और मलाई खाता है,
वो ही है वो कौआ जिससे अपने घर का नाता है!

मैंने सुना दिन आएगा जब कौआ मोती खायेगा,
लेकिन शायद मोती उसके कंठ में ही फँस जाएगा!
क्या मोती खाकर कौआ सच में हंस हो जाता है?
फिर कौए की ज़िम्मेदारी आख़िर कौन निभाता है?

और भी कितने पक्षी हैं जो रोज़ द्वार पर आते हैं,
लेकिन सब कहते हैं पक्षी, बिन पानी मर जाते हैं!
कौआ कंकड़ डाल-डाल कर पानी ऊपर ले आता है,
इसीलिए तो मुझको सब चिड़ियों में कौआ भाता है!

सब कहते हैं कुछ सालों में मैं भी बड़ा हो जाऊँगा।
फिर अपनी बच्चों जैसी बातों पर खुद पछताऊँगा।
कविता में तो हर बच्चा किस्से मनगढ़े सुनाता है।
सच बस इतना है कि कौआ काँव-काँव चिल्लाता है!
– जया प्रसाद

3. उजला-उजला हंस एक दिन

उजला-उजला हंस एक दिन
उड़ते-उड़ते आया,
हंस देखकर काला कौआ
मन ही मन शरमाया।

लगा सोचने उजला-उजला
मैं कैसे हो पाऊँ-
उजला हो सकता हूँ
साबुन से मैं अगर नहाऊँ।

यही सोचता मेरे घ्ज्ञर पर
आया काला कागा,
और गुसलखाने से मेरा
साबुन लेकर भागा।

फिर जाकर गड़ही पर उसने
साबुन खूब लगाया,
खूब नहाया, मगर न अपना
कालापन धो पाया।

मिटा न उसका कालापन तो
मन ही मन पछताया,
पास हंस के कभी न फिर वह
काला कौआ आया।

4. छत पर आकर बैठा कौवा

छत पर आकर बैठा कौवा
कांव-कांव चिल्लाया
मुन्नी को यह स्वर ना भाया
पत्थर मार भगाया

तभी वहां पर कोयल आई
कुहू-कुहू चिल्लाई
उसकी प्यारी-प्यारी बोली
मुनिया के मन भाई ।

मुन्नी बोली प्यारी कोयल
रहो हमारे घर में ।
शक्कर से भी ज्यादा मीठा
स्वाद तुम्हारे स्वर में ।

मीठी बोली वाणी वाले
सबको सदा सुहाते ।
कर्कश कड़े बोल वाले कब
दुनिया को हैं भाते !
प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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