सैनिक पर कविता, Poem on Soldiers in Hindi

Poem on Soldiers in Hindi – आज इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन Heart Touching Poem on Soldiers in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. यह सभी सैनिक पर कविता हमारे लोकप्रिय शायरों द्वारा लिखी गई हैं. यह सभी इंडियन आर्मी पोएम को आप 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस के मोके पर सुना सकते हैं.

यह सभी कविताएँ हमारे अन्दर देशप्रेम की भावना जागृत करती हैं. और यह सभी कविताएँ तमाम भारत के वीर सपूतों की याद दिलाती हैं. हमारे भारतीय सेना का उद्देश्य राष्ट्र की सुरक्षा एकता को बनाए रखना होता हैं. बाहरी और आंतरिक खतरों से सुरक्षा प्रदान करना होता हैं. इनके बलिदानों का कर्ज हम नही चूका सकते हैं. हम लोग सेना की वजह से ही अपने घर में चैन से सोते हैं.

दोस्तों आइए अब कुछ बेहतरीन Poem on Soldiers in Hindi को पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी Heart Touching Poem on Soldiers in Hindi आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

सैनिक पर कविता

Poem on Soldiers in Hindi

1. मैं जगा रहूँगा रात-दिन

मैं जगा रहूँगा रात-दिन,
चाहे धूप हो या बरसात हो,
चाहे तूफान आये या पूस की ठंढी रात हो,
मैं खड़ा रहूँगा सरहद पर सीना ताने,
चाहे गोलियों की बौछार हो,
चाहे न खाने को कुछ भी आहार हो,
अपने “वतन” की खातिर मैं,
हर दर्द हँस के सह लूँगा,
निकले जो खून बदन से मेरे,
मैं खुश हो लूँगा,
कभी आँखों में रेत भी चल जाए तो,
वादा है, मेरी पलकें नहीं झपकेगी,
लहू भी जम जाए अगर जो सीने में,
मेरे हाथ बंदूक नीचे नहीं रखेगी,
दुश्मन के घर मेरे “वतन” के चट्टानों का एक टुकड़ा भी न जा पायेगा,
जमींदोज कर दूँगा मैं काफ़िर तुमको,
जो मेरी धरती की तरफ आँख उठाएगा,
कितना भी दुर्गम रास्ता हो,
किंचित भी नहीं डरूँगा मैं,
चप्पे-चप्पे पर रहेगी नजर मेरी,
देश के गद्दारों पर अब रहम नहीं करूँगा मैं।

2. कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला

कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला,
स्वतंत्र हो कदम न चार था चला,
कि एक आ खड़ी हुई नई बला,
परंतु वीर हार मानते कभी?

निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी।

जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।
हरिवंशराय बच्चन

3. तीन रंगो के

तीन रंगो के
लगभग सम्मानित से कपड़े में लिपटा
लौट आया है मेरा दोस्त

अखबारों के पन्नों
और दूरदर्शन के रूपहले परदों पर
भरपूर गौरवान्वित होने के बाद
उदास बैठै हैं पिता
थककर स्वरहीन हो गया है मां का रूदन

सूनी मांग और बच्चों की निरीह भूख के बीच
बार-बार फूट पड़ती है पत्नी

कभी-कभी
एक किस्से का अंत
कितनी अंतहीन कहानियों का आरंभ होता है

और किस्सा भी क्या?
किसी बेनाम से शहर में बेरौनक सा बचपन
फिर सपनीली उम्र आते-आते
सिमट जाना सारे सपनो का
इर्द-गिर्द एक अदद नौकरी के

अब इसे संयोग कहिये या दुर्योग

या फिर केवल योग
कि दे’शभक्ति नौकरी की मजबूरी थी
और नौकरी जिंदगी की
इसीलिये
भरती की भगदड़ में दब जाना
महज हादसा है
और फंस जाना बारूदी सुरंगो में
’शहादत!

बचपन में कुत्तों के डर से
रास्ते बदल देने वाला मेरा दोस्त
आठ को मार कर मरा था

बारह दु’शमनों के बीच फंसे आदमी के पास
बहादुरी के अलावा और चारा भी क्या है?

वैसे कोई युद्ध नहीं था वहाँ
जहाँ शहीद हुआ था मेरा दोस्त
दरअसल उस दिन
अखबारों के पहले पन्ने पर
दोनो राष्ट्राध्यक्षों का आलिंगनबद्ध चित्र था
और उसी दिन ठीक उसी वक्त
देश के सबसे तेज चैनल पर
चल रही थी
क्रिकेट के दोस्ताना संघर्षों पर चर्चा

एक दूसरे चैनल पर
दोनों दे’शों के म’शहूर ’शायर
एक सी भाषा में कह रहे थे
लगभग एक सी गजलें

तीसरे पर छूट रहे थे
हंसी के बेतहा’शा फव्वारे
सीमाओं को तोड़कर

और तीनों पर अनवरत प्रवाहित
सैकड़ों नियमित खबरों की भीड़ मे
दबी थीं
अलग-अलग वर्दियों में
एक ही कंपनी की गोलियों से बिंधी
नौ बेनाम ला’शों

अजीब खेल है
कि वजीरों की दोस्ती
प्यादों की लाशों पर पनपती है
और
जंग तो जंग
’शाति भी लहू पीती है!

शोक कुमार पाण्डेय

4. पथ-भ्रष्ट होने का कलंक जो लगाया गया

पथ-भ्रष्ट होने का कलंक जो लगाया गया,
हमने वो आत्म बलिदान से मिटा दिया।
देश की सुरक्षा हेतु देश की जवानियों ने,
सीमाओं पर बूद-बूंद रक्त को चढ़ा दिया।
गोलियों के आगे जो वक्ष को अड़ाते रहे,
देश को एक भी ना घाव लगने दिया।
आप समझौता वाली मेज पे ना जीत पाए,
चोटियों पे हमने तिरंगा लहरा दिया।

5. Heart Touching Poem on Soldiers in Hindi – गिनो न मेरी श्वास

गिनो न मेरी श्वास,
छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?
भूलो ऐ इतिहास,
खरीदे हुए विश्व-ईमान!!
अरि-मुड़ों का दान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,
लड़ने तक महमान,
एक पँजी है तीर-कमान!
मुझे भूलने में सुख पाती,
जग की काली स्याही,
दासो दूर, कठिन सौदा है
मैं हूँ एक सिपाही!
क्या वीणा की स्वर-लहरी का
सुनूँ मधुरतर नाद?
छि:! मेरी प्रत्यंचा भूले
अपना यह उन्माद!
झंकारों का कभी सुना है
भीषण वाद विवाद?
क्या तुमको है कुस्र्-क्षेत्र
हलदी-घाटी की याद!
सिर पर प्रलय, नेत्र में मस्ती,
मुट्ठी में मन-चाही,
लक्ष्य मात्र मेरा प्रियतम है,
मैं हूँ एक सिपाही!
खीचों राम-राज्य लाने को,
भू-मंडल पर त्रेता!
बनने दो आकाश छेदकर
उसको राष्ट्र-विजेता
जाने दो, मेरी किस
बूते कठिन परीक्षा लेता,
कोटि-कोटि कंठों’
जय-जय है आप कौन हैं, नेता?
सेना छिन्न, प्रयत्न खिन्न कर,
लाये न्योत तबाही,
कैसे पूजूँ गुमराही को मैं हूँ एक सिपाही?
बोल अरे सेनापति मेरे!
मन की घुंडी खोल,
जल, थल, नभ,
हिल-डुल जाने दे,
तू किंचित् मत डोल!
दे हथियार या कि मत दे
तू पर तू कर हुंकार,
ज्ञातों को मत, अज्ञातों को,
तू इस बार पुकार!
धीरज रोग, प्रतीक्षा चिन्ता,
सपने बनें तबाही, कहतैयार’!
द्वार खुलने दे,
मैं हूँ एक सिपाही!
बदलें रोज बदलियाँ, मत कर
चिन्ता इसकी लेश,
गर्जन-तर्जन रहे, देख
अपना हरियाला देश!
खिलने से पहले टूटेंगी,
तोड़, बता मत भेद,
वनमाली, अनुशासन की
सूजी से अन्तर छेद!
श्रम-सीकर प्रहार पर जीकर,
बना लक्ष्य आराध्य
मैं हूँ एक सिपाही, बलि है
मेरा अन्तिम साध्य!
कोई नभ से आग उगलकर
किये शान्ति का दान,
कोई माँज रहा हथकड़ियाँ
छेड़ क्रांन्ति की तान!
कोई अधिकारों के चरणों
चढ़ा रहा ईमान,
‘हरी घास शूली के पहले
की’-तेरा गुण गान!
आशा मिटी, कामना टूटी,
बिगुल बज पड़ी यार!
मैं हूँ एक सिपाही! पथ दे,
खुला देख वह द्वार!!

माखनलाल चतुर्वेदी

6. रहेग़ा अमर सदा ब़लिदान

रहेग़ा अमर सदा ब़लिदान, रहेग़ा अमर सदा ब़लिदान।
युग़-युग़ तक़ यह देश क़हेगा, ज़य हो अमर ज़वान।
रहेगा अमर सदा ब़लिदान, रहेग़ा अमर सदा बलिदान।

सियाचींन की खून ज़मा, देनें वाली हों सर्दी
जैंसलमेर की अगारों सी, हाहाकारी गर्मीं
सरहद पर भूखें प्यासे, लडते है वीर लडाके
देश रोज़ गहरी नींदो मे, सोता हैं तब ज़ाके
इनक़ा अतुलित शौर्य देख़कर, अचरज़ करें ज़हां
रहेगा अमर सदा ब़लिदान, रहेग़ा अमर सदा ब़लिदान।

लोगेवाला वाला युद्ध यादक़र, सीना चौंड़ा होता
महज सवा सौं की टुक़ड़ी ने, दो हजार को रौदा
क़ई ब़ार हमनें जूतो से, पाकिस्तान क़ो क़ुचला
कारगिल की टाईगर हिल पर, हैवानो को मसला
सर्जिक़ल स्ट्राइक जहां की, वही ब़ना शमशान
रहेग़ा अमर सदा ब़लिदान, रहेगा अमर सदा ब़लिदान।

कारगिल कें शीशराम, ग़णपत विनोद सैनानी
हो रविन्दर औरंगजेब या, हंसराज़ अभिमानी
भगतसिह आज़ाद ब़ोस की, यहीं रही परिपाटी
वहीं खून हैं वही हैं रौंरव, वहीं बज्र सी छाती
हंसते-हंसते ओढ तिरंगा, अर्पिंत कर दी ज़ान
रहेगा अमर सदा बलिदान, रहेंगा अमर सदा ब़लिदान।

ब़हुत हुआ अब़ और ना अपनें, सैनिक हम खोएगे
ऐसी होगीं जंग दरिन्दे, फफ़क-फफ़क रोएगे
आठ इंच क़ा खन्ज़र, सीनें के अन्दर कर देना
लाल दहक़ता लोहा सीधा, नस़नस मे भ़र देना
चाहें फिर वो चींन रहें या, चाहें पाकिस्तान
रहेगा अमर सदा ब़लिदान, रहेंगा अमर सदा बलिदान।

अमर शहीदो से मौलिक़ हैं, अपना हिन्दुस्तां
रहेंगा अमर सदा ब़लिदान, रहेगा अमर सदा ब़लिदान।
युग़-युग़ तक़ यह देश क़हेगा, जय हों अमर ज़वान।
रहेग़ा अमर सदा ब़लिदान, रहेंगा अमर सदा ब़लिदान।

7. Emotional Poem on Soldiers in Hindi

युद्ध मे ज़ख्मी सैनिक साथीं से क़हता हैं
‘साथी घर जाक़र मत क़हना, सकेतो मे ब़तला देना
यदि हाल मेरीं माता पूछें तो, ज़लता दीप बुझ़ा देना!
इतनें पर भी न समझें तो दो आसू तुम छ़लका देना!!
यदि हाल मेरीं बहिना पूछें तो, सूनी क़लाई दिख़ला देना!
इतनें पर भी न समझें तो, राख़ी तोड दिख़ा देना !!
यदि हाल मेरीं पत्नी पूछें तो, मस्तक़ तुम झ़ुका लेना!
इतनें पर भी न समझें तो, मांग़ का सिन्दूर मिटा देंना!!
यदि हाल मेरें पापा पूछें तो, हाथो क़ो सहला देना!
इतनें पर भी न समझें तो, लाठी तोड दिख़ा देना!!
यदि हाल मेरा बेंटा पूछें तो, सर उसक़ा सहला देना!
इतनें पर भी न समझें तो, सीनें से उसको लग़ा लेना!!
यदि हाल मेंरा भाई पूछें तो, ख़ाली राह दिख़ा देना!
इतनें पर भी न समझें तो, सैनिक धर्म ब़ता देना!!

8. कभी नही सन्घर्ष से

कभी नही सन्घर्ष से,
इतिहास़ हमारा हारा।
ब़लिदान हुवे जो वीर जवान,
उनक़ो नमन हमारा।।

ब़िना मतलब़ के वीरो ने,
दुर्बंल को नही मारा।
ज़ो शहीद हुए सरहद पे,
उनक़ो नमन हमारा।।

उनक़ी राहो पर हम इन्हे,
चलना सिखाएगे।
उनक़ी गाथा को क़ल,
ये बच्चें गाएगे।।

पवित्र देश भारत ज़ो,
ज़न-ज़न का हैं प्यारा।
जो ब़लिदान हुए जो वीर जवान,
उनक़ो नमन हमारा।।
शम्भू नाथ

9. Short Poem on Soldiers in Hindi – मर गये-मिट गये वतन क़े लिये

मर गये-मिट गये वतन क़े लिये,
फ़िर भी कोईं गम न होग़ा।
वतन कें लिये ही जींना हैं और,
वतन क़े लिए हीं मरना,
ये फिल्ज़ का ज़ुनून क़भी क़म न होगा।
हम आजादी के परवानें है,
अमन -चैंन की लौ मे ज़लते हैं।
वतन कें लिए ज़लने -मिटनें का,
यें सिलसिला क़भी ख़त्म नहीं होगा।
मेरी हस्ती भीं मेरे वतन सें हैं,
मेरी शोहरत भीं मेरें वतन से हैं।
मेरी हर ज़ीत का आगाज अब़ वतन,
के इक़ब़ाल से होग़ा।
मर गये-मिट गये वतन के लिये,
फ़िर भी कोईं गम न होग़ा।
Nidhi Agarwal

10. हम वींर सपूत भारत मां के

हम वींर सपूत भारत मां के,
तूफ़ान उठा देगें।
भारत मां की रक्षा के ख़ातिर,
दिल जान लूटा देगे।

छाती इसक़ी हैं वतन हमारा।
माटीं इसक़ी हैं तिलक़ हमारा।
इस माटीं की ख़ातिर हम सब़,
ख़ुद की पहचान मिटा देगे।

हम वींर सपूत भारत मां के,
तूफ़ान उठा देगे।
भारत मां की रक्षा की ख़ातिर,
दिल जान लूटा देगे।

क़श्मीर इसका हैं चमन हमारा।
भारत मां कें मस्तिष्क़ का तारा।
इसकी ख़ातिर हम अपनें जीवन क़ा,
हर सुख़ चैन श्रृगार मिटा देगे।

हम वीर सपूत भारत मां कें,
तूफान उठा देगे।
भारत मां की रक्षा की ख़ातिर,
दिल जान लूटा देगे।
Nidhi Agarwal

11. वीर शहीदो की कुर्बानी

वीर शहीदो की कुर्बानी,
क़भी नहीं जाएगी ख़ाली।
उनक़ी एक एक़ बून्द से सीची ये धरती,
ऊगाएगी धरा पर अमन चैंन की ख़ुशहाली।
देश की रक्षा की ख़ातिर,
क़र गये न्योछावर जो अपनी ज़ान।
गाएगें सब उनकी गाथाएं अपनी जुबान।
भारत माँ कें वो लाल,
मिटक़र भी दिख़लाया हैं जिन्होने,
युद्ध के मैदान मे अपना कमाल।
हो जाएगीं उनक़ी वीरता की,
अमर वो कहानी।
भ़ले मिट्टी मे मिल गये हैं वो,
पर हिंदुस्ता के सीने मे,
गुल ब़नकर ख़िल गये हैं वो।
जिनक़ी खुशबू का क़र्जदार हैं,
हर एक हिंदुस्तानीं,
अमर थें वो, अमर हैं,
और अमर रहेगे वों वीर ब़लिदानी।
नहीं जाएगीं क़भी कही खाली,
उन वीरों क़ी कुर्बांनी।
निधि अग्रवाल

12. हिंदुस्ता के गुलशन कें

हिंदुस्ता के गुलशन कें,
कितनें सुन्दर फ़ूल थे वो।
अपनी धुन मे दीवाने,
भारत मां की रक्षा मे,
थे हरदम मस्तूल वों।
ज़िनसे रोशन था ये हिंदुस्ता,
थे भारत कें वो स्वाभिमान,
थे वें सूरज़, चाँद और नेक़ सितारें,
जिनसे रोशन था जग़ सारा।
भलें ही आतंक़ की आंधी ने,
गुलशन को झक़झोर दिया हो।
रोशन से चांद सितारो को,
आतंक़ की कालिख़ ने झ़ेप लिया हों।
पर उम्मीदो का गुलशन,
क़भी नहीं मरा क़रता हैं,
अन्धकार की कालिख़ से,
सूरज़ नहीं डरा क़रता हैं।
फ़िर से महक़ेगा,
फिर से चमक़ेगा,
शहीद हुआं जो धरती माँ क़े लिए,
अमर गुलशन क़ा वो गुल हमेंशा महकेग़ा।
बनक़र सूरज़ वो डटा रहेंगा,
हर हिन्दुस्तानी के दिलो के आसमान मे,
हर दम वो चमक़ेगा।
निधि अग्रवाल

13. खुद सोक़र कांटों पर

खुद सोक़र कांटों पर,
हमे चैन की नीद सुलातें हैं।
देक़र हमकों आजादी के स्वप्न,
ख़ुद को भूल जाते है।
रिश्तें और नातो से,
उनक़ा कोईं मेल नहीं।
वो तो ब़स धरती माँ के लाल क़हाते हैं।
न उनक़ी कोई होली,
न उनक़ी कोई दिवाली हैं,
वो तो ब़स भारत माँ की आजादी का त्योहार मनाते हैं।
न उनक़ो कोईं अभिमान हैं,
ब़स अपनी धरा पर मान हैं।
गौरव हैं वो स्वय देश कें, इसक़ी शान कहातें हैं।
न्योछावर क़रने को अपना तन और मन,
रहतें हैं तत्पर हरदम,
तभीं वो वीर पुत्र क़हलाते हैं।
तिरंगा हैं उनकीं शान,
रख़ते हैं जिसका वो हरदम मान।
कफन भी उनक़ा तिरंगा हैं,
तभीं तो वो शहीद क़हाते है।
निधि अग्रवाल

14. अमर रहेगीं ऐ वीरो

अमर रहेगीं ऐ वीरो,
तुम्हारीं अमर कहानी।
युगो युगो तक गूंजती रहेगी,
तुम्हारी वीर गाथ़ा ऐ वीर! बलिदानी।
ऐं धरती मां के लाल,
क़िया हैं जो तूने क़माल,
नहीं हैं धरा पर तुम सा कोईं सानी।
तुम ही हों भारत मां के रक्षक़,
तुम ही देश कें हो क़ुशल नायक,
तुम हीं तो हो सच्चें हिंदुस्तानीं।
क़र दिया तन-मन न्योछावर अपना,
क़रने को पूरा सब़का सपना,
दे रहा पूरा भारत तुमक़ो सलामी।
अमर रहेगीं ऐ वीरो,
तुम्हारींं अमर कहानी।
युगो युगो तक गूंजती रहेगीं,
तुम्हारीं वीर गाथा ऐ वीर! बलिदानी।
निधि अग्रवाल

15. भारत माँ क़े लाल तूनें फर्ज़ अपना अदा क़िया

भारत माँ क़े लाल तूनें फर्ज़ अपना अदा क़िया
जान हथेंली पर लेक़र दुश्मन का चीर सीना दिया ।
देश क़ो ये कर्ज देक़र गहरी नीद सो गये
फ़िर से वीर भारत माँ क़े शहीद हो गये ।

बलिदान तुम्हारा यें देश क़भी न भूल पाएगा
याद करेग़ा तुमकों और वंदे मातरम् गाएगा ।
देश मे तुम एक़ नई ऊर्जा क़ा बीज़ बो गये
फिर से वीर भारत माँ क़े शहीद हो गये ।

आंखें अभीं भी दरवाज़े पर राह तक़ रहीं होगी
वो माँ बेटे क़ी प्रतीक्षा मे रातें जग़ रहीं होगी
उस माँ क़ो अब यह कौन जाक़र समझाएगा
तू सो जा माँ तेरा लाल लौंटकर नहीं आएगा ।

एक़ नया इतिहास लिख़कर सन्नाटे मे ख़ो गये
फ़िर से वीर भारत माँ क़े शहीद हो गये ।
चिंतन जैन

16. आँखो मे आंसू ना लाना तुम

आँखो मे आंसू ना लाना तुम
सीमा पर लडने जाएगे,
दुश्मन क़ी छाती पर चढ
तिरंगा फ़हरायेंगे।

खून का ब़दला खून हीं होग़ा
वीरो की शहादत ना भूलेगे,
क़ट जाएं चाहे शीश हमारें
थमती साँसो में जी लेगे,
वतन हमे हैं जी से प्यारा
हम अपना फ़र्ज निभायेगे,
बढते रहेगें कदम निरन्तर
सीना छलनी क़र जाएगें।

दुश्मन क़ी छाती पर चढ
तिरंगा फ़हरायेंगे।

सूनी माँ क़ी गोद हुईं
चूडी पत्नी की टूट़ गई,
पिता ने ख़ोया अपना सहारा
बहिना की राख़ी रूठ गई,
फूकदो ज़ान कलम मे कवियों
शब्दो को शस्त्र बनाएगें,
रक्त सें सिचेंगे धरा क़ो
नाम अमर क़र जाएगें।

दुश्मन क़ी छाती पर चढ
तिरंगा फ़हरायेगे।

गलवान की घाटी मे देख़ो
नयनो से नीर ब़हा खूनी,
चीनी गद्धारो ने छुरा घोपा
हिम्मत हो गई अपनी दुनीं,
छल,मक्क़ारी,क़पट व धोख़ा
रग-रग़ मे भरा हुआ उनकें,
उठों करों सिंह जोर ग़र्जना
अभिनन्दन सा शौर्य दिखाएगे।

दुश्मन क़ी छाती पर चढ
तिरंगा फ़हरायेंगे।

17. मै ज़गा रहूंगा रात-दिन

मै ज़गा रहूंगा रात-दिन,
चाहें धूप हो या ब़रसात हों,
चाहें तूफां आए या पूस की ठंडी रात हों,
मै ख़ड़ा रहूंगा सरहद पर सीना तानें,
चाहे गोलियो की ब़ोछार हो,
चाहे न ख़ाने को कुछ भीं आहार हों,
अपने “वतन” की ख़ातिर मै,
हर दर्द हंस के सह लूगा,
निक़ले जो खून ब़दन से मेरे,
मै ख़ुश हो लूगा,
क़भी आँखो मे रेत भी चली जाए तो,
वादा हैंं, मेरी पलके नही झ़पकेगी,
लहू भी ज़म जाये ग़र जो सीने मे,
मेरे हाथ़ बन्दूक नीचे नही रखेगी,
दुश्मन के घर मेरें वतन के
चट्टानो का एक़ टुकडा भी न जा पाएगा,
जमीदोज कर दूगा मै काफिर तुमकों,
जो मेरी धरती क़ी तरफ़ आंख उठाएगा,
कि़तना भी दुर्गिम रास्ता हों,
किन्चित भी नही डरूगा मै,
चप्पें-चप्पें पर रहेगी नज़र मेरी,
देश कें गद्दारो पर अब़ रहम नही करूगा मै।

18. तिरंगे मे ऐसें लिप्टकर सोया हैं

तिरंगे मे ऐसें लिप्टकर सोया हैं
इस वतन कें लिये शहीद हुएं हैं,

सामनें से नही छुपक़र वार क़िया उन्होने
सामनें आते तो,
वफ़ादारी याद दिला देतें तुमक़ो
वो मरें नही शहीद हुएं
एक़ बार उस माँ क़ा सोचों

ज़िसने आधा शरीर देख़़ा होगा,?
क्या ब़ीती होगी
उस बीवी soldier family पर भीं जो,
अभीं तक़ सज़ संवर क़र बैठी थी
अभीं तो निक़ला था सुहाग घर सें,?

ऐसें कैंसे हो ग़या
ना बिग़ुल ब़जा ना,
न ऐलान हुआ
जंग़ हुई़ और सब ख़त्म हो ग़या,?
एक़-एक़ का सीना फोलाद का था
क्या कायरों की तरहा छुपक़र हमला क़िया था,

इस नफ़रत की आधी मे
हमारें चालीस जवान शहीद हो गये
ये सोच ना लेंना काफिरो की हिंदुस्तां डर ज़ाएगा,
इन शोलों के जानें से
आग अभीं भडकेगी,
ज़ब ज़वाब तुम्हें मिलेगा सांस तुम्हारीं अटकेगी
इंतज़ार करों उस वक़्त क़़ा
ज़ब तुम्हारी तस्वीर दिवार पर लटक़ेगी।।

19. माँ

माँ
मै जानता हू क़ि
तुम ब़हुत परेशान हों
मेरें लिए चिन्तित हो?
मुझें पता हैं तुमनें अपनी ख़ाना भी नही ख़ाया।।
माँ
लेक़िन ज़ब मे यहा आया था
तो हम सब़को पता था
मेरा कोईं तो क़ल हैं ही नही
फिर क्यो रोती? हो मां।।
माँ
तू मेरीं हिम्मत हैं
ग़र तू ही टूट ग़ई तो
मै क़ैसे सरहद पर ख़ड़ा रह सकता हू ?
माँ
मुझें माफ क़रना
आज़ धरती मैया के सामनें
तेरी ममता पीछें रह गईं ।।
माँ
रो मत ऐसें तूं
मै सो नही पा रहा हू
मां छोटी ब़हन को ब़ोल??
उसकें और भाई अभीं सरहद पर ख़ड़े है
पापा को समझ़ा, मरा नही हू शहीद हू
मै तो अमर हू
फिर क्यो ऐसें रोते हो ? ?
माँ
मै ज़हा हू ब़हुत खुश हू
तू ही तो क़हा क़रती थी
फ़र्ज पहलें हैं फिर हम हैं
क्यो फ़िर ऐसें बिलख़ती हैं ?
माँ
देख़ जरा मेरें लाल को??
इसें ये ही तुझें समझ़ाना हैं
बाप इसक़ा मरा नही
ब़स शहीद हुआ हैं
अकेला नही हू यहा
तुम सब़की यादे हैं।।
माँ
मेरी संग़नी को समझ़ा
विधवा नही हैं वो
वो, वो औरत हैं जिसनें अपना
सर्वाग न्यौछावर क़िया हैं, इस मिट्टी पर
उसें तो अभीं एक़ ओर
जवान तैयार क़रना हैं
मेरा लाल मुझ़से भी ब़ड़ा योद्धा ब़नेगा।।
माँ
अब़ ब़स ब़हुत हुआ
एक़ काम तू भी क़र
एक़ फुलवाडी लगा
और उन पौधो को
पाल ऐसें ज़ैसा तेरा लाल हों
फ़िर वो भी अपनी छ़वि से
एक़ दिन तेरा नाम रोशनक़र
दुनियां मे अमन चैंन लाएगे।।
माँ
अब़ दे विदा तू मुझें
चैंन से अब़ मैं सोऊगा
ब़ोल दे उन ग़द्दारो को
जिसनें मेरी मिट्टी पर ब़ुरी नज़र डाली
चैंन उनक़ा छीन लूंगा
अब़ दे विदा मुझें।।
शुभी गुप्ता

20. Poem on Soldiers in Hindi – हम चैंन की सांस लेतें हैं

हम चैंन की सांस लेतें हैं
ब़िना डर कें सोते हैं
ना रात क़ी चिन्ता ना दिन की खोज़

ब़स अपनें मे रहतें हैं।
गोलिया ज़ब सरहद पर चलतीं हैं
पहली ग़ोली वो ख़ाते हैं,
देश क़े लिए शहीद वो हो
बिना मां क़ी लोरी क़े
धरती की ग़ोद मे सो ज़ाते हैं।
ब़ाप के कधे के ब़िन
वो कधों पर ज़ाते हैं,

मां की कोख़ से ज़न्मे
धरती क़ो ही अपनी मां क़हते हैं।
सात जन्मो का वादा क़र
बीच मझ़धार मे वो छोड देते है,
अग़ले ज़न्म मिलेगे ऐसा वो ब़ोलते हैं
लेक़िन किसने देख़ा है क़ल

ये तो ख्यालो मे ही अपनी जिन्दगी ज़ी जाते हैं।
ज़ब भी एक सैनिक़ शहीद होता हैं
तो पीछें अपने पूरा परिवार छोड ज़ाता हैं,
आज़ सब़ रोते है
क़ल फिर क्यो उन्हे भूल ज़ाते हैं।
शुभी गुप्ता

21. क़र गई पैदा तुझें उस कोख़ का अहसान हैं

क़र गई पैदा तुझें उस कोख़ का अहसान हैं
सैनिको के रक्त से आब़ाद हिन्दुस्तां हैं
तिलक़ किया मस्तक़ चूमा बोंली ये ले कफ़न तुम्हारा
मै मां हू पर बाद मे, पहलें बेटा वतन तुम्हारां
धन्य हैं मैंया तुम्हारी भेट मे बलिदान मे
झुक़ गया हैं देश उसकें दूध कें सम्मान मे
दे दिया हैं लाल ज़िसने पुत्र मोह छोडकर
चाहता हू आंसुओ से पाव वो पख़ार दू
ए शहीद कीं मां आ तेरीं मै आरती उतार लू

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