गरीबी पर शायरी, Garib Shayari in Hindi

Garib Shayari in Hindi : दोस्तों आज इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन और लोकप्रिय गरीबी पर शायरी का संग्रह दिया गया हैं. गरीबी एक अभिशाप हैं. इससे बड़ा कोई दुःख इस दुनिया में नहीं हैं. गरीबी वह चीज हैं जो इन्सान को बुरे काम को करने पर मजबूर कर देती हैं.

अब आइए यहाँ पर कुछ Garib Shayari in Hindi में दी गई हैं. इसको पढते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी गरीबी पर शायरी आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

Garib Shayari in Hindi

गरीबी पर शायरी, Garib Shayari in Hindi

(1) सर्दी, गर्मी, बरसात और तूफ़ान मैं झेलता हूँ
गरीब हूँ… खुश होकर जिंदगी का हर खेल खेलता हूँ.

(2) अजीब मिठास है मुझ गरीब
के खून में भी,
जिसे भी मौका मिलता है
वो पीता जरुर है।।

(3) सो गए बच्चे गरीब के यह सुनकर
ख्वाब में फरिश्ते आते हैं रोटी लेकर।।

(4) टूटी झोपड़ी में अपना
जीवन यापन करता है,
गरीब जो शहर में अमीरो
के ऊंचे मकान बनाता है।।

(5) मैं कड़ी धूप में जलता हूँ
इस यकीन के साथ,
मैं जलुँगा तो मेरे घर में उजाले होगे।।

(6) अक्सर देखा हैं हमने
जो इंसान जेब से गरीब होता हैं
वो दिल का बड़ा अमीर होता हैं।।

(7) जीना तो सिर्फ अमीरों के
नसीब में होता हैं,
गरीब तो बस मरने से पहले
हजारों बार मरता हैं।

(8) छोड़ दिया लोगों ने मुझे गले लगाना
गरीब से सब दूर का रिश्ता चाहते हैं।।

(9) बहुत जल्दी सीख लेता हूँ
जिंदगी का सबक,
गरीब बच्चा हूँ बात-बात पर
जिद नहीं करता।।

(10) यहाँ गरीब को मरने की जल्दी यूँ भी है,
कि कहीं कफ़न महंगा ना हो जाए।।

गरीबी पर शायरी

(11) मजबूरियाँ हावी हो जाएँ ये जरूरी तो नहीं,
थोडे़ बहुत शौक तो गरीबी भी रखती है।

(12) बात मरने की भी हो तो
कोई तौर नहीं देखता…
गरीब, गरीबी के सिवा
कोई दौर नहीं देखता।

(13) गरीबी का आलम कुछ इस कदर छाया है,
आज अपना ही दूर होता नजर आया है।।

(14) किस्मत को खराब बोलने वालों
कभी किसी गरीब के पास
बैठकर पूछना जिंदगी क्या है।।

(15) गरीबी का एहसास जब दिल में
उतर जाता है,
गरीब का बच्चा जिद करना
भी भूल जाता है।।

(16) पेट की भूख में जिंदगी के हर एक
रंग दिखा दिया,
जो अपना बोझ उठा ना पाए पेट की
भूख ने पत्थर उठवा दिया।।

(17) हमने कुछ ऐसे भी गरीब देखे है,
जिनके पास पैसे के अलावा
कुछ भी नहीं।।

(18) सुक्र है की मौत सबको आती है,
वरना अमरी इस बात का भी
मजाक उड़ाते कि गरीब था
इसलिए मर गया।।

(19) तहजीब की मिसाल गरीबों के घर पे है,
दुपट्टा फटा हुआ है मगर उनके सर पे है।।

(20) गरीब की थाली में पुलाव आ गया हैं,
लगता हैं शहर मे चुनाव आ गया हैं।।

Amir Garib Shayari

(21) एै मौत ज़रा जल्दी आना
गरीब के घर…कफ़न का खर्चा
दवाओं में निकल जाता है।

(22) गरीबों अपनों से दूर जाना पड़ता है,
अपने परिवार का पेट भरने के लिए।।

(23) ऐ सियासत तूने भी इस दौर में
कमाल कर दिया,
गरीबों को गरीब अमीरों को
माला-माल कर दिया।।

(24) मैं क्या महोब्बत करूं किसी से,
मैं तो गरीब हूँ लोग अक्सर बिकते हैं,
और खरीदना मेरे बस में नहीं।।

(25) ठहर जाओ भीड़ बहुत है,
तुम गरीब हो
कुचल दिए जाओगे।।

(26) राहों में कांटे थे फिर भी वो चलना सीख गया,
वो गरीब का बच्चा था हर दर्द में जीना सीख गया।

(27) साथ सभी ने छोड़ दिया,
लेकिन ऐ-गरीबी,
तू इतनी वफ़ादार कैसे निकली।

(28) घर में चुल्हा जल सकें इसलिए कड़ी धूप में जलते देखा है,
हाँ मैंने ग़रीब की साँसों को भी गुब्बारों में बिक़ते देखा है।

(29) गरीबी की भी क्या खूब हँसी उड़ायी जाती है,
एक रोटी देकर 100 तस्वीर खिंचवाई जाती है।

(30) थोड़े से लिबास में ख़ुश रहने का हुनर रखते हैं,
हम गरीब हैं साहब,
अलमारी में तो खुद को कैद करते हैं।

Garib Shayari in Hindi

(31) खुले आसमां के नीचे सोकर भी अच्छे सपने पा लेते है,
हम गरीब है साहेब थोड़े सब्जी में भी 4 रोटी खा लेते है।

(32) कतार बड़ी लम्बी थी,
के सुबह से रात हो गयी,
ये दो वक़्त की रोटी आज फिर मेरा अधूरा ख्वाब हो गयी।

(33) यूँ गरीब कहकर खुद की तौहीन ना कर,
ए बंदे गरीब तो वो लोग है जिनके पास ईमान नहीं है।

(34) मैं कई चूल्हे की आग से भूखा उठा हूँ,
ऐ रोटी अपना पता बता,
तू जहाँ बर्बाद होती हैं।

(35) ठहर जाओ भीड़ बहुत है,
तुम गरीब हो
कुचल दिए जाओगे।

(36) मेरे हिस्से की रोटी सीधा मुझे दे दे ऐ खुदा,
तेरे बंदे तो बड़ा ज़लील करके देते हैं।

(37) ग़रीब सियासत का सबसे पसंदीदा खिलौना है,
उसे हर बार मुद्दा बनाया जाता है हुकूमत के लिए।

(38) खाली पेट सोने का दर्द क्या होता मुझे नही पता,
ना जाने जूठन खा के वो बच्चे कैसे बड़े हो जाते।

(39) कभी निराशा कभी प्यास है कभी भूख उपवास,
कुछ सपनें भी फुटपाथों पे पलते लेकर आस।

(40) गरीबी लड़तीं रही रात भर सर्द हवाओं से,
अमीरी बोली वाह क्या मौसम आया है।

(41) बिना किसी गाने के
रेल के इंजन की धुन पर नाचते हैं,
पटरी किनारे बस्ती में बच्चे
अब भी मुस्कराना जानते हैं।

अमीरी और गरीबी पर शायरी

(42) नये कपड़े, मिठाईयाँ गरीब कहाँ लेते है,
तालाब में चाँद देखकर ईद मना लेते है।

(43) ये गंदगी तो महल वालों ने फैलाई है साहब,
वरना गरीब तो सड़कों से थैलीयाँ तक उठा लेते हैं

(44) भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों पर
गरीबी कान छिदवाती है तिनके डाल देती है

(45) वो जिनके हाथ में हर वक्त छाले रहते हैं,
आबाद उन्हीं के दम पर महल वाले रहते हैं

(46) कभी आँसू तो कभी खुशी बेचीं
हम गरीबों ने बेकसी बेची
चंद सांसे खरीदने के लिए
रोज़ थोड़ी सी जिंदगी बेचीं

(47) मरहम लगा सको तो किसी गरीब के जख्मों पर लगा देना
हकीम बहुत हैं बाजार में अमीरों के इलाज खातिर

(48) वो राम की खिचड़ी भी खाता है,
रहीम की खीर भी खाता है
वो भूखा है जनाब उसे कहाँ मजहब समझ आता है

(49) गरीब नहीं जानता क्या है मज़हब उसका
जो बुझाए पेट की आग वही है रब उसका

(50) छीन लेता है हर चीज़ मुझसे ऐ खुदा
क्या तू मुझसे भी ज्यादा गरीब है

(51) अब मैं हर मौसम में खुद को ढाल लेता हूँ,
छोटू हूँ… पर अब मैं बड़ो का पेट पाल लेता हूँ.

(52) जनाजा बहुत भारी था उस गरीब का,
शायद सारे अरमान साथ लिए जा रहा था.

(53) यूँ ना झाँका करो किसी गरीब के दिल में,
वहाँ हसरतें बेलिबास रहा करती है.

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