चन्द की प्रसिद्ध कविताएँ, Chand Poem in Hindi

Chand Poem in Hindi – यहाँ पर आपको Chand Famous Poems in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. चन्द, गुरू गोबिन्द सिंह जी के दरबारी कवि थे।

आइए अब यहाँ पर Chand ki Kavita in Hindi में दिए गए हैं. इसे पढ़ते हैं.

चन्द की प्रसिद्ध कविताएँ, Chand Poem in Hindi

छंद

१.

‘चन्द’ प्यारो मितु, कहो क्यों पाईऐ
करहु सेवा तिंह नित, नहिं चितह भुलाईऐ
गुनि जन कहत पुकार, भलो या जीवनो
हो बिन प्रीतम केह काम, अमृत को पीवनो ।

२.

अंतरि बाहरि ‘चन्द’ एक सा होईऐ
मोती पाथर एक, ठउर नहिं पाईऐ
हिये खोटु तन पहर, लिबास दिखाईऐ
हो परगटु होइ निदान, अंत पछुताईऐ ।

३.

जब ते लागो नेहु, ‘चन्द’ बदनाम है
आंसू नैन चुचात, आठु ही जाम है
जगत माहिं जे बुधिवान सभ कहत है
हो नेही सकले संग नाम ते रहत है ।

४.

सभ गुण जो प्रवीण, ‘चन्द’ गुनवंतु है
बिन गुण सब अधीन, सु मूरखु जंतु है
सभहु नरन मैं ताकु, होइ जो या समैं
हो हुनरमन्द जो होइ, समो सुख सिउं रमैं।

५.

‘चन्द’ गरज़ बिन को संसार न देखीऐ
बेगरज़ी अमोल रत्न चख पेखीऐ
रंक राउ जो दीसत, है संसार मैं
हो नाहिं गरज़ बिन कोऊ, कीयो विचार मैं ।

६.

‘चन्द’ राग धुनि दूती प्रेमी की कहैं
नेमी धुन सुन थकत, अचंभौ होइ रहै
बजत प्रेम धुनि तार, अक्ल कउ लूट है
हो श्रवण मध्य होइ पैठत, कबहू न छूट है ।

७.

‘चन्द’ प्रेम की बात, न काहूं पै कहो
अतलस खर पहराय, कउन खूबी चहों
बुधिवान तिंह जान, भेद निज राखई
हो देवै सीस उतारि, सिररु नहिं भाखई ।

८.

‘चन्द’ माल अर मुल्क, जाहिं प्रभु दीयो है
अपनो दीयो बहुत, ताहिं प्रभु लीयो है
रोस करत अज्ञानी, मन का अंध है
हो अमर नाम गोबिन्द, अवरु सब धन्द है ।

९.

‘चन्द’ जगत मो काम सभन को कीजीऐ
कैसे अम्बर बोइ, खसन सिउं लीजीऐ
सोउ मर्द जु करै मर्द के काम कउ
हो तन मन धन सब सउपे, अपने राम कउ ।

१०.

‘चन्द’ प्यारनि संगि प्यार बढाईऐ
सदा होत आनन्द राम गुण गाईऐ
ऐसो सुख दुनिया मैं, अवर न पेखीऐ
हो मिलि प्यारन कै संगि, रंग जो देखीऐ ।

११.

‘चन्द’ नसीहत सुनीऐ, करनैहार की
दीन होइ ख़ुश राखो, खातर यार की
मारत पाय कुहाड़ा, सख्ती जो करै
हो नरमायी की बात, सभन तन संचरै ।

१२.

‘चन्द’ कहत है काम चेष्टा अति बुरी
शहत दिखायी देत, हलाहल की छुरी
जिंह नर अंतरि काम चेष्टा अति घनी
हो हुइ है अंत खुआरु, बडो जो होइ धनी ।

१३.

‘चन्द’ प्यारे मिलत होत आनन्द जी
सभ काहूं को मीठो, शर्बत कन्द जी
सदा प्यारे संगि, विछोड़ा नाहिं जिस
हो मिले मीत सिउं मीत, एह सुख कहे किस ।

१४.

‘चन्द’ कहत है ठउर, नहीं है चित जिंह
निस दिन आठहु जाम, भ्रमत है चित जिंह
जो कछु साहब भावै, सोई करत है
हो लाख करोड़ी जत्न, किए नहीं टरत है ।

पंजाबी कविता-पदे

१.

आपे मेलि लई जी सुन्दर शोभावंती नारी
करि क्रिपा सतिगुरू मनायआ लागी शहु नूं पयारी
कूड़ा कूड़ ग्या सभ तन ते, फूल रही फुलवारी
अंतरि साच निवास किया, गुर सतिगुर नदरि नेहारी
शबद गुरू के कंचन काया, हउमै दुबिधा मारी
गुन कामन करि कंतु रीझाया, सेवा सुरति बीचारी
दया धारि गुर खोल्ह दिखाई, सबद सुरति की बारी
गयान राउ नित भोग कमावै, कायआ सेज सवारी
भटक मिटी गुरसबदी लागे, लीनो आपि उबारी
दास चन्द गुर गोबिन्द पाया, चिंता सगलि बिसारी

२.

सज्जन ! झात झरोखे पाईं
मैं बन्दी बिन दाम तुसाडी, तू सज्जन तू साईं
दर तेरे वल झाक असाडी, भोरी दरसु दिखाईं
तू दिल महरम सभ किछ जाणैं, कैनूं कूक सुणाईं
तिन्हां नालि बराबरि केही, जो तेरे मन भाईं
थीवां रेनु तिना बलेहारी, निव निव लागां पाईं
जहं जहं देखां सभ ठां तूं हैं, तूं रव्या सभ ठाईं
भोरी नदरि नेहाल प्यारे, सिकदी नूं गलि लाईं
पल पल देखां मुख तुसाडा, ‘चन्द’ चकोर न्याईं
गोबिन्द ! दया करहु जन ऊपरि, वारि वारि बल जाईं ।

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