होमवर्क पर कविता, Poem on Home work in Hindi

Poem on Home work in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ होमवर्क पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. हमें उम्मीद हैं. की यह सभी कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

होमवर्क पर कविता, Poem on Home work in Hindi

Poem on Home work in Hindi

1. होमवर्क का भूत

टीचर बार बार समझाती
होमवर्क करना है
मम्मी पल पल याद दिलाती
होमवर्क करना है

होमवर्क के मारे मैं तो
खेल नहीं पाता हूँ
इसके कारण ही मैं टीवी
देख नहीं पाता हूँ

होमवर्क है बड़ा जरूरी
यह तो मुझे पता है
लेकिन खेल मनोरंजन की
भी तो आवश्यकता है

होमवर्क भी कर लूँगा मैं
मुझको नहीं डराओ
भूत बनकर इसका मेरे
सर पर नहीं चढाओं .

2. Hindi Poem On Home work

चला जा रहा था मैं गुमसुम कांधे लटकाए बस्ते को
भारी मन से चिंतातुर हो उस दिन विद्यालय अपने को

मैडम डांटेगी ना लाया होमवर्क था जो लिखने को
क्या करता मैं रहा खेलता जब आया था घर अपने को

कह दूंगा कल बुखार आया पहुंचा जब मैं घर अपने को
लिख ना पाया होमवर्क को ले आया वैसा बस्ते को
यह तो झूठ बोलना होगा अपनी मैडम से अपने को
सदा चाहती मुझको कितना कहती झूठ नहीं कहने को

आज मांग लूंगा मैं माफी और लौट के घर अपने को
भिड़ जाऊंगा तुरंत लिखने मन लगाऊंगा पढ़ने को

मैडम खुश बहु्त तब होगी शाबासी देगी पढ़ने को
और चूक मैं अब न करूंगा सावधान रखकर अपने को

गया दूसरे दिन विद्यालय पहुंचा मैडम से मिलने को
मैडम खुश थी सत्य कथन पर चूम लिया मेरे चेहरे को।

3. Short Poem On Home work In Hindi Language

एक बच्ची स्कूल नहीं जाती, बकरी चराती है।
वह लकड़ियाँ बटोरकर घर लाती है,
फिर माँ के साथ भात पकाती है।

एक बच्ची किताब का बोझ लादे स्कूल जाती है,
शाम को थकी मांदी घर आती है।
वह स्कूल से मिला होमवर्क, माँ-बाप से करवाती है।

बोझ किताब का हो या लकड़ी का दोनों बच्चियाँ ढोती हैं,
लेकिन लकड़ी से चूल्हा जलेगा, तब पेट भरेगा,
लकड़ी लाने वाली बच्ची, यह जानती है।
वह लकड़ी की उपयोगिता पहचानती है।
किताब की बातें, कब, किस काम आती हैं?
स्कूल जाने वाली बच्ची बिना समझे रट जाती है।

लकड़ी बटोरना, बकरी चराना और माँ के साथ भात पकाना,
जो सचमुच गृह कार्य हैं, होमवर्क नहीं कहे जाते हैं।
लेकिन स्कूल से मिले पाठों के अभ्यास,
भले ही घरेलू काम न हों, होमवर्क कहलाते हैं।

ऐसा कब होगा,
जब किताबें सचमुच के ‘होमवर्क’ (गृहकार्य) से जुड़ेंगी,
और लकड़ी बटोरने वाली बच्चियाँ भी ऐसी किताबें पढ़ेंगी?

– श्यामबहादुर ‘नम्र’

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