हिरोशिमा और नागासाकी पर कविता

Poem on Hiroshima and Nagasaki Day in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ हिरोशिमा और नागासाकी पर कविता दी गई हैं. हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका ने जो परमाणु बम गिराया था. उसे आज भी याद कर लोगों की आँखे भर आती हैं. उसके बाद भी सभी देश परमाणु हथियार बनाने के होड़ में लगा हैं. और बिश्व में शांति की बात करते हैं. इस समय इंसानों को क्या हो गया हैं. यह समझ पाना बहुत ही मुश्किल हैं. मनुष्य के अंदर स्वार्थ विकराल रूप ले चूका हैं. आज सभी को हथियारों की जगह विश्व शांति की प्रयास करनी चाहिए.

हिरोशिमा और नागासाकी पर कविता

Poem on Hiroshima and Nagasaki Day in Hindi

1. था शहर जापान का हिरोशिमा

था शहर जापान का हिरोशिमा
नाज था जापान का हिरोशिमा
प्रगति का वरदान था हिरोशिमा
आंख का काँटा बना हिरोशिमा

छः अगस्त सन पैंतालीस का प्रात था
फूल कलियाँ मलय सुरभित वात था
रोजमर्रा की तरह थी जिंदगी
फिजाँ में बिखरी हुई थी ताजगी

आठ बज पन्द्रह मिनट पर टिबेट ने
लिटिल बाय बम को गिरा हाय कहा
मात्र तैंतालीस सेकंड अंतराल में
वह गगन से धरती पर लगा

चीख उठा गगन धरती हिल गई
धुंआ धूल गुबार से वह भर गई
ढह गई मीनार बस्ती मिट गई
चमन सी दुनिया पलों में लुट गई

अलविदा कहकर न कोई जा सका
आँख से आँसू कोई न गिरा सका
मात्र पल भर में न कुछ भी शेष था
मुस्कराता शहर अब अवशेष था

हो गई वीरान बस्ती लुट गई
थी सजाने में जिसे सदिय गई
क्या यही विज्ञान का वरदान था
क्या यही इंसान पर एहसान था

चित्र थे दीवार पर परछाई के
मिट सके ना वे वहीं जड़ हो गये
चित्र थे यह आदमी के दम्भ के
चित्र थे परमाणु आविष्कार के

थी यह किसकी जीत किसकी हार थी
किस कदर हैवानियत सवार थी
देखकर हर और मंजर मौत का
जिंदगी खुद से यूँ शर्मसार थी

वक्त था बढ़ता गया चलता गया
भर न पाएं जख्म जो बम से लगे
देखकर लूली अपाहिज नस्ल को
शाप जैसा झेलता हिरोशिमा

खो दिया मैंने मुझे क्या मिला हैं
किन चमत्कारों का मुझको सिला है
तुम मुझे देखो जरा सोचो जरा सीखो
कसम खाओ फिर कभी हिरोशिमा न हो
“स्नेह लता”

2. हिरोशिमा

हिरोशिमा
एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक :
धूप बरसी
पर अंतरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।

छायाएँ मानव-जन की
दिशाहिन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था वह पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के:
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों् अरे टूट कर
बिखर गए हों
दसों दिशा में।

कुछ क्षण का वह उदय-अस्तक!
केवल एक प्रज्व लित क्षण की
दृष्यए सोक लेने वाली एक दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव-जन की
नहीं मिटीं लंबी हो-हो कर:
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थलरों पर
उजरी सड़कों की गच पर।

मानव का रचा हुया सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थ र पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”

3. हिरोशिमा की पीड़ा

हिरोशिमा की पीड़ा
किसी रात को
मेरी नींद चानक उचट जाती है
आँख खुल जाती है
मैं सोचने लगता हूँ कि
जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का
आविष्कार किया था
वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण
नरसंहार के समाचार सुनकर
रात को कैसे सोए होंगे?
क्या उन्हें एक क्षण के लिए सही
ये अनुभूति नहीं हुई कि
उनके हाथों जो कुछ हुआ
अच्छा नहीं हुआ!

यदि हुई, तो वक़्त उन्हें कटघरे में खड़ा नहीं करेगा
किन्तु यदि नहीं हुई तो इतिहास उन्हें
कभी माफ़ नहीं करेगा!

अटल बिहारी वाजपेयी

4. प्रेम और परमाणु

प्रेम और परमाणु
मुझे नफरत है
उस वैज्ञानिक और विज्ञान से
जिसने बन्दूक बनाई है
इसने जितने लोगो को
बचाया नहीं है
उससे कई गुना ज्यादा
लोगो को मौत के
घाट उतार दिया है.

मुझे नफरत है
उस वैज्ञानिक और विज्ञान से
जिसने बम बनाये
इसने जितना सरहदों
को सुरक्षति नही किया है
उससे ज्यादा इंसान
के अंदर डर और
दहशत फैलाया है.

मुझे नफरत है
उस वैज्ञानिक और विज्ञान से
जिसने परमाणु बम बनाया है
जो जीत रुपी अहंकार को
पूरा करने के लिए
बेकसूर लोगो के
शरीर का पूरा जल
सोख लेता है
और तड़प-तड़प कर
मरने के लिए छोड़ देता है.

हिरोशिमा और नागासाकी
का इतिहास आज
भी इंसान को डराता है
फिर भी तरक्की की दौड़ में
परमाणु बम से भी ज्यादा
खतरनाक हथियार बनाने
में लगे हुए है.

अगर विज्ञान यही है
तो आने वाली पीढ़ियों से
मैं यही कहूँगा कि
इस विज्ञान को ना पढ़े

अगर विज्ञान को पढ़े
तो कुछ ऐसा आविष्कार करें
जो मानव कल्याण के लिए हो
न कि उसके अंदर दहशत
और डर फैलाने के लिए
मैं प्रेम से जीने में
विश्वास रखता हूँ,
इंसान एक दिन
इंसान बनेगा
ऐसा आस
रखता हूँ.

सत्यप्रकाश दूबे

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