बचपन पर कविता, Poem on Childhood in Hindi

Poem on Childhood in Hindi : दोस्तों इस पोस्ट में कुछ बेहतरीन बचपन पर कविता का संग्रह दिया गया हैं. इस Childhood Poem in Hindi को हमारे लोकप्रिय कवियों दुवारा लिखा गया हैं. यह कविता छात्रों के लिए भी सहायक होगी. क्योकि स्कूलों में भी Hindi Poem On Childhood लिखने को कहा जाता हैं.

बचपन हमारे जीवन का सबसे खूबसूरत समय होता हैं. वह बचपन में शरारत करना, धुल मिट्टी से खेलना फिर माँ से डांट पड़ना. आज भी यह सभी बचपन की यादे हमारे साथ हैं. इसे याद करके हमें कुछ पल की खुशी भी मिलती हैं.

अब आइए कुछ नीचे Poem on Childhood in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी बचपन पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

बचपन पर कविता, Poem on Childhood in Hindi

Poem on Childhood in Hindi

1. Poem on Childhood in Hindi – धुंधली यादों के झरोखे से

धुंधली यादों के झरोखे से, बचपन मुझसे कहता है !
जब मैं था कितना खुश था तू ,अब क्यों चुप चुप सा रहता है !!

हाथ पकड़ संग पिता के चलना,मन में विश्वाश जगाता था !
जीवन पथ पर कैसे है चलना यह हमको सिखलाता था !!

क्या भूल गया तू वो सभी बातें, जो बचपन में सिखलाई थीं !
जिनको अपनाने से जीवन में खुशियां आयी थीे !!

चल फिर से अपना ले मुझको, अब देरी क्यों सहता है !

धुंधली यादों के झरोखे से बचपन मुझसे कहता है !
जब मैं था कितना खुश था तू, अब क्यों चुप चुप सा रहता है !!

2. बचपन पर कविता – जीवन की प्यारी वह बातें

जीवन की प्यारी वह बातें,
बचपन में कहानियों की रातें।
जब याद कभी आ जाती है,
फिर से स्मृतियाँ दे जाती है।
पहले हर एक सपना सच्चाई था,
अब कोई सपना भी अपना नहीं।
यादें बहुत है लेकिन,
किसी का कोई अपना नहीं।
दुनिया बहुत रंगीली है,
पर दुःख की शाम अकेली है।
अगर साथ किसी का है तो,
वह दुनिया के झमेले है।
कही गम है तो कही थोड़ी खुशियाँ,
तो कही बुराइयों के मेले है।

-Nidhi Agarwal

3. Childhood Poem in Hindi – एक बचपन का जमाना था

एक बचपन का जमाना था,
जिस में खुशियों का खजाना था।

चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिवाना था।

खबर ना थी कुछ सुबहा की,
ना शाम का ठिकाना था।

थक कर आना स्कूल से,
पर खेलने भी जाना था।

माँ की कहानी थी,
परीयों का फसाना था।

बारीश में कागज की नाव थी,
हर मौसम सुहाना था।

हर खेल में साथी थे,
हर रिश्ता निभाना था।

गम की जुबान ना होती थी,
ना जख्मों का पैमाना था।

रोने की वजह ना थी,
ना हँसने का बहाना था।

क्युँ हो गऐे हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।

4. Hindi Poem On Childhood – मेरे सपनों में बसा है

मेरे सपनों में बसा है
अपने बचपन का गाँव
जहाँ सूरज उठता था
कुँए की मुंडेर से
और सो जाता था
मुँह छिपाकर अरहर के खेतों में
जहाँ दुपहर की छाँह
अलसाई सी
दुबकी रहती थी
नीम तले
जहाँ बारिश में
भींगते थे
गाते थे गीत
मेढकों को मारकर
माँफी माँगते थे बादलों से
‘कान दर्द करे धोबी का
हमारा ना करे
जहाँ बैलों के कंधे पर बैठे
कौओं को उड़ाते थे
ढेले मार-मारकर
कुए में झाँककर
पुकारते थे कोई नाम
और सुनते हे प्रतिध्वनि
कान लगाकर
जहाँ आम के टिकोरे
कुछ कलछौर फालसे
पत्तियों में छिपे करौंदे
हमारी राल टपकाते थे
चोरी को उकसाते थे।

5. Short Poem On Childhood In Hindi Language

मैं डरता हूँ
अपना बचपना खोने से
सहेज कर रखा है उसे
दिल की गहराईयों में

जब भी कभी व्यवस्था
भर देती है आक्रोश मुझमें
जब भी कभी सच्चाई
कड़वी लगती है मुझे
जब भी कभी नहीं उबर पाता
अपने अंतर्द्वंद्वों से
जब भी कभी घेर लेती है उदासी
तो फिर लौट आता हूँ
अपने बचपन की तरफ

और पाता हूँ एक मासूम
एवं निश्छल-सा चेहरा
सरे दुख-दर्दों से परे
अपनी ही धुन में सपने बुनता।

6. वो बचपन का दौर जो बीता

वो बचपन का दौर जो बीता
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा
कितनी प्यारी लगती थीं दादी और नानी
जो हमको सुनाती थीं किस्से और कहानी
छोटी सी खुशीयों में हँसना रो देना चोट जो लगी
घरवाले भी हमसे करते थे दिल्लगी
कहते मीठा फिर खिलाते जो तीखा
वो बचपन का दौर जो बीता
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा
कभी बनना था डॉक्टर कभी बनना था शायर
पल हर पल बदलते थे सपने
कोई थे भैया, कोई थे चाचा
हर कोई जैसे हों अपने
छोटी सी मुश्किल में चेहरा होता जो फीका
वो बचपन का दौर जो बीता
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा
पापा से डरना पर माँ से जो लड़ना
करके गुस्ताखी फिर उलझन में पड़ना
ना कोई गम था ना कोई डर था
बस खेल-खिलौनों का फिक़र था
बचपन का हर पल होता है अनूठा
वो बचपन का दौर जो बीता
जिंदगी का सबसे पल था वो मीठा

7. जब बचपन के घर से

जब बचपन के घर से,
माता-पिता के घर से, बाहर चला था,
तब खयाल नहीं आया,
कि यह यात्रा एक और घर के लिए है,
जो निलर्ज्जता के साथ छीन लेगा,
मुझसे मेरे बचपन का घर।

यूँ दे जाएगा एक टीस,
जिसे लाखों लोग महसूस करते हैं,
क्योंकि दुनियादारी होते हुए,
रोज़ छूट रहे हैं,
लाखों लोगों के,
लाखों बचपन के घर।

कितना अजीब है,
जो हम खो देते हैं उमर् की ढलान पर,
वह फिर कभी नहीं लौटता,
जैसे देह से प्राण निकल जाने के बाद फिर कुछ नहीं हो पाता,
ठीक वैसे ही गुम जाता है बचपन का घर।

माता-पिता, भाई-बहन,
प्यार, झगड़ा, जि़द, दुलार, सुख
सब चले जाते हैं,
किसी ऐसे देश में,
जहां नहीं जाया जा सकता है,
जीवन की हर संभव कोशिश के बाद भी,
वहां कोई नहीं पहुंच सकता।

ना तो चीज़ों को काटा-छांटा जा सकता है
और ना गुमी चीज़ों को जोड़ा जा सकता है,
पूरा दम लगाकर भी,
फिर से नहीं बन सकता है, बचपन का घर।

हम सब,
माता-पिता, भाई-बहन,
आज भी कई बार इकट्ठा होते हैं,
बचपन के घर में,
पर तब वह घर एक नया घर होता है,
वह बचपन का घर नहीं हो पाता है।

8. वो बचपन की बस्ती

वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!
जब खुशियाँ थी सस्ती, अपनो का प्यार
अनोखा सा वो संसार, सपनों की बहती थी जहाँ कश्ती
अपनी खुशबू से अनजान, कस्तूरी-हिरण सी वो हस्ती
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!

आँखों में चमक, अंदाज में धमक
खिलखिलाहट से गुंज उठती थी खनक
बातों में होती थी चहक, अपनेपन की खास महक
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!

सवालों के ढेर, खेलने के फेर
किसी से नहीं होता था कोई बैर
शिकवे-शिकायतों की आती ना थी भाषा
ना था अपने-पराए का भेद जरा सा
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!

छोटी-छोटी चीजों में खुशियाँ थी बड़ी-बड़ी
हर काम में मिलती थी शाबाशियाँ घड़ी-घड़ी
ना था कोई परेशानीयों का मेला;
ना जिम्मेदारियों का था झमेला
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!

लगाई जाती थी जब तरकीबें नई-नई
कारस्तानियों की लग जाती थी झरी
भोली सी शैतानियाँ, अल्हड़ सी नादानियाँ
दादी-नानी से सुनी जाती थी कहानियाँ
सच लगती थी जिनकी सारी जुबानियाँ
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!

कुदरती वो खूबसूरती ढूंढते है आज खुद में सभी
वक्त के बदलते करवटों के साथ बदलता गया एहसास
पर आज भी है वो बचपन बड़ा खास, दिल के पास
वो बचपन की बस्ती, मासूमियत भरी मस्ती!!

9. एक बचपन का जमाना था

एक बचपन का जमाना था
जिस में खुशियों का खजाना था
चाहत चाँद को पाने की थी
पर दिल तितली का दीवाना था
खबर ना थी कुछ सुबह की
ना शाम का ठिकाना था
थक कर आना स्कूल से
पर खेलने भी जाना था
माँ की कहानी थी
परियो का फसाना था
बारिश में कागज की नाव थी
हर मौसम सुहाना था

10. आज जरा सोच को अपनी भुलाते हैं

आज जरा सोच को अपनी भुलाते हैं.
ना तुम कुछ कहो ना हम फरमाते है
ऑंखें बंद करू मैं तुम्हारी
चलों बचपन का खेल फिर से दोहराते है

ना छल हो, ना कोई छलावा
और ना कोई हमारे अलावा
दुनियां की तहजीब भूलकर
आज फिर, शेर सा गुर्राते है

मासूमियत भरा वो दिल लेकर
जी भर दौड़ लगाते है
फिर से तुम छुप जाओ कहीं
तुम्हे ढूढ़ खिलखिलाते हैं.

भूल जाए अब गिले शिकवे
मन को थोड़ा ह्ल्काते है
बचपन का वो प्यार हमारा
चलो फिर दिल में जगाते है

आओ इक बार फिर से हम
बचपन का इश्क निभाते है,

11. हम थें और बस हमारें सपने

हम थें और बस हमारें सपने,
उस छोटी सी दुनियां के थे हम शहजादे।
लग़ते थे सब अपनें-अपनें,
अपना था वह मिट्टीं का घरौदा,
अपनें थे वह गुड्डें-गुडिया,
अपनी थी वह छोटी सी चिडिया,
और उसकें छोटें से बच्चें।
अपनी थी वह परियो की क़हानी,
अपने से थें दादा-दादी, नाना और नानी।
अपना सा था वह अपना गांव,
बारिश की बूंदे कागज की नाव।
माना अब वह सपना सा हैं,
पर लग़ता अब भीं अपना सा हैं।

दुनियां के सुख़ दुख़ से बेगानें,
चलतें थे हम बनक़े मस्तानेे।
कभीे मुहल्ले की गलियो मे,
और कभीं आमो के बागो मे।
कभीं अमरुद के पेड की डालियो पर,
और कभीं खेतो की पगडडियों पर।
इस मस्ती से ख़ेल-ख़ेल मे,
न ज़ाने कब बूढ़े हो गये हम।
बींत गया वह प्यारा बचपन,
न ज़ाने कहां ख़ो गये हम।
-निधि अग्रवाल

12. वो बचपन क़ितना सुहाना था

वो बचपन क़ितना सुहाना था
ज़िसका रोज़ एक नया फसाना था
कभीं पिता के कन्धो का
तो कभीं माँ के आंचल का सहारा था
कभीं बेफिक्री मिट्टी के ख़ेल का
तो कभीं दोस्तो का साथ मस्ताना था
कभीं नंगें पांव दौड का तो
कभीं पतग न पकड़ने का पछतावा था
कभीं बिना आसू रोनें का
तो कभीं बात मनवानें का बहाना था
सच कहू तो वों दिन ही हसीं थे
न कुछ छिपाना और दिल मे
जो आए बताना था।

13. मेरी आँखो से गुज़री जो

मेरी आँखो से गुज़री जो
बीतें लम्हो की परछाई,
न फ़िर रोकें रुकी ये आँखे
झ़ट से भर आई।

वो बचपन गुज़रा था ज़ो
घर के आंगन मे लुढकता सा
मै भीगा क़रता था जिसमे
वो सावन ब़रसता सा,
याद आई मुझें
माँ ने थी जों कभीं लोरिया गाईं
न फ़िर रोके रुकीं ये आँखे
झ़ट से भर आई।

उम्र छोटी थीं पर सपनें
बडे हम देख़ा करते थें
ये दुनियां प्यारी न थी
हम तो बस ख़िलौनो पे मरतें थे,
जब देख़ा मैने वो बचपन का खज़ाना
किताब, क़लम और स्याही
न फ़िर रोकें रुकी ये आँखे
झ़ट से भर आई।

याद आया मुझ़े
भाई-बहिनों के संग झ़गडना
शैतानियां कर के मां के
दमन से ज़ा लिपटना,
साथ ही याद आयी वो बाते
जो मां ने थी समझ़ाई
न फ़िर रोकें रुकी ये आँखे
झ़ट से भर आई।

आज़ तन्हाई मे ज़ब
वो मासूम बचपन नज़र आया हैं
ऐसा लगता हैं ज़ैसे
ख़ुशियो ने कोई गीत गुनगुनाया हैं,
पर ज़ब दिख़ा सच्चाई का आईना
तो फिर हुई रुसवाईं
न फ़िर रोकें रुकी ये आँखे
झ़ट से भर आई।

14. ज़ब हम बच्चें थे

ज़ब हम बच्चें थे, अक्ल से क़च्चें थे
ऊचनीच का भेद नही, मन से सच्चें थे
मस्ती मे रहते थें. दोस्तों संग ख़ेलते थे
अपनी ही एक़ दुनियां थी,
ज़िसमे मस्त रहा क़रते थे।।

ज़ैसे ही बडे हुए वो दुनियां छुट गयी
उम्मीदो के संग ख़ुशिया भी टूट़ गयी
अब कहा वों दिन मिल पातें हैं
बस यादो के खिलौनें ही रह ज़ाते हैं।।

घर की जिम्मेदारी में बचपन कही ख़ो सा गया
हर बच्चा व़क्त से पहिले बडा होता ग़या
मां बाप ने पढाई का बोझ़ डाल दिया
बच्चों को सपनें के तलें दबा दिया।।

अब वों बचपन कहा रह ज़ाता हैं
बच्चा वक्त से पहलें बडा हो ज़ाता हैं
वो ख़ेल कहा ख़ेल पाता हैं
दोस्तों के संग कहा रह पाता हैं
घर से स्क़ूल और स्क़ूल से घर आता ज़ाता हैं।।

याद क़रता हू बचपन को तो आसू आ ज़ाते हैं
वो ख़ेल पुरानें लम्हें याद आ ज़ाते हैं।।

15. वो बचपन की बस्ती

वो बचपन की बस्ती, मासुमियत भरी मस्तीं!!
जब ख़ुशियां थी सस्ती, अपनों का प्यार
अनोख़ा सा वो संसार, सपनो की ब़हती थी ज़हा कश्ती
अपनी ख़ुशबू से अनज़ान, क़स्तूरी-हिरण सी वो हस्तीं
वो ब़चपन की बस्ती, मासुमियत भरी मस्तीं!!

आँखो मे चमक़, अन्दाज मे धमक़
ख़िलखिलाहट से गूज उठती थी ख़नक
बातो मे होती थी चहक़, अपनेंपन की ख़ास महक
वो बचपन की ब़स्ती, मासुमियत भरी मस्तीं!!

सवालो के ढ़ेर, ख़ेलने के फ़ेर
किसी से नही होता था कोई बैंर
शिक़वे-शिकायतो की आती ना थीं भाषा
ना था अपनें-पराये का भेद ज़रा सा
वो बचपन की ब़स्ती, मासुमियत भरी मस्तीं!!

छोटी-छोटी चीजो मे ख़ुशियां थी बडी-बडी
हर काम मे मिलती थी शाबाशियां घडी-घडी
ना था कोईं परेशानियो का मेला;
ना जिम्मेदारियो का था झ़मेला
वो बचपन की बस्तीं, मासुमियत भरी मस्ती!!

लगायी ज़ाती थी जब तरकीबे नयी-नई
कारस्तानियो की लग ज़ाती थी झडी
भोली सी शैतानियां, अल्हड सी नादानियां
दादी-नानी सें सुनी ज़ाती थी कहानियां
सच लग़ती थी ज़िनकी सारी जुबानियां
वो बचपन की बस्तीं, मासुमियत भरी मस्तीं!!

क़ुदरती वो ख़ूबसूरती ढूढ़ते है आज़ खुद मे सभी
वक्त के बदलतें करवटो के साथ बदलता ग़या अहसास
पर आज़ भी हैं वो बचपन बडा ख़ास, दिल के पास
वों बचपन की बस्ती, मासुमियत भरी मस्तीं!!

16. अंबक टबक

अंबक टबक
टबक टुल्ला
अपना बचपन
है रसगुल्ला
सबको खुश रख
मेरे अल्लाह
इम्तेहान की
हैं तैयारी
हमको करनी
मेहनत भारी
अव्वल नंबर
आना हमको
ताकि देखे
दुनिया सारी
फिर क्या है बस
हल्ला गुल्ला
अंबक टबक
टबक टुल्ला
खत्म परीक्षा
खेल तमाशा
खाओ बच्चों
खील बताशा
झुला झूलो
एचक लेचक
गिर मत जाना
सम्भलो आशा
मिलकर गाओ
टबक दुल्ला
अंबक तंबक
टबक टुल्ला

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