मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय | Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan

Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan – मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि का सम्मान मिला हुआ हैं. गुप्त जी को खड़ी बोली का पहला कवि माना जाता हैं. गुप्त जी की कविताओं में स्वदेश प्रेम देखने को मिलता हैं. मैथिलीशरण गुप्त ने बाल साहित्य को अपनी रचनाओं से समृद्ध किया हैं. हिंदी साहित्य में गुप्त जी का बहुत ही बड़ा योगदान माना जाता हैं.

Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan

Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan – मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के झाँसी के पास चिरगाँव में हुआ था. इनके पिता का नाम सेठ रामचरण कनकने और माता का नाम काशी बाई था. गुप्त जी खेल – कूद पर ज्यादा ध्यान देते थे. इनकी स्कूल की शिक्षा अधूरी रह गई. इन्होने घर पर ही रहकर हिंदी, बंगला और संस्कृत साहित्य का अध्यन किया. इन्होने 12 वर्ष की उम्र में ब्रजभाषा में कनकलता नाम से कबिता रचना की शुरुआत की जब गुप्त जी महावीर प्रसाद द्रिवेदी के संपर्क में आए तो द्रिवेदी जी से इन्हें काफी मदद मिली और इनकी कविता मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित होने लगी. गुप्त जी की पहली काव्य संग्रह रंग में भंग प्रकाशित हुई थी. गुप्त जी में अपने देश की प्रति बहुत प्यार था. 1912 – 13 में इन्होनें अपनी महत्वपूर्ण रचना भारत भारती का प्रकाशन किया था. गुप्त जी ने अपनी खुद का प्रेस शुरू किया और अपनी खुद का प्रेस शुरू किया और अपनी पुस्तक और रचनाएँ को खुद ही छापना और प्रकाशित करना शुरू कर दिया था. जब यह गाँधी जी के निकट आये तो गाँधी जी के दुवारा चलाए गए आन्दोलन सत्याग्रह में शामिल हो गए. महात्मा गाँधी ने मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की संज्ञा प्रदान की थी. सत्याग्रह में भाग लेने की वजह से इनको गिरफ्तार कर के जेल में बंद कर दिया गया. लेकिन कोई आरोप सिद्ध नहीं होने के कारण इन्हें सात महीनों के बाद जेल से छोड़ दिया गया. गुप्त जी को आगरा विश्वविद्यालय से 1948 में डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया गया. 1952 से लेकर 1964 तक यह राज्यसभा के सदस्य रहें हैं.

गुप्त जी ने दो महाकाव्य और 19 खण्डकाव्य की रचना की हैं. इनकी लिखी गई काव्य में राष्ट्रीय चेतना, मानवीय उत्थान और धार्मिक भवना का चित्रण मिलता हैं. इनके रचना भारत भारती के तीन खंड में भारत देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य का चित्रण हैं.

मध्यप्रदेश राज्य सरकार ने गुप्त जी के जन्म दिवस को प्रत्येक वर्ष 3 अगस्त को कवि दिवस के रूप में मानाने की घोसना की हैं.

मैथिलीशरण गुप्त एक लोकसंग्रह कवि स्वभाव के थे. यह अपने जीवन काल के समय में उस युग की समस्याओं के प्रति काफी संवेदनशील रहें हैं. मदनमोहन मालवीय, कवीर दास गणेश शंकर विद्यार्थी, विपिनचंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक, लालालाजपत राय गुप्त जी के आदर्श रहें हैं. गुप्त जी राष्ट्र्यता की भाव कूट – कूट कर भरा हुआ था. उन्होंने राष्ट्रीय विचारधाराओं से ओत – प्रोत अनेक रचनाएँ लिखी हैं. वे भारतीय संस्कृति के भक्त थे. लेकिन अंधविश्वास और थोते आदर्शों में विश्वास नहीं करते थे.

गुप्त जी की रचनाओं में परिवारिक जीवन और नारी को विशेष महत्व प्रदान किया गया हैं. इन्होनें मुक्तक काव्य और प्रबंध काव्य की रचना की गुप्त जी के परिवार में पूजा पाठ, भजन, गीता पढ़ना प्रतिदिनं होता था. इनके पुरे परिवार में वैष्णव भक्ति का भाव था. यही से गुप्त जो पर भी अध्यात्म का प्रभाव पड़ा. और आगे चलकर वह राम भक्ति में लग गए. इसका प्रमाण आपको उनके ‘साकेत’ में मील जाती हैं. इसमें रामभक्त की भवना और उर्मिला की व्यथा का चित्रण मील जाता हैं.

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं से हिंदी साहित्य काफी प्रकाशित हुआ हैं. अपनी रचनाओं की शैलियों में गुप्त जी ने विविधता दिखाई हैं.

पुरस्कार एवं सम्मान – Maithili Sharan Gupt Ka Jeevan

1936 में गुप्त जी को अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया गया था. आगरा विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने इन्हें दी लिट् की उपाधि से सम्मानित किया. 1954 में पदभूषण से सम्मानित किया गया. इसके आलवा उनको हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार, मंगल प्रसाद पारितोषिक तथा साहित्य वाचस्पति से अलंकृत किया गया. इनकी सभी रचनाओं में साकेत को उनकी सर्वोत्तम रचना माना जाता हैं.

12 दिसम्बर 1964 को मैथिलीशरण गुप्त जी का देहावसान चिरगांव में हुआ था.

मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाएँ

महाकाव्य
साकेत
यशोधरा
खण्डकाव्य
जयद्रथ वध
भारत-भारती
पंचवटी
द्वापर
सिद्धराज
नहुष
अंजलि और अर्घ्य
अजित
अर्जन और विसर्जन
काबा और कर्बला
किसान
कुणाल गीत
गुरु तेग बहादुर
गुरुकुल
जय भारत
युद्ध
झंकार
पृथ्वीपुत्र
वक संहार
शकुंतला
विश्व वेदना
राजा प्रजा
विष्णुप्रिया
उर्मिला
लीला
प्रदक्षिणा
दिवोदास
भूमि-भाग

नाटक

रंग में भंग
राजा-प्रजा
वन वैभव
विकट भट
विरहिणी
वैतालिक
शक्ति
सैरन्ध्री
स्वदेश संगीत
हिड़िम्बा
हिन्दू
चंद्रहास

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