मातृभूमि पर कविता, Mathrubhumi Poem in Hindi

Mathrubhumi Poem in Hindi – दोस्तों यहाँ पर मातृभूमि पर कविता दी गई हैं. इन सभी Hindi Poem on Mathrubhumi को हमारे लोकप्रिय कवियों ने लिखा हैं. इसे आप किसी मंच पर और स्कूलों में भी सुना सकते हैं.

यह कविताएँ देश की मिट्टी की महानता को दर्शाती हैं. और हमारे अन्दर देशप्रेम की भावना को जागृत करती हैं. जो हमें तमाम स्वतंत्रता सेनानियों और भारत माँ की सपूतों की याद दिलाती हैं.

अब आइए Mathrubhumi Poem in Hindi को पढ़ते हैं. हमें उम्मीद हैं की यह सभी मातृभूमि पर कविता आपको पसंद आएगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

मातृभूमि पर कविता, Mathrubhumi Poem in Hindi

Mathrubhumi Poem in Hindi

1. Mathrubhumi Poem in Hindi – मातृभूमि की यही कहानी

मातृभूमि की यही कहानी |
नित नव पल्लव सूख रहे हैं,
स्वप्न हृदय के टूट रहे हैं |
उपवन कैसे अस्त-व्यस्त है,
नहीं नजर आता रँग धानी |
आजादी के अंकुर फूटे,
सत्य मार्ग से रिश्ते टूटे |
भ्रष्टाचार, कुरीति फली है,
बढ़ती दिन-दिन है हैवानी |
मातृभूमि की यही कहानी |
प्रहरी कैसे लुप्त हो गए,
पुष्प खिले वे कहाँ खो गए |
उनको खिला सके न कोई,
नहीं सरों में इतना पानी |
मातृभूमि की यही कहानी |
याद मनुज माली को करता,
पीर अगाध हृदय में भरता |
कोई ऐसा नहीं बचा जो,
लिखे देश की नयी कहानी |
मातृभूमि की यही कहानी |

कुलदीप पाण्डेय आजाद

2. मातृभूमि पर कविता – नीलांबर परिधान हरित तट पर

नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं।
बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है॥
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥
जिसके रज में लोट-लोट कर बड़े हुये हैं।
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुये हैं॥
परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये।
जिसके कारण धूल भरे हीरे कहलाये॥
हम खेले-कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में।
हे मातृभूमि! तुझको निरख, मग्न क्यों न हों मोद में?
पा कर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा।
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह, तुझी से बनी हुई है।
बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है॥
फिर अन्त समय तू ही इसे अचल देख अपनायेगी।
हे मातृभूमि! यह अन्त में तुझमें ही मिल जायेगी॥
निर्मल तेरा नीर अमृत के से उत्तम है।
शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है॥
षट्ऋतुओं का विविध दृश्ययुत अद्भुत क्रम है।
हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है॥
शुचि-सुधा सींचता रात में, तुझ पर चन्द्रप्रकाश है।
हे मातृभूमि! दिन में तरणि, करता तम का नाश है॥
सुरभित, सुन्दर, सुखद, सुमन तुझ पर खिलते हैं।
भाँति-भाँति के सरस, सुधोपम फल मिलते है॥
औषधियाँ हैं प्राप्त एक से एक निराली।
खानें शोभित कहीं धातु वर रत्नों वाली॥
जो आवश्यक होते हमें, मिलते सभी पदार्थ हैं।
हे मातृभूमि! वसुधा, धरा, तेरे नाम यथार्थ हैं॥
क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है।
सुधामयी, वात्सल्यमयी, तू प्रेममयी है॥
विभवशालिनी, विश्वपालिनी, दुःखहर्त्री है।
भय निवारिणी, शान्तिकारिणी, सुखकर्त्री है॥
हे शरणदायिनी देवि, तू करती सब का त्राण है।
हे मातृभूमि! सन्तान हम, तू जननी, तू प्राण है॥
जिस पृथ्वी में मिले हमारे पूर्वज प्यारे।
उससे हे भगवान! कभी हम रहें न न्यारे॥
लोट-लोट कर वहीं हृदय को शान्त करेंगे।
उसमें मिलते समय मृत्यु से नहीं डरेंगे॥
उस मातृभूमि की धूल में, जब पूरे सन जायेंगे।
होकर भव-बन्धन- मुक्त हम, आत्म रूप बन जायेंगे॥

मैथिलीशरण गुप्त

मातृभूमि पर कविता

3. Hindi Poem on Mathrubhumi – मातृभूमि की माटी चंदन

मातृभूमि की माटी चंदन
आओ तिलक लगायें ।
इस माटी में जन्म मिला
यह सोच के हम इतरायें ।

राम कृष्ण ने जन्म लिया
खेले गौतम गांधी ।
वीर भगत सिंह यहीं थे जन्मे
चढ़ गये हँस कर फाँसी ।
वीरों की पावन धरती को
आओ शीश झुकायें ।
इस माटी में जन्म मिला
यह सोच के हम इतरायें ।

दुर्गा वती यहीं जन्मी थी
झाँसी वाली रानी ।
छुड़ा दिये छक्के दुश्मन के
ऐसी थी मर्दानी ।
जब जब जन्म मिले धरा पे
भारत वतन ही पायें ।
इस माटी में जन्म मिला
यह सोच के हम इतरायें ।

हे देव भूमि हे कर्मभूमि
तुझसे ही सब कुछ पाया ।
खेतों में हरियाली रहती
पेड़ों की छाया ।
सागर चरण पखारता
गीत तेरे माँ गाये ।
इस माटी में जन्म मिला
यह सोच के हम इतरायें ।

मातृभूमि की माटी चंदन
आओ तिलक लगायें ।
इस माटी जन्म मिला
यह सोच के हम इतरायें ।

श्रीमती केवरा यदु ” मीरा ” जी

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