धरती पर हिंदी कविताएँ | Poem on Earth Day in Hindi

Poem on Earth Day in Hindi – इस पोस्ट में आपको बेहतरीन Poem about Earth in Hindi का संग्रह दिया गया हैं. यह धरती पर हिंदी कविताएँ को आप World Earth Day पर अपने स्कूलों और कॉलेज में भी सुना सकते हैं. यह सभी Poem on Earth in Hindi को हमारे हिंदी के प्रसिद्ध कवियों द्वारा लिखी गई हैं. छात्रों को प्रतियोगिताओं और परीक्षाओं में भी या Poem on Save Earth in Hindi काफी सहायक होगी.

प्रत्येक वर्ष 22 April को (World Earth Day) विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता हैं. इस World Earth Day की शुरुआत अमेरिका सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में की थी. इसका मुख्य उद्देश्य हम अपनी पृथ्वी को प्रदुषण से कैसे बचाएं. इसके बारे में लोगों को प्रोत्साहित करना हैं. इसलिए लोगों को स्लोगन, कविताओं के माध्यम से पृथ्वी के सरक्षण के लिए उत्साहित किया जाता हैं. सरकार भी धरती को बचाने के लिए अनेक प्रकार की योजनाओं की शुरुआत की हैं.

दोस्तों ब्रहमांड में पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह हैं. जहाँ जीवन हैं. यह धरती ही हमें जीवित रहने के लिए जरुरत की सभी चीजें उपलब्ध कराती हैं. लेकिन कुछ लोग लालच में उन संपदा का दोहन कर रहे हैं. अगर हम अभी भी नहीं संभले तो वह दिन दूर नहीं हैं. की पृथ्वी पर भी जीवन समाप्त हो जायगा. और इसके जिम्मेदार हम खुद होंगें. इसलिए जितना हो सके पर्यावरण को बचाइए खूब पेड़ – पोधें लगाइए. और धरती को नष्ट होने से बचाइए.

अब आइये कुछ नीचें Poem on Earth Day in Hindi में दिया गया हैं. इसे पढ़ते हैं. और हमें उम्मीद हैं की यह Poem about Earth in Hindi में आपको पसंद आएगी. यह धरती पर हिंदी कविताएँ को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिएगा.

धरती पर हिंदी कविताएँ, Poem on Earth Day in Hindi

Poem on Earth Day in Hindi

1. Poem on Earth Day in Hindi – निकल रहे हैं प्राण

निकल रहे हैं प्राण।
कोई सुन ले तो,
दे दो उसे जीवनदान।

सूख रहे हैं हलक,
मरुस्थल है दूर तलक।
सांस-सांस में कोहरा है,
इस दर्द से कोई रो रहा है।

सुन ले कोई चीत्कार,
दे दो उसे भी थोड़ा प्यार।
प्रकृति की हो रही विकृति,
अवैध खनन के नाम क्षति।

पहाड़ों को जा रहा काटा,
बिगड़ रहा है संतुलन,
हो रहा है बहुत ही घाटा।

भूकंप, सूनामी धकेल रही,
हमें रोज मौत के मुंह,
मंजर ऐसा देख कांप रही है रूह।

फिर भी बन रहा इंसान अनजान,
लिख रहा खुद ही मौत का गान।

फूंक रहीं चिमनियां धुएं की भरमार,
निकाल रहे कारखाने,
रासायनिक अपशिष्ट की लार।

नदियों के जल में मिल रहा मल,
सोचो, कैसा होगा आने वाला कल?
मृदा का हो रहा अपरदन,
ध्वनि के नाम पर भी प्रदूषण।

विकास का ऐसा बन रहा ग्राफ,
जंगल और जंतु दोनों हो रहे साफ।
इसलिए जानवर कर रहे हैं,
मानव बस्ती की ओर अतिक्रमण,
डर के मारे दिखा रहे हैं लोग उन्हें गन।

दरअसल जन बन रहे हैं जानवर,
जानवर बन रहे हैं जन,
विलुप्त हो रहे हैं संसाधन।

कर रहे हम जीवन से खिलवाड़,
काट रहे हरे-भरे वृक्ष,
कर रहे हैं पर्यावरण से छेड़छाड़।

गांव हो रहे हैं खाली,
नगरों की हालत है माली।
जनसंख्या में हो रही है वृद्धि,
नेता मान रहे इसे ही उपलब्धि।

केवल गायब नहीं हो रहा पृथ्वी से पानी,
हो रहा है लोगों की आंखों से भी गायब,
शर्म और लाज का पानी।

कोई नेता नहीं लड़ता,
पृथ्वी बचाने पर इलेक्शन।
कोई नहीं करता,
पर्यावरण की दुर्गति पर अनशन।

परियोजनाओं के नाम पर,
किया जा रहा पृथ्वी को परेशान।
कोई मेधा, कोई अरुंधति बन,
दे दो उसे जीवनदान।

2. Poem about Earth in Hindi – माटी से ही जन्म हुआ है

माटी से ही जन्म हुआ है!
माटी में ही मिल जाना है!!
धरती से ही जीवन अपना!
धरती पर ही सजे सब सपना!!
सब जीव जन्तु धरती पर रहते!
गंगा यमुना यही पर बहते!!
सब्जी फल यहाँ ही उगते!
धन फसल यहाँ ही उपजे!!
धरती माँ की देख रेख कर!
हमको फर्ज़ निभाना है!!

अनुष्का सूरी

3. Poem on Earth in Hindi – धरती कह रही हैं बार बार

धरती कह रही हैं बार बार
सुन लो मनुष्य मेरी पुकार,
बड़े बड़े महलों को बना के
मत डालो मुझ पर भार
पेड़ पौधों को नष्ट करके,
मत उजाड़ो मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!

मैं हु सबकी जीवन दाता
मैं हु सबकी भाग्य विधाता,
करने डॉ मुझे सब जीवो पर उपकार,
मत करो मेरे पहाड़ों पर विस्फ़ोटक वार,
मत उजाड़ो मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!

सुंदर सुंदर बाग़ और बगीचे हैं मेरे,
हे मनुष्य ये सब काम आयेंगें तेरे,
मेरी मिटटी में पला बड़ा तू,
तूने यहीं अपना संसार गाढ़ा हैं,
फिर से कर ले तू विचार,
मत उजाड़ मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!

मैं रूठी तो जग रूठा,
अगर मेरे सब्र का बांध टुटा,
नहीं बचेंगा कोई,
मेरे साथ अगर अन्याय करोंगे,
तो न्याय कह से पाओंगे
कभी बाढ़ तो कभी सुखा,
और भूकंप जैसी आपदा सहते जाओंगे,
धरती की बस यहीं पुकार,
मत उजाड़ों मेरा संसार!!

4. Save Earth Poem in Hindi – धरती माँ हमारी जीवन दाता

धरती माँ हमारी जीवन दाता
इस माता से जुड़ा हुआ हैं सारे जहाँ का नाता…!!

जन्म हुआ यही हमारा जीवन भी संवारा हमारा,
हमारी धरती बड़ी अपार, इसमें फैला हैं सारा संसार…!!

धरती को नहीं जरा भी अभिमान, हमारी धरती बड़ी महान,
धरती के हम पर अनगिनत उपकार, ये सब हैं धरती का परोपका…!!

सुंदर सुंदर बाग़ बगीचें हैं धरती पर, खुबसूरत पर्वतों का नजारा हैं धरती पर,
नदियों की बहती धारा हैं हमारे इस धरती पर…!!

सारे रिश्तें नाते हैं इस धरती पर,
बड़े बड़े महल और छोटे छोटे मकान हैं इस धरती पर…!!

खेतों में हरी भरी फ़सलो की बहार है इस धरती पर,
पेड़ों पर ची ची करती चिड़िया की पुकार हैं इस धरती पर…!!

सब कुछ हरा भरा हैं इस धरती पर,
इसीलिए धरती माता हमारी जीवन दाता,
इस माता से जुड़ा हुआ हैं सारे जग का नाता…!!

5. Poem on Save Earth in Hindi – मैं धरती मॉ बोल रही हूं

मैं धरती मॉ बोल रही हूं
अनगिन घावों की पीडा में
मन के आंसू घोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।

हरियाली की चादर जर्जर,
तपती गर्म हवाओं का डर
पथरीले पथ पर डगमग पग,
बिना त्राण के डोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।

तन का लहू पिलाकर पाला
सुख स्वप्नों में देखा भाला
सुखद छांव दी तरु-विटपों की
सुरभित कर जीवन का प्याला
पर अपने जाये बेटों ने
श्वेताभा से तन रंग डाला
रंगहीन आंचल संभालती
यात्रा पथ पर घूम रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।

6. Prithvi Diwas Par Kavita – मेरी गोद में पले जग सारा

मेरी गोद में पले जग सारा,
हर प्राणी कि जान हूँ मैं

समझूँ भेद का मैं ना इशारा,
सबके लिए समान हूँ मैं

भरती अनाज से घर मैं तुम्हारा,
समस्या का समाधान हूँ मैं

धरती माँ जिसने भी पुकारा,
मैं उसके लिए महान हूँ मैं

कभी मैं चंचल बहती धारा,
कभी सूखा रेगिस्तान हूँ मैं

हर किसान का बनूँ सहारा,
खेत हूँ और खलिहान हूँ मैं

जिसको हर मिटाने वाला हारा,
वोही अमिट निशान हूँ मैं

7. धरती पर हिंदी कविताएँ – एक दिन मिला मुझको एक कोआ

एक दिन मिला मुझको एक कोआ
बोला जीवन जीना बन गया ह्वाआ

जंगल अब नहीं रह गए बाकी
सब तरफ है मिटटी खाकी

सीमेंट के देवदार खड़े है
ईटो के चिनार खड़े है

मदिरा बनकर बहता पानी
पर्यावरण की खत्म कहानी

मनुष्य ने यह कार्य किया है
अपना खुद से नाश किया है

बनकर रावण मनुष्य ने हर ली धरा की सुन्दरता
जिसे लोटा लेने को कोई राम नहीं मिलता

ऊँची चिमनी रोकती धमनी
साँस के साथ निगलता धुँआ

जिन्दगी बन गयी मोत का कुआँ
खो गए जंगल गुम हो गए शेर

चारो तरफ कूडो के ढेर
जंगल को शहर बनाकर

नदी पर यु बांध बनाकर
बगियाँ को श्मसान बनाया

जीवन तुझे जीना ना आया
मनुष्य तेरे ऊपर उधार बड़ा है

पर्यावरण का अपार बड़ा है
जीवन भर तू उतार ना पाए

दिनों दिन बढ़ता जाए
प्रति माह कुछ पेड़ लगा दो

अपना कर्ज कुछ यू चूका दो
भावी पीढ़ी को बतला दो

हमने अपना फर्ज निभाया
जो कुछ उलझा था सुलझाया

आगे अब से खड़ा तुम्हारे
चाहे त्याग ना चाहे या खाना

वातावरण की स्वच्छता बढ़ाना

8. Poem on Earth Day in Hindi – धरती हमारी माता है

धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो

बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो

आओ हम सब मिलजुल कर,
इस धरती को ही स्वर्ग बना दें

देकर सुंदर रूप धरा को,
कुरूपता को दूर भगा दें

नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर,
नैतिकता से काम करें

गंदगी फैला भूमि पर
माँ को न बदनाम करें

माँ तो है हम सब की रक्षक
हम इसके क्यों बन रहे भक्षक

जन्म भूमि है पावन भूमि,
बन जाएँ इसके संरक्षक

कुदरत ने जो दिया धरा को
उसका सब सम्मान करो

न छेड़ो इन उपहारों को,
न कोई बुराई का काम करो

धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो

बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो

सीमा सचदेव

9. Poem about Earth in Hindi – धरती का आँगन इठलाता

धरती का आँगन इठलाता, शस्य श्यामला भू का यौवन।
अंतरिक्ष का हृदय लुभाता।।

जौ गेहूँ की स्वर्णिम बाली, भू का अंचल वैभवशाली।
इस अंचल से चिर अनादि से, अंतरंग मानव का नाता।।

आओ नए बीज हम बोएं, विगत युगों के बंधन खोएं।
भारत की आत्मा का गौरव, स्वर्ग लोग में भी न समाता।।

भारत जन रे धरती की निधि, न्यौछावर उन पर सहृदय विधि।
दाता वे, सर्वस्व दान कर, उनका अंतर नहीं अघाता।।

किया उन्होंने त्याग तप वरण, जन स्वभाव का स्नेह संचरण
आस्था ईश्वर के प्रति अक्षय, श्रम ही उनका भाग्य विधाता।।

सृजन स्वभाव से हो उर प्रेरित, नव श्री शोभा से उन्मेषित
हम वसुधैव कुटुम्ब ध्येय रख, बनें नये युग के निर्माता।।

सुमित्रानंदन पंत

10. Poem on Earth in Hindi – मैं, पावन धरती का बेटा

मैं, पावन धरती का बेटा,
इसके आँचल में मैं खेला,
अन्नपूर्ण है ये मेरी,
नर्म बिछौना इस की गोदी ।

बापू को देखा करता था,
भोर में उठ कर खेत को जाना,
अम्माँ का खाना ले जाना ,
साथ बैठ कर भोजन खाना ।
गाँव की ऐसी स्वच्छ हवाएँ,
कुँए का पानी, घिरी घटाएँ,
चारों ओर बिछी हरियाली,
कभी हुआ न पनघट खाली ।

पर ये बातें हुईं पुरानी,
जैसे हो परियों की कहानी,
कहने को तो पात्र वही हैं,
दृश्य परन्तु बदल गए हैं ।
नगरों की इस चकाचौंध ने,
सोंधी मिटटी को रौंदा है,
ऊँची-ऊँची इमारतों से,
खेतों का अधिकार छीना है ।

युवकों की जिज्ञासु आँखें,
सपने शहरों के बुनती हैं,
गाँवों की पावन धरती से,
जुड़ने को बंधन कहती हैं
खेती को वे तुच्छ जानकर,
शहरों को भागे जाते हैं,
निश्छल मन और शुद्ध पवन को,
महत्वहीन दूषित पाते हें ।

भारत की बढ़ती आबादी,
कल को भूखी रह जायेगी ,
कृषि बिना क्या केवल मुद्रा,
पेट की आग बुझा पाएगी?
धरती आज जो सोना उगले,
कल को ईंट और गारा देगी,
महलों की ऊँची दीवारें,
भूख तो देंगी अन्न न देंगी ।
क्या महत्व खेती का समझो,
वरना हम अपने बच्चों को,
भूखा प्यासा भारत देंगे,
तब वे हम से प्रश्न करेंगे ।

आपने पाया था जो भारत,
धन-धान्य से परिपूर्ण था,
आपने कैसा फ़र्ज़ निभाया ?
हम ने भूखा भारत पाया ।

11. Save Earth Poem in Hindi – झुक कर नीलगगन ने पूछा

झुक कर नीलगगन ने पूछा – क्यों वसुधे!
हरियाली सम्पन्न सुन्दरी फूलों में तू हँसती-खिलती
त्यौहारों में – गाती
अब तू क्यों इतनी उदास है? न ही तू मुस्काती!
धीरे से बोली धरती तब –
हरियाली सम्पन्न कहाँ मैं? न मैं फूलों वाली;
त्योहारों में भीड़ – भाड़ है, नहीं भावना प्यारी!
ऋतुओं का वह रूप नहीं मौसम का कोई समय नहीं
जीवन का कोई ढंग नहीं इंसां का कोई धरम नहीं
मेरे मानस पुत्रों को नजर लग गई किसकी
उजड़ रहा सब ओर सभी कुछ बुद्धि फिर गई सबकी!
रिश्तो की गरिमा गिर गई मूल्यों की महिमा मिट गई
भटक रही दुनिया सारी,
अपने ही अपनों के दुश्मन और खून के प्यासे
समझ रहे बलबीर स्वयं को एक दूजे को देकर झाँसे,
हरियाली में सूखा है, फूलों में रंग फीका है
त्यौहार हो गया रीता है!
कहाँ खो गई नेक भावना
खरी उज्ज्वल उदात्त कामना!
जनजीवन का बिगड़ा हाल
देख सभी की टेढ़ी चाल
रहती मैं दिन-रात उदास!
दीप्ति गुप्ता

12. Poem on Save Earth in Hindi – हरी -हरी वह घास उगाती है

हरी -हरी वह घास उगाती है
फसलों को लहलहाती है
फूलों में भरती रंग
पेड़ों को पाल पोस कर ऊंचा करती
पत्ते पत्ते में रहे जिन्दा हरापन
अपनी देह को खाद बनाती है
धरती इसी लिए माँ कहलाती है |

पानी से तर हैं सब
नदियाँ, पोखर, झरने और समंदर
ज्वालामुखी हजारों फिर भी
सोते धरती के अन्दर
जैसा सूरज तपता आसमान में
धरती के भीतर भी दहकता है
गोद में लेकिन सबको साथ सुलाती है
धरती इसी लिए माँ कहलाती है .

आग पानी को सिखाती साथ रहना
हर बीज सीखता इस तरह उगना
एक हाथ फसलें उगा कर
सबको खिलाती है
दुसरे हाथ सृजन का ,
सह -अस्तित्व का ,
एकता का – पाठ पढ़ाती है
धरती…इसी लिए माँ कहलाती है।
सुरेश यादव

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1 thought on “धरती पर हिंदी कविताएँ | Poem on Earth Day in Hindi”

  1. Dharti mein hi rahana hai Dharti mein jina hai Dharti mein hi Kam karna Dharti mein hi Maine Jana is Jagat ki sabhi prani Dharti se hi jita hai Dharti per yah ped paudhe Dharti per hi fasal

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