Patriotism Poems in Hindi | देशभक्ति कविता

Patriotism Poems in Hindi – दोस्तों आज इस पोस्ट में देशभक्ति कविता का कुछ संग्रह दिया गया हैं. यह Poem on Desh Bhakti in Hindi को आप 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस के दिन इस्तेमाल कर सकते सकते हैं. या किसी समारोह आयोजन में भी सुना सकते हैं.

यह सभी देशभक्ति कविता हमारे अन्दर देशप्रेम की भावना को जागृत करती हैं. और इस तरह की Desh Bhakti Poetry कविताएँ तमाम स्वतंत्रता सेनानियों और वीर सपूतों की याद दिलाती हैं.

यहाँ पर जो Poem on Patriotism in Hindi दी गई हैं. वह प्रसिद्ध कवियों द्वारा लिखी गई हैं. आपने इस देशभक्ति कविता को स्कूल के समय में भी पढ़ा होगा. 

आपको यह सभी Patriotism Poems in Hindi कविताएँ पसंद आए तो आप इसे सोसल मीडिया पर और दोस्तों के साथ शेयर करें. तो आइए अब Poem on Desh Bhakti in Hindi में पढना शुरू करते हैं.

Patriotism Poems in Hindi, देशभक्ति कविता

Patriotism Poems in Hindi

1. Patriotism Poems in Hindi  – आज तिरंगा फहराता है

आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।
आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी।
लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।।
व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया।
हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।।

हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है।
जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।।
प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर।
हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।।

लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है।
उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है।।
हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे।
सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।।

2. Poem on Desh Bhakti in Hindi – जय जय प्यारा, जग से न्यारा

जय जय प्यारा, जग से न्यारा,
शोभित सारा, देश हमारा,
जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा
जग-सौभाग्य सुदेश!
जय जय प्यारा भारत देश।

प्यारा देश, जय देशेश,
जय अशेष, सदस्य विशेष,
जहाँ न संभव अध का लेश,
केवल पुण्य प्रवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

स्वर्गिक शीश-फूल पृथ्वी का,
प्रेम मूल, प्रिय लोकत्रयी का,
सुललित प्रकृति नटी का टीका
ज्यों निशि का राकेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

जय जय शुभ्र हिमाचल शृंगा
कलरव-निरत कलोलिनी गंगा
भानु प्रताप-चमत्कृत अंगा,
तेज पुंज तपवेश।
जय जय प्यारा भारत देश।

जगमें कोटि-कोटि जुग जीवें,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवे,
सुखद वितान सुकृत का सीवे,
रहे स्वतंत्र हमेश
जय जय प्यारा भारत देश।

श्रीधर पाठक

3. देशभक्ति कविता – हरी भरी धरती हो

हरी भरी धरती हो
नीला आसमान रहे
फहराता तिरँगा,
चाँद तारों के समान रहे।
त्याग शूर वीरता
महानता का मंत्र है
मेरा यह देश
एक अभिनव गणतंत्र है

शांति अमन चैन रहे,
खुशहाली छाये
बच्चों को बूढों को
सबको हर्षाये

हम सबके चेहरो पर
फैली मुस्कान रहे
फहराता तिरँगा चाँद
तारों के समान रहे।

कमलेश कुमार दीवान

4. Desh Bhakti Poetry – अलग अलग गलियों

अलग अलग गलियों कुचों में लोग कोन गिनता है|
साथ खड़े हों रहने वाले, देश तभी बनता है||

बड़ी बड़ी हम देश प्रेम की बात किये जाते हैं|
वक्त पड़े तो अपनों के भी काम नही आते हैं||

सरहद की रखवाली को सेना अपनी करती है|
पर अंदर सडकों पर लड़की चलने में डरती है||

युवा शक्ति का नारा सुनने में अक्सर आता है|
सही दिशा भी किसी युवा को नहीं दिखा पाता है||

खेत हमारी पूँजी है, और फसल हमारे गहने|
क्यों किसान फिर कहीं लगे हैं जान स्वयं की लेने||

थल सजा है कहीं परन्तु भूख नहीं लगती है|
किसी की बेटी भूख के मारे रात रात जगती है||

क्या सडसठ सालों में ये आजाद वतन अपना है|
क्या यही भगत सिंह और महात्मा गाँधी का सपना है||

क्या इसीलिए आज़ाद गोली खुद को मारी|
क्या इसीलिए रण में कूदी वह नन्ही सी झलकारी||

क्या इसीलिए बिस्मिल ने ‘फिर आऊंगा’ कह डाला था|
क्या ऊधम सिंह ने क्रोध को अपने इसलिए पाला था|

गर नहीं तो फिर कैसे चूके हम राष्ट्र नया गढ़ने में|
जिस आज़ादी के लिए लड़े उसकी इज्जत करने में||

जो फूल सूख कर बिखर गया वह फिर से नही खिलेगा|
जो समय हाथ से निकल गया वह वापस नहीं मिलेगा||

पर अक्लमंद को एक इशारा ही काफ़ी होता है|
सुधार ही हर गलती के लिए असली माफ़ी होता है||

देश प्रेम और राष्ट्रवाद के गान नहीं गाओ तुम|
अपने अंदर बसे भगत सिंह को जरा जगाओं तुम||

मंजिल दूर नहीं राही जब करले अटल इरादा|
अपना हाथ उठा कर ख़ुद से आज करो ये वादा||

मेरे सामने कोई कभी भी भूख से नही मरेगा|
मेरे रहते अन्याय से कोई नहीं डरेगा||

मैं पहले उसका जिसकी तत्काल मदद करनी है|
अपने आगे हर पीड़ित की हर पीड़ा हरनी है||

शपथ गृहण कर आज़ादी का उत्सव आज मनाते हैं|
देश बुलाता है आओ कुछ काम तो इसके आते हैं||

|| वन्दे मातरम् – भारत माता की जय ||

5. Poem on Patriotism in Hindi – भारत तुझसे मेरा नाम है

भारत तुझसे मेरा नाम है,
भारत तू ही मेरा धाम है|

भारत मेरी शोभा शान है,
भारत मेरा तीर्थ स्थान है|

भारत तू मेरा सम्मान है,
भारत तू मेरा अभिमान है|

भारत तू धर्मो का ताज है,
भारत तू सबका समाज है|

भारत तुझमें गीता सार है,
भारत तू अमृत की धार है|

भारत तू गुरुओं का देश है,
भारत तुझमें सुख सन्देश है|

भारत जबतक ये जीवन है,
भारत तुझको ही अर्पण है|

भारत तू मेरा आधार है,
भारत मुझको तुझसे प्यार है|

भारत तुझपे जा निसार है,
भारत तुझको नमस्कार है|

Poem on Desh Bhakti in Hindi

6. Patriotism Poems in Hindi – अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है

अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।
ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है-
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।

यहीं मिला आकार ‘ज्ञेय’ को मिली नई सौग़ात है-
इसके ‘दर्शन’ का प्रकाश ही युग के लिए विहान है।
वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका निर्भ्रांत है।
प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।
अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है-
तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता बहती शांत है।
इसकी संस्कृति शुभ्र, न आक्षेपों से धूमिल कभी हुई-
अति उदात्त आदर्शों की निधियों से यह धनवान है।।

योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है।
जिस धरती की आध्यात्मिकता, का शुचि रूप ललाम है।
निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहें अब भी जहाँ-
कोटि-कोटि उस जन्मभूमि को श्रद्धावनत प्रणाम है।
यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता महनीय है-
ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष महान है।

क्षमा, दया, धृति के पोषण का इसी भूमि को श्रेय है।
सात्विकता की मूर्ति मनोरम इसकी गाथा गेय है।
बल-विक्रम का सिंधु कि जिसके चरणों पर है लोटता-
स्वर्गादपि गरीयसी जननी अपराजिता अजेय है।
समता, ममता और एकता का पावन उद्गम यह है
देवोपम जन-जन है इसका हर पत्थर भगवान है।

डॉ. गणेशदत्त सारस्वत

7. Poem on Desh Bhakti in Hindi – जाग रहे हम वीर जवान

जाग रहे हम वीर जवान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।
हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं ।
हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं
गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं।
तन मन धन तुम पर कुर्बान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम सपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रण,
जिसमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन !
एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल,
जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर कोमल।
थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर,
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर
हम उन वीरों की सन्तान ,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलनेवाले,
रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलनेंवाले।
हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं
मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।
हम हैं शिवा-प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे,
मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे।
देंगे जान , नहीं ईमान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान।
जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।
वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।
हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज ला सकता ।
सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?
पर की हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,
जिसकी उँगली उठी उसे हम यमपुर को पहुँचायेंगे।
हम प्रहरी यमराज समान
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!

रामधारी सिंह दिनकर

8. देशभक्ति कविता – सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी वह गुलिस्तां हमारा ॥

ग़ुर्बत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा ॥

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमां का।
वो संतरी हमारा वो पासवां हमारा ॥

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियां।
गुलशन है जिसके दम से रश्के जिनां हमारा॥

ऐ आबे रोदे गंगा वह दिन है याद तुझको।
उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा ॥

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा ॥

यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से।
अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा ॥

कुछ बात है कि हस्ती मिटती मिटाये।
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा ॥

‘इक़बाल’ कोई महरम अपना नहीं जहां में।
मालूम क्या किसी को दर्दे निहां हमारा ॥

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिसतां हमारा॥
इक़बाल

9. Desh Bhakti Poetry – सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है

यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,

हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है, राम प्रसाद बिस्मिल

10. Poem on Patriotism in Hindi – आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की

आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम …

उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है
जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है
बाट-बाट पे हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है
देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की,
इस मिट्टी से …

ये है अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे
इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे
ये प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्मि नियाँ अंगारों पे
बोल रही है कण कण से कुरबानी राजस्थान की
इस मिट्टी से …

देखो मुल्क मराठों का ये यहाँ शिवाजी डोला था
मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था
हर पावत पे आग लगी थी हर पत्थर एक शोला था
बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था
यहाँ शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की
इस मिट्टी से …

जलियाँ वाला बाग ये देखो यहाँ चली थी गोलियाँ
ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियाँ
मरनेवाले बोल रहे थे इनक़लाब की बोलियाँ
यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जान की
इस मिट्टी से …

ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है
यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है
ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है
जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की
इस मिट्टी से …

प्रदीप

11. Patriotism Poems in Hindi – उठो, धरा के अमर सपूतों

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नई प्रात है नई बात है
नया किरन है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगें
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में
नई-नई मुस्कान भरो।

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।।1।।

डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं।
गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरें
मस्त उधर मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नव गान भरो।

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।।2।।

कली-कली खिल रही इधर
वह फूल-फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुँजित जग-उद्यान करो।

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।।3।।

सरस्वती का पावन मंदिर
शुभ संपत्ति तुम्हारी है।
तुममें से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।

उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।।4।।

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

12. Poem on Desh Bhakti in Hindi – बेरोजगारी आम रोजगार हो गई

बेरोजगारी आम रोजगार हो गई।
शिक्षा रट्टा मार हो गई।
कृषक, श्रमिक की किस्मत सोई।
खुदकूशी नया समाचार हो गई।
थानेदार की लूटमार का
बचा नहीं अब कोई सानी।
जनता तरसे पानी-पानी।।

सत्ताधारी सम्राट हुए हैं।
पत्रकारिता नौकरानी हो गई।
संसद मे सांसद सोते हैं ।
राजनीति भी धंधा-पानी हो गई।
ईमानदारी ईद का चाँद हुई।
भ्रष्टाचार अब नई कहानी।
जनता तरसे पानी-पानी।।

मानवता अत्याचार हो गई।
दुष्टता शिष्टाचार हो गई।
अत्याचार कहानी हो गई।
जातक कथा पुरानी हो गई।
जनता भी नहीं बहुत सयानी।
हिन्दुस्तान हो रहा पानी-पानी।।

13. Deshbhakti Kavita in Hindi – नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से

नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से,
मुझे बचाओ, त्राण करो
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।
नहीं मांगता दुःख हटाओ
व्यथित ह्रदय का ताप मिटाओ
दुखों को मैं आप जीत लूँ
ऐसी शक्ति प्रदान करो
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

कोई जब न मदद को आये
मेरी हिम्मत टूट न जाये।
जग जब धोखे पर धोखा दे
और चोट पर चोट लगाये –
अपने मन में हार न मानूं,
ऐसा, नाथ, विधान करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।
नहीं माँगता हूँ, प्रभु, मेरी
जीवन नैया पार करो
पार उतर जाऊँ अपने बल
इतना, हे करतार, करो।
नहीं मांगता हाथ बटाओ
मेरे सिर का बोझ घटाओ
आप बोझ अपना संभाल लूँ
ऐसा बल-संचार करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

सुख के दिन में शीश नवाकर
तुमको आराधूँ, करूणाकर।
औ’ विपत्ति के अन्धकार में,
जगत हँसे जब मुझे रुलाकर–
तुम पर करने लगूँ न संशय,
यह विनती स्वीकार करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

रवींद्र नाथ ठाकुर

14. Desh Bhakti Poem in Hindi – तेरा आह्वान सुन कोई ना आए

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…

रवींद्र नाथ ठाकुर

15. Desh Bhakti Poem – वनिता की ममता न हुई

वनिता की ममता न हुई, सुत का न मुझे कुछ छोह हुआ,
ख्याति, सुयश, सम्मान, विभव का, त्योंही, कभी न मोह हुआ।
जीवन की क्या चहल-पहल है, इसे न मैंने पहचाना,
सेनापति के एक इशारे पर मिटना केवल जाना।

मसि की तो क्या बात? गली की ठिकरी मुझे भुलाती है,
जीते जी लड़ मरूं, मरे पर याद किसे फिर आती है?
इतिहासों में अमर रहूँ, है ऐसी मृत्यु नहीं मेरी,
विश्व छोड़ जब चला, भूलते लगती फिर किसको देरी?

जग भूले, पर मुझे एक, बस, सेवा-धर्म निभाना है,
जिसकी है यह देह उसीमें इसे मिला मिट जाना है।
विजय-विटप को विकच देख जिस दिन तुम हृदय जुड़ाओगे,
फूलों में शोणित की लाली कभी समझ क्या पाओगे?

वह लाली हर प्रात क्षितिज पर आकर तुम्हें जगायेगी,
सायंकाल नमन कर माँ को तिमिर-बीच खो जायेगी।
देव करेंगे विनय, किन्तु, क्या स्वर्ग-बीच रुक पाऊँगा?
किसी रात चुपके उल्का बन कूद भूमि पर आऊँगा।

तुम न जान पाओगे, पर, मैं रोज खिलूँगा इधर-उधर,
कभी फूल की पंखुड़ियाँ बन, कभी एक पत्ती बनकर,
अपनी राह चली जायेगी वीरों की सेना रण में,
रह जाऊँगा मौन वृन्त पर सोच, न जाने, क्या मन में?

तप्त वेग धमनी का बनकर कभी संग मैं हो लूँगा,
कभी चरण- तल की मिट्टी में छिपकर जय-जय बोलूँगा।
अगले युग की अनी कपिध्वज जिस दिन प्रलय मचायेगी,
मैं गरजूंगा ध्वजा-श्रृंग पर, वह पहचान न पायेगी।

‘न्योछावर में एक फूल’, पर, जग की ऐसी रीत कहाँ?
एक पंक्ति मेरी सुधि में भी, सस्ते इतने गीत कहाँ?
कविते! देखो विजन विपिन में वन्य-कुसुम का मुरझाना,
व्यर्थ न होगा इस समाधि पर दो आँसू-कण बरसाना।

रामधारी सिंह दिनकर

16. Desh Bhakti Par Kavita – तुझको या तेरे नदीश

तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं?
मेरे प्यारे देश! देह या मन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत? किसको नमन करूँ मैं?

भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है?
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है?
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है
मेरे प्यारे देश! नहीं तू पत्थर है, पानी है
जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं?

तू वह, नर ने जिसे बहुत ऊँचा चढ़कर पाया था,
तू वह, जो संदेश भूमि को अम्बर से आया था।
तू वह, जिसका ध्यान आज भी मन सुरभित करता है,
थकी हुई आत्मा में उड़ने की उमंग भरता है।
गन्ध -निकेतन इस अदृश्य उपवन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं?

वहाँ नहीं तू जहाँ जनों से ही मनुजों को भय है,
सब को सब से त्रास सदा सब पर सब का संशय है।
जहाँ स्नेह के सहज स्रोत से हटे हुए जनगण हैं,
झंडों या नारों के नीचे बँटे हुए जनगण हैं।
कैसे इस कुत्सित, विभक्त जीवन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

तू तो है वह लोक जहाँ उन्मुक्त मनुज का मन है,
समरसता को लिये प्रवाहित शीत-स्निग्ध जीवन है।
जहाँ पहुँच मानते नहीं नर-नारी दिग्बन्धन को,
आत्म-रूप देखते प्रेम में भरकर निखिल भुवन को।
कहीं खोज इस रुचिर स्वप्न पावन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं!

खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से
पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से
तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है
दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है
मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं!

दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं
मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं
घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन
खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन
आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं!

उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं!

रामधारी सिंह दिनकर

17. Patriotic Poem in Hindi – एक और जंजीर तड़कती है

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियाँ औ’ हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ,
आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

हरिवंशराय बच्चन

18. आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊं

आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊं,
गाथा वीर जवानों की l
हंसते-हंसते आजादी के लिए सीने पर गोली खाई,
एक मां के बेटे ने देश के लिए अपनी जान गवाई l

दिलाई आजादी देश को शान से ,
वीर शहीदों ने अपने बलिदान से l
तैनात है वह हर जगह लेने दुश्मन के और देने अपने प्राण,
गुलामी की जंजीरों से दिलाई आजादी हो कुर्बान ll

इस आजादी की बेला में हम तिरंगा लहराते हैं,
आओ सब मिलकर देश के वीरों के लिए भारत मां को शीश झुकाते हैं l

स्वतंत्रता दिवस देश की शान है,
वीर जवान मेरे देश का अभिमान है
– Shreya Khosla

19. बढ़ा कदम

बढ़ा कदम, बढ़ा कदम
जब तक है दम

आखिरी बूंद रक्त की काम आये
वतन के, जब तक है दम
ना कभी रुकें,ना कभी झुकेंं
अपनी आन पर मिटें,अपनी शान पर मिटें
मिट गए तो क्या ? लेंगे एक और जनम
बढा़ कदम बढा़ कदम जब तक है दम

हौंंसले बुलंद हों,रगों में आग ज्वलंत हो
आए दुश्मन तो काट उसका सर
बढ़ा कदम बढा़ कदम,ऐ जान ए वतन

तूफां की कश्ती हो या सामने मौत हसती हो
मिटाकर तू काल का भय,हो विकराल काल सम
बढ़ा कदम बढ़ा कदम जब तक है दम
– Govind Rawat

20. देश मेरा महान है

देश मेरा महान है
प्यार है सम्मान है
वीर हैं जवान है
शौर्य है बलिदान है
कोटि-कोटि प्रणाम है
देश मेरा महान है।
सत्य और अहिंसा की
राह पर चलकर
क्रांति के वीरों की
साहस को देखकर
वसुंधरा भी हैरान है
देश मेरा महान है।
धर्म अनेक, पर एक कर
राष्ट्र से प्रेम कर
प्राण अपने त्याग कर
देश की शान पर
इतिहास ये प्रमाण है
देश मेरा महान है।
शांति और समृद्धि है
साहस, धैर्य अदम्य है
वीरत्व को प्रणाम है
स्वाभिमान है पहचान है
भारत जिसका नाम है
देश मेरा महान है।
-Dheerendra Soni

21. गतिमय विशाल हिम चन्द्रभाल

गतिमय विशाल हिम चन्द्रभाल,
सतरंग थाल सम रस रत है।
आ रही पुकार नित बार-बार ,
वह जगत जयत जय भारत है।

निश्छल प्रतीति,रस छन्द रीति,
सहित्य प्रीति छवि छलकत है।
निर्वेद मुक्त सत्कीर्ति युक्त,
वह जगत जयत जय भारत है।

अविचल सुशील,कंचन सी झील,
विध विध सुरील स्वर मोहत हैं।
संस्कृति के टील,हैं मील -मील ,
वह जगत जयत जय भारत है।
– सूर्यांश नेमा

22. तुम जन गण मन जो जाते हो

तुम जन गण मन जो जाते हो आखिर वो किसे सुनाते हो
जय हिंद जो इठलाते हो यह किस पर गर्व जताते हो
तुम जिस भी देश को जाते हो उसे भुला न पाते हो
कहीं भी भारत का नाम सुने सबसे पहले मुस्काते हो
आखिर ये भारत चीज क्या है मुझे जरा बतलाओ तुम
मैं भी देखने को उत्सुक हूँ निज आँखों से दिख्लाओं तुम
कोई मिट्टी का टुकड़ा है या किसी माँ का दुखड़ा है या
कोई खेत खलिहान है या कोई सैनिक लहुलुहान है या
किसी माँ की ये दुलार है या किसी को जान से प्यारा है या
कोई अस्त्र है या कोई शस्त्र या जिससे सब कोई है त्रस्त है या
कोई राजा है या रंक है ये ये शून्य है कि कोई अंक है ये
कोई बहुमजिला इमारत है क्या
आखिर ये भारत है क्या
अब समय यूं न व्यर्थ गवाओ न
मुझको भारत बतलाओ न

ये ना ही कोई माटी का टुकड़ा है न ही माई का दुखड़ा है
ये नहीं खेत खलिहान कोई ना ही सैनिक लहूलुहान कोई
ये खुद ही तात हमारा है जो हमको माँ सा प्यारा है
ये कोई निज अस्त्र शस्त्र नहीं इसमें है कोई त्रस्त नहीं
हर राजा रंक बसता है है अमूल्य पर सस्ता है
ये भूमि नहीं आकाश नहीं ये दिल में सबके बसता है
वो भूमि जहाँ हर प्राणी में बहती नित समरसता है

निज देश मेरी वो मातृभूमि भारत वहां पर बसता है
हिमालय सा गर्व लिए और फूलों सा जो हंसता है
मेरी धडकन और अभिमान मेरा भारत वहां पर बसता है
मन में विकास प्रयास लिए भावों में निज इतिहास लिए
हम अकड़ दिखाते है क्योंकि यहाँ राम कृष्ण कई वीर जीए

अपने प्रयासों को दिखलाओ जरा अपना इतिहास सुनाओ जरा
तुम जो भी मुझे सुनाते हो हर शब्द से रूचि बढाते हो
मेरा अहोभाग्य मिला तुमसे महज एक धोखे से
मुझे दीदार कराओ इतिहास का एक झरोखे से

तो सुनो मैं तुम्हे सुनाता हूँ संक्षिप्त दर्शन कराता हूँ
वैसे तो पूरा जलधि है ये फिर भी एक अंजुलि पिलाता हूँ
भूत भविष्य का भेद है भारत
उपनिषदों के संग्रह वेद है भारत
मर्यादा में स्वयं राम है भारत, निज पिता को प्रणाम है भारत
गीता का सार है भारत रामायण का भार है भारत
अर्जुन का गांडीव है भारत मन की गति से तीव्र है भारत
नारी का सम्मान है भारत, वेदव्यास का ज्ञान है भारत
पृथ्वीराज का तीर है भारत अशोक सा वीर है भारत
टैगोर का शब्द है भारत चाणक्य का अर्थ है भारत
धर्म कर्म का मंत्र है भारत विष्णु शर्मा का पंचतंत्र है भारत
हिमालय है श्वेत है भारत, सबका पेट भरता खेत है भारत
राहगीर को छाँव है भारत, प्रेम बांटता गाँव है भारत

भगत आजाद की क्रांति है भारत ऋषि मुनियों की शांति है भारत
गांधी की अहिंसा है भारत विवेकानंद की प्रशंसा है भारत
बोस का नारा है भारत अभिमन्यु सा प्यारा है भारत
धर्म अधर्म का युद्ध है भारत शांति मुद्रा का बुद्ध है भारत
राधा कृष्ण का प्रेम है भारत धातुओं में हेम है भारत
गंगा जमुना सिंध है भारत है आर्यावर्त और हिंद है भारत
जितना भी बताता जाऊँगा नित नया विषय ही पाऊंगा
ये सागर है ज्ञान का जितना तैरूँगा और तैरता जाऊँगा
इतना जानो सत्य यही है इतिहास का प्रमाण है भारत
कही बसों चाहे कही रहो दिल में धड़के वो प्राण है भारत
– अभिनव आजाद

23. गर्व करे हम देश पर

गर्व करे हम देश पर
इसमें देशभक्ति महान
जवानों के देश प्रेम के
जज्बे को
पल पल हम करे सलाम
सरहद पर वे जान लुटाते

करते इस देश के कण कण की
सुरक्षा का इंतजाम
दुश्मन के आते ही मिट जाता
उसका नामोनिशान
हिन्दू जैन सिख ईसाई
नहीं यहाँ किसी का नाम

जानो पर जो खेल जाए
वह ही सच्चा जवान
माँ के आंचल में लिपटकर सोना
भारत माँ के आंचल के समान
आँख बंद करे तो याद आये
बस देश सुबह या शाम
गर्व करे हम देश पर
इसमें देशभक्ति महान
अन्न देते वो हमें
अन्न उगाना उनका काम
अगर अन्न हमें ना मिले

तो जीवन हमारा लगे जैसे
जल बिन मीन का धाम
दिन रात करते है वो काम
हंसी ख़ुशी लोगों के नाम
उनके सानिध्य को पाकर
कहते है हम उन्हें किसान
गर्व करे हम देश पर
इसमें देशभक्ति महान
इसरो ने ऊंचाई छुई
मार्स पर हुआ एक नया मुकाम

गर्व करे हम देश पर
इसमें देशभक्ति महान
एनक पहने लाठी पकड़े
बापू थे देश की शान
दांडी सत्याग्रह यात्रा से
बने महात्मा बड़े महान
रानी लक्ष्मीबाई सरोजनी नायडू
थी देश की आन
आजादी के बाद फिर

मिसाइल मैंन बने अब्दुल कलाम
गर्व करे हम देश पर
इसमें देशभक्ति महान
भारत माता के चरणों में
मेरा यही प्रणाम
इनके सर का ताज है
हमारा और मोदीजी का
स्वाभिमान
सोते जागते यही चाहे
बड़े देश का मान
बड़े देश का मान
गर्व करे इस देश पर
इसमें देशभक्ति महान

24. स्वतन्त्रता संग्राम में वीरों का अतुलनीय बलिदान

स्वतन्त्रता संग्राम में वीरों का अतुलनीय बलिदान
नहीं गया व्यर्थ बनी रही भारत की शान

स्वाभिमान से हमने गौरव है पाया
भारत माता के पुत्रों ने लहू से अपना कर्ज चुकाया

नहीं डरे वह वीर जिन्होंने आजादी की कसम खाई थी
अंग्रेजों से पीछे न हटने की उन्होंने रणनीति बनाई थी

आजादी के लिए चली देश की बहुत लम्बी लड़ाई थी
हुआ स्वतंत्र देश 1947 को घर घर खुशहाली छाई थी

हुआ स्वतंत्र यह देश हमारा ना जाने कितनों ने जान गवाई थी
सलाम उन रणबाकुरो को जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाई थी

अहिंसा के पथ पर चलना बापू ने हमको सिखलाया था
नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलन ब्रिटिश के खिलाफ चलाया था

धन्य धन्य वह देश जहाँ चन्द्रशेखर सुभाष जैसे शूरवीर हुए
ऐसी धरती को शत शत नमन जहाँ सम्मान से हर एक के शीश झुके

जिस तरह एकजुटता से हमने लड़ी लड़ाई थी
ली प्रतिज्ञा आजादी की अंग्रेजों को धूल चटाई थी

आज फिर उसी प्रतिज्ञा संग एकजुटता से आना है
कोरोनावायरस से लड़ने के लिए मोदी जी के कदम से कदम मिलाना है
होगा कोरोना मुक्त देश हमारा सोशल दिस्टेंसिंग का पालन करना है
कोरोना मुक्त भारत होगा आत्मनिर्भरता तथा विकासशीलता के पथ पर आगे बढना है
– श्रीयम सिंह बघेल

25. सुनो ध्यान से भारतवासी

सुनो ध्यान से भारतवासी
कथा सुनाता वीरों की
उन वीरों की महावीरों की
जो हमे दिला गये आजादी
कोई लड़ा था दम खम से
तो कोई लड़ा था अनशन से
कोई खेला था खून की होली
कोई झेला था बम और गोली
कोई चढ़ा था फंदे पर
तो कोई चला रहा था कंदे पर
देख कर उत्साह वीरों का
कोहराम मचा था लन्दन में
अंग्रेजों की नीव झुका दी
भारत माँ के नन्दन ने
हम सबको स्वाधीन बना गये
भारत माँ के नन्दन रे
– आदर्श साहू

26. भारतमाता

भारतमाता
ग्राम-वासिनी
खेतो मे फैला है श्याषमल
धूल भरा मैला-सा अचल
गगा-यमुना मे ऑसू-जल
मिटी की प्रतिममा उदासिनी
दैन्यन-जडिन अपलक नत चितवन
अधरो मे चिर नीरव रोदन
युग-युग के तम से विषण्णत मन
वह अपने धर मे प्रवासिनी

27. गुन-गुन करता आया भंवरा

गुन-गुन करता आया भंवरा,छेडे इक ही तान
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,है हम सब की शान
मिली विरासत में आजादी,कीमत इसकी जाने
अमर शहीदों से श्रध्दा से,मिलकर शीश झुकाये
हँसते-हँसते देश के खातिर,दे दी अपनी जान
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,है हम सब की शान
आओ हम सब मिलके,काम बडा़ कर जाये
अपने प्यारे हिन्दोस्तां को,जग में श्रष्ठ बनाये
देश की उन्नति से ही होगा,हम सबका उत्थान
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,है हम सब की शान।

28. अनेकता मै भी एकता थी

अनेकता मै भी एकता थी,
यही भारतियों की शान है।
कितने वीरो ने वीरगति प्राप्त करली
इसिलिए तो वह हर भरतीय के लिये,
महान है।
बिना अहिंसा के भी पिता की छाया मै,
अजादी प्राप्त करली इसलिये
तो भारत मेरी जान है।
उन वीरो पर सभी को मान,
उन सब की राह पर चलने मै
ही सबका कल्यान है।
इफरा क़ुरेशी

29. देश को तो तुम अपना कहते हो

देश को तो तुम अपना कहते हो
पर क्या इस बात को अपने दिल में रखते हो
कश्मीर की वादियों के हक के लिए तुम लड़ते हो
पर क्या कभी सरहद पर खड़े सिपाहियों की भी चिंता करते हो
तुम स्वतंत्रता के गीत तो गाते बहुत हो पर
क्या तुम कभी शहीद संग्रामियो के लिए भी नतमस्तक हो जाते हो

झंडा तो तुम हर साल फहराते हो पर
क्या किसी और दिन भी झंडा उठाकर अपने दिल से लगाते हो
कहते हैं जन गण मन तो हमारी शान है पर
थिएटर में इसको गाना भी तो एक इम्तिहान है

स्वतंत्रता तो शहीदों के खून में लिपटी इनाम है पर
इसको संरक्षित रखना हर एक भारतवासी का काम है
खूब लड़ी मर्दानी वाली रानी पर गर्व तो बड़ा बताते हो पर
क्या समाज से पीड़ित औरत के हक के लिए लड़ जाते हो
स्वदेशी स्वदेशी तो जोर जोर से चिल्लाते हो फिर
इट्स नोट गुड बोलकर आगे क्यों निकल जाते हो

गंगा में तो तुम पाप धोने जाते हो फिर
क्यों उसे ही गंदा कर आते हो
स्वच्छ भारत लक्ष्य को तो तुम अपना बताते हो
फिर सडकों पर कचरा पड़ा देखकर आगे क्यों बढ़ जाते हो
फेसबुक पर स्वतंत्रता दिवस के पोस्ट तो सब डालते है पर
क्या तुम स्वतंत्रता का सही मतलब भी जानते हो
यह महज एक सवाल नहीं है जिस दिन खुद से इनका जवाब मागोगे
उस दिन एक अलग ही देशभक्त बन जाओगे

30. अपना प्यारा भारत देश हमारा

अपना प्यारा भारत देश हमारा जन जन का न्यारा
बली बली जाऊं इस वतन पर यही है मान हमारा

इस धरती में पवित्र नदियाँ की बहती निर्मल धारा
खड़ा हिमालय शीश हमारे जो है रखवाला

ज्ञान दिया विश्व को अपनी अमिट छाया
सत्य अहिंसा का पाठ सीखा कर मिटा दिया अधियारा

पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण की विविधता में एकता हमारी
गीता बाइबिल कुरआन ने दिया सिखा उजियारा

वीरों की इस भूमि में रचा यह इतिहास है
माटी के कण कण में बसा हुआ हिंदुस्तान है

जहाँ पूजी जाती नारी ऐसा देश हमारा महान है
जन जन की वाणी में दिया यह संदेश है

राम की इस पावन धरा पर पुरुषों में उत्तम राम है
जय जय ऐसी धरती की जन्मा महान है

भाईचारा की भावना से ओत प्रेत ये आसमान है
नमन है ऐसी मातृभूमि को दिया जिसने अभियान है

सारे जग में छाप हमारी ऐसा हिंदुस्तान है
बलि जाऊं इस यह मेरा अभियान है.

31. ठहरो सुनो मेरे देश की स्वतंत्रता की कहानी

ठहरो सुनो मेरे देश की स्वतंत्रता की कहानी
अमर यौद्धाओं के इतिहास की कहानी

हाँ यह आजादी हमने संघर्ष से पाई थी
पाने में इसे कई वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी

तभी तो नाज है हमे हमारे वतन पर
उन यौद्धाओं के बलिदान के किस्सों पर

दिन वह सबसे अनमोल है
जब आसमां में बिखरे थे आजादी के रंग
झूम उठा था हर दिल
ख़ुशी से अपनों के संग

वक्त कठिन था जब मुकाम हमारा था
हर देशभक्त की जुबां पर जयहिंद का नारा था

उगते हुए सूरज में जज्बे की एक चमक सी थी
उड़ते हुए परिंदों में बुलंद हौसलों की एक उड़ान सी थी

मेरे देश की यह कहानी तो एक अमर गाथा है
शौर्य निडरता और तत्परता का सटीक उदाहरण हैं.
– गुरप्रीत कौर बल

32. निजमातृभूमि को शीश नवा प्रकट उदगार करती हूँ

निजमातृभूमि को शीश नवा प्रकट उदगार करती हूँ
ह्रदय में बसता है भारत उस बारे में बाते चार करती हूँ
शीर्ष पर मुकुट हिमाला है वक्ष पर राज्य रूपी मोती की माला है
कटी में महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा की करधनी शौभित
शोभा एवं उमंग है हर अंग अंग की निराली
चरण में शोभित केरल की हरियाली
मुक्त श्रंगारित धानी भारती दुल्हन
विचरती है कश्मीर से कन्याकुमारी
अपने प्रिय वासियों पर नित बरसाती प्रेम व स्नेह की लाली
गर दुश्मन आँख दिखाए हमको तो बन जाती है काली
धरती माँ तेरे स्नेह से सिंचित मेरा जीवन
धन्य मैं इस काया को समझती हूँ
न्यौछावर कर दूंगी मैं तुझ पर सब
वक्त आने पर यह प्रण भी करती हूँ
तुम छूलो हर बुलंदी को तुम्हारा नाम हो रोशन
नित यही दुआ व कामना बारम्बार करती हूँ
इस पवित्र भूमि पर जन्म लिया इसका सम्मान करती हूँ
उर अंतर से गदगद होकर मैं पुनः प्रणाम करती हूँ.
– श्रुति शर्मा

33. कुछ लोग खड़े है सरहद पर जान हथेली के लिए चलते है

कुछ लोग खड़े है सरहद पर जान हथेली के लिए चलते है
वह इन्सान नहीं खुदा के फरिश्ते मालूम पड़ते है
बदन पर वर्दी दिल में मुकाम लिए चलते है
कतरा कतरा साँसों का वतन के नाम किये चलते है

लोग देश बांटते जाति धर्म और शहरों से
अपने और गैरों से
वो खड़े वहां कई दिन रात और पहरों से
ईमान में उनके इंसानियत हर मजहब की सेवा करते है
जात धर्म ना देखते दिल में बस हिंदुस्तान रखते है

तूफ़ान आंधी बर्फ पानी ना किसी से डरते है
भारत माँ का नाम लिए दुश्मन से ये लड़ते है
ऐसे लाल सपूत ही तो मेरे देश की शान बढाते है
देश के लिए जीते है और देश के लिए ही मरते है

देश इनसे और यह देश से जाने जाते है
वतन की हिफाजत में यह अपने प्राण लुटाते है
मौत भी क्या मारेगी उनको जो मरकर भी जी जाते है
ऐसे सूर्य वीर यौद्धा सरहद पर देखे जाते है
– सृष्टि जैन

34. भारत मेरा देश है इस पर गर्व विशेष है

भारत मेरा देश है इस पर गर्व विशेष है
वीरों की यह पावन भूमि पावनहार प्रदेश है
जन्म लिया है इस मिट्टी में भाग्य मेरा सर्वेश है
भारत मेरा देश है इस पर गर्व विशेष है

देश मेरा रंगीला यारों निराले इसके परिवेश है
भाषा का हर क्षेत्र अलग अलग उनका गुणगान है
बलिदानों से सनी मिट्टी जीवंत हर अवशेष है
भारत मेरा देश है इस पर गर्व विदेश है

पहाड़ नदियाँ झील और झरने भाषा बोली जाए न बरते
राम कृष्ण के संस्कार समाएं पावन उनके कर्म करने
तीज त्यौहार या आतिथ्य सत्कार ये कहना भी शेष है
भारत मेरा देश है इस पर गर्व विशेष है

35. कर्तव्य है हमारा

कर्तव्य है हमारा
जिन वीरो ने हमे आजाद है कराया
कतरा कतरा उन्होने स्वाधीनता में बहाया
करे हम नमन जिन्होंने देश आजाद कराया,
‘ये वतन है हमारा हम इसे मोती बनाएगे
कर्तव्य है हमारा कर्तव्य हम निभाएगे,
टूटेगी ना ऐसी मंजिल हम बनाएगे
उठेगे पड़ेगे फिर भी संभल हम जाएगे
बिना पंख हम उड़ कर बताएगे ,
स्वाधीनता रिश्ता हम ऐसे निभाएगे
जंग के मैदान में हैम शौर्य दिखाएगें ,
विश्वास का दिया हम रोज जलाएंगे
कर्तव्य है निभाना कर्तव्य हम निभाएगे

36. हम शूर अखंडित भारत के

हम शूर अखंडित भारत के, माँ भारत की सन्तान सभी
है प्राण देह में जब तक भी, जाने ना देंगे आन कभी

उस राणा की सन्तान है हम, जिसने शत्रु को चीर दिया
हो रत उस घातक चेतक पर, रण में भीषण संग्राम किया

उस माँ का हमने क्षीर पिया, जिससे भयभीत जमाना था
मेरे देश की नारी शक्ति का, हर मतवाला दीवाना था

याद करो उस पृथ्वी को जिससे गौरी अकुलाता था
चक्षु को खोकर के भी जो नाराच से मार गिराता था

न्र से लेकर हर अश्व यहाँ साहस अद्भुत दिखलाता था
रण में चौकडी भर भर कर चेतक बादल इठलाता था

ए वीर बांकुरो जाग उठो माँ भारत का आंचल सेजो
है कौन यहाँ जो रोकेगा तुम साहस तो करके देखो

है मार्ग तो बाधाएं भी है अडचन विरति है निवारण भी
तुझ सा कौशल औरों में कहाँ क्यूँ डरता है बिन कारण ही

आडम्बर में अविलम्ब न कर रत नेत्रों में विश्राम कहाँ
अविराम रमण करने वाली पावन वेला में विश्राम कहाँ

है कीर्ति का यह साधन भी तुम हेतु तो बनके देखो
आँखों में सपनों को लेकर कभी सागर तो भरके देखो

मेरे देश कि पावन भूमि पर जो त्याग तपोवन धारी है
अधिकारी सृजन सुहावन की वो मेरे देश की नारी हैं

कुछ आये थे कुछ चले गये कुछ अजर अमर अविनाशी हैं
कुछ हुए अमर निज कर्मों से संघर्ष अभी तक जारी हैं
– प्रथम सिंह परिहार

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